नवरात्रि स्पेशल ऑफर, घटस्थापना मुहूर्त व पूजा विधि

Saturday, October 1, 2016

शारदीय नवरात्रि आज से आरम्भ हो रही है, जो 10 अक्टूबर 2016 को समाप्त होगी। इस नवरात्रि में एस्ट्रोसेज ख़ास ऑफ़र के साथ लाया है शारदीय नवरात्रि 2016 की पूजाविधि एवं शुभ मुहूर्त। 

नवरात्रि के अवसर पर एस्ट्रोसेज डॉट कॉम ने एक एक्सक्लूसिव सेल की शुरुआत की है। हमारे प्रोडक्ट नवदुर्गा पूजन में आपकी सहायता करेंगे। आशा करते हैं कि माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद उनके भक्तों को मिले और पीड़ित चंद्र से होने वाली व्यथा एवं शोक दूर हो।




घटस्थापना मुहूर्त- प्रातः 06:14 से 07:29 तक 

शाक्त संप्रदाय के अनुसार माँ आदिशक्ति की आराधना के लिए आश्विन मास की नवरात्रि अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दौरान देवी के ९ रूपों की आराधना करते हैं। इस अवधि में अधिकांश लोग देवी पूजन व व्रत करते हैं। नवरात्रि में व्रत रखने से हमारे सभी जाने-अनजाने पाप समाप्त होते हैं और माँ आदि शक्ति की कृपा भी प्राप्त होती है। नवरात्रि में माँ महाकाली, माँ महालक्ष्मी और माँ महासरस्वती की पूजा प्रमुखता से की जाती है। कई भक्त इन दिनों में श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं। इस समय में नौ दिनों तक भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ व एक समय भोजन का व्रत धारण किया जाता है। इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम घटस्थापना की जाती है। इसके उपरांत अन्य पूजन प्रक्रियाएं की जाती हैं। देवी के किस स्वरुप की पूजा प्रथम दिन की जाती है? और उसकी शास्त्रीय विधि क्या है? इसकी जानकारी निम्नलिखित है-

घटस्थापना की विधि विस्तार से जानने के लिए देखें - घटस्थापना

देवी स्वरुप- माँ शैलपुत्री


माँ भगवती दुर्गाजी का यह प्रथम रूप माना गया है। प्रथमा या प्रतिपदा तिथि को इनका ही पूजन किया जाता है। हिमालय राज के यहाँ जन्म होने के कारण ही इनका नाम शैलपुत्री पड़ा है। इनका वाहन वृषभ (बैल) माना गया है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। भोग के रूप में इन्हें गाय का घी अत्यंत प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि इनका पूजन करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, जिससे मनुष्य में तपोबल, सदाचार और संयम की बढ़ोत्तरी होती है। 

पूजन विधि - घटस्थापना व अन्य पूजन प्रक्रियाएं:-

  1. प्रतिपदा के दिन प्रातः स्नानादि करके संकल्प करें। इसके बाद मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोने चाहिए। उसी पर घटस्थापना करें। फिर घट के ऊपर माँ दुर्गा की प्रतिमा को स्थान देना चाहिए। पूजा-पाठ के दौरान अखंड दीपक जलता रहना चाहिए। पूजन सामग्री के साथ पूजनस्थल पर पूर्व दिशा की ओर आसन लगाकर बैठें। उसके बाद नीचे दी गई विधि अनुसार पूजा प्रारंभ करें:
  2. नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण कर पूजन सामग्री और अपने शरीर पर जल छिड़कें।

    ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा |
    य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:||

  3. हाथ में अक्षत, फूल, और जल लेकर पूजा का संकल्प करें।
  4. माँ शैलपुत्री की मूर्ती के सामने मिट्टी के ऊपर कलश रखकर हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर वरूण देव का आवाहन करें।
  5. पूजन सामग्री के साथ विधिवत पूजा करें।
  6. उसके बाद आरती करें; तत्पश्चात् प्रसाद वितरण करें।
  7. नवरात्रि में प्रतिदिन एक कन्या की पूजा करके भोजनादि सहित दक्षिणा दी जाती है। 
  8. यदि प्रतिदिन कन्यापूजन संभव न हो तो नवमी के दिन(अंतिम नवरात्रि) नौ कन्याओं की पूजा करने का शास्त्र आदेश है। 
  9. कन्या पूजन में दो से दस वर्ष की उम्र वाली कन्या की ही पूजा करनी चाहिए। 
  10. इन दिनों में दुर्गा सप्तशती व अपराजिता आदि के पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है। 

एस्ट्रोसेज की तरफ़ से आप सभी को शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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