शरद पूर्णिमा कल, जानें महत्व

जानें इस दिन व्रत रखने से होने वाले लाभ। पढ़ें शरद पूर्णिमा का पौराणिक महत्व और व्रत की पूजा विधि। 


शरद पूर्णिमा का पुराने समय से हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये माना गया है कि धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म इसी दिन हुआ था। इसके अलावा भगवान कृष्ण ने भी वृन्दावन में गोपियों संग निधिवन में इसी दिन रास रचाया था। शायद इसलिए ही इस पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा, रास पूर्णिमा, और कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा यानि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाना शुभ माना जाता है, जिसके लिए कोजागरा व्रत करने का विशेष महत्व है। कहते हैं इस ख़ास दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत भर जाता है और ये किरणें हर प्राणी के लिए अमृत के समान लाभदायक होती हैं।


शरद पूर्णिमा मुहूर्त 2018
अक्टूबर 23, 2018 को 22:38:01 से पूर्णिमा आरम्भ
अक्टूबर 24, 2018 को 22:16:44 पर पूर्णिमा समाप्त

सूचना: उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में शरद पूर्णिमा का मुहूर्त

शरद पूर्णिमा 2018 शुभ मुहूर्त 


  • वर्ष 2018 में शरद पूर्णिमा 24 अक्‍टूबर को घटित हो रही है और यह 23 अक्टूबर रात से ही शुरू हो जाएगी। 
  • इस दिन चावलों की खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे कुछ घंटे तक रखने और देर रात 12 बजे के बाद खाने की पुरानी परंपरा चली आ रही है। 
  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष शरद पूर्णिमा के लिए पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर को रात 10:38 पर होगी जो 24 अक्टूबर रात 10:14 बजे समाप्त हो जायेगी। 

शरद पूर्णिमा व्रत कथा 


हिन्दू धर्म के अनुसार पुराने समय में मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को खुश करने के लिए एक साहूकार की दोनों बेटियां हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थीं। दोनों बहनों में से जहाँ बड़ी बहन पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से करती थी। वहीं छोटी बहन व्रत तो करती थी लेकिन वो अक्सर नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखी कर बैठती थी। विवाह योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। विवाह के कुछ समय बाद दोनों के घर संतानों ने जन्म लिया. बड़ी बेटी के घर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ तो वहीं छोटी बेटी के घर संतान जन्म तो लेती परन्तु पैदा होते ही दम तोड़ देती थी।

ऐसा दो-तीन बार हुआ तब जाकर उसने एक ब्राह्मण को सलाह के लिए बुलाया और अपनी व्यथा कहते हुए उससे धार्मिक उपाय पूछा। छोटी बेटी की पूरी बात सुनकर ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हारा व्रत कभी सफल नहीं हुआ और तुम्हें अधूरे व्रत का दोष भी लगता है। ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने उस वर्ष पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का निर्णय लिया, लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया और उस बालक ने भी जन्म लेते ही दम तोड़ दिया। बालक की मृत्यु होने पर छोटी बेटी ने बेटे के शव को एक पीढ़े पर रख कर उसपर कपड़ा ढक दिया ताकि किसी को पता न चले।


फिर उसने अपनी बड़ी बहन को अपने घर आमंत्रित किया और बैठने के लिए उसे वही पीढ़ा दे दिया। जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगी, उसकी साड़ी का किनारा बच्चे को छू गया और वह जीवित होकर तुरंत रोने लगा। ये सब देख बड़ी बहन डर गई और छोटी बहन पर क्रोधित होकर बोलने लगी कि, क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो! मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता तो? 

ख़ुशी से रोते हुए छोटी बहन ने उत्तर दिया, दीदी यह बच्चा पहले से मरा हुआ था। तुम्हारे तप और स्पर्श के कारण ही यह जीवित हो गया है। तुम जो व्रत पूर्णिमा के दिन करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो चुकी हो। अब मैं भी तुम्हारी ही तरह पूरी विधि के साथ व्रत और पूजन करूंगी। इसके बाद बड़ी बहन की तरह ही छोटी बहन ने भी पूर्णिमा व्रत विधि पूर्वक किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया।



शरद पूर्णिमा व्रत का महत्व 


  • हिन्दू धर्म के अनुसार शरद पूर्णिमा का मुहूर्त अनुसार विधि-विधान पूर्वक व्रत रखने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है जिससे व्यक्ति के सभी दुख दूर हो जाते हैं। 
  • चूंकि इसे कौमुदी व्रत भी कहा जाता है इसलिए ये माना गया हैं कि इस दिन जो विवाहित स्त्रियां व्रत रखती है उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। 
  • साथ ही अगर कोई माँ इस व्रत को विधि अनुसार अपने बच्चे के लिए करें तो उसकी संतान की आयु लंबी होती है। 
  • जो कोई भी कुंवारी कन्या इस त को रखती हैं तो उसे भी सुयोग्य और उत्तम वर की प्राप्ति होती है। 
  • माना गया हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा किसी भी दिन के मुकाबले सबसे ज्यादा चमकीला होता है। इस दिन आसमान से अमृत बरसता है। 
  • शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों का तेज बहुत होता है जिससे आपकी आध्यात्मिक और शारीरिक शक्तियों का विकास होता है। 
  • शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता भी होती है। 

शरद पूर्णिमा व्रत विधि


  • शरद पूर्णिमा के दिन सुबह इष्ट देव का पूजन करना शुभ होता है। 
  • इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का पूजन करके घर में घी के दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए। 
  • इस दिन ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराकर उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए।
  • माँ लक्ष्मी को खुश करने के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है। इस दिन सच्चे भाव से भजन-कीर्तन करके आप धन-संपत्ति में वृद्धि देख सकते है। 
  • पूर्णिमा का व्रत करके रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए।
  • इस दिन मंदिर में खीर आदि दान करके व्रत को सफल बना सकते है। 
  • कई लोग शरद पूर्णिमा के दिन गंगा व अन्य पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस दौरान स्नान-ध्यान के बाद गंगा घाटों पर ही दान-पुण्य करना शुभ होता है। 

एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं !


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