पंडित हनुमान मिश्रा
To read in English, please click here.
उत्तराखंड में आई तबाही ने मानव हृदय और मस्तिष्क को भयाक्रांत कर दिया है। इस घटना से आस्था को लेकर लोगों के मन में उहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जो लोग बचकर आ गए हैं, वे कभी कहते हैं अब वो तीर्थाटन करने कभी नहीं जाएगें वहीं दूसरी ओर वे ईश्वर का धन्यवाद भी करते हैं कि भगवान नें उन्हें बचा लिया। इस घटना के कौन से ज्योतिषीय कारण रहे होंगे, ये जानने की इच्छा से हमसे कई ज्योतिष प्रेमियों ने सम्पर्क किया। हालांकि कि मैं घटना हो जाने के बाद फलादेश करने का पक्षधर नहीं हूं लेकिन ज्योतिष प्रेमियों की जिज्ञासा को नजरअंदाज करना भी उचित नहीं रहता है अत: इस पर चर्चा कर ली जाय।
उत्तराखंड में आई तबाही ने मानव हृदय और मस्तिष्क को भयाक्रांत कर दिया है। इस घटना से आस्था को लेकर लोगों के मन में उहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जो लोग बचकर आ गए हैं, वे कभी कहते हैं अब वो तीर्थाटन करने कभी नहीं जाएगें वहीं दूसरी ओर वे ईश्वर का धन्यवाद भी करते हैं कि भगवान नें उन्हें बचा लिया। इस घटना के कौन से ज्योतिषीय कारण रहे होंगे, ये जानने की इच्छा से हमसे कई ज्योतिष प्रेमियों ने सम्पर्क किया। हालांकि कि मैं घटना हो जाने के बाद फलादेश करने का पक्षधर नहीं हूं लेकिन ज्योतिष प्रेमियों की जिज्ञासा को नजरअंदाज करना भी उचित नहीं रहता है अत: इस पर चर्चा कर ली जाय।
उत्तराखण्ड जिसका पूर्व का नाम उत्तराञ्चल, था। यह उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका गठन या निर्माण 9 नवम्बर 2000 को हुआ। सन 2000 से 2006 तक यह उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था। जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं।
उत्तराखण्ड की चन्द्र कुण्डली:
जिस दिन इस राज्य का गठन हुआ उस दिन चन्द्रमा मीन राशि में था अत: इस राज्य की राशि मीन मानी जाएगी। उस दिन रेवती नक्षत्र था जो कि मूल संज्ञक नक्षत्र है। यह बुध का नक्षत्र है जो कुण्डली के आठवें भाव में है। आठवें भाव से हम सकारात्मक रूप में जल यात्राओं का विचार करते हैं। नकारात्मक रूप में इससे जल से हानि का विचार किया जाता है। इस प्रकार जलीय ग्रह चंद्रमा का सम्बंध अष्टम भाव से हो रहा है साथ ही राशि स्वामी गुरु चन्द्रमा के नक्षत्र में है साथ ही मीन राशि जल तत्त्व की राशि मानी गई है अत: उत्तराखण्ड का सम्बंध जल से होना स्वाभाविक है।
कुछ और तथ्य हैं जो चन्द्रमा और जल का सम्बंध दर्शा रहे हैं। जैसा कि आप चार्ट में देख सकते हैं। चतुर्थेश बुध भी अष्टम में है वह मंगल के नक्षत्र और चन्द्रमा के उपनक्षत्र में है। चतुर्थ भाव में बैठा राहु गुरु के नक्षत्र में है और गुरु चंद्रमा के नक्षत्र में है। आम तौर पर किसी भी कुण्डली के छठा, आठवां और बारहवां भाव कुंडली वाले के लिए विषम परिस्थियां उत्पन्न करते हैं। यहां षष्ठेश सूर्य गुरु के नक्षत्र में है और गुरु चंद्रमा के नक्षत्र में है। साथ ही सूर्य शुक्र की राशि में है जो कि जलीय ग्रह है और चंद्र के नक्षत्र में स्थित गुरु के नक्षत्र में है।
तबाही की स्थिति में लग्न और लग्नेश का शनि और मंगल से पीडित होना आमतौर पर पाया जाता है। साथ ही सूर्य भी किसी न किसी रूप से पीडित रहता है।इस कुण्डली में हम देख रहे हैं कि लग्नेश गुरु शनि के साथ है और लग्न को मंगल देख रहा है। सूर्य ग्रह नीच का होकर अष्टम भाव में स्थित है। ये स्थितियां इस बात का संकेत कर रही हैं कि इस प्रदेश पर बीच बीच में आपदाओं का प्रकोप देखने को मिलेगा। और जैसा कि आपको पता ही होगा इसके पहले भी उत्तरकाशी में साल 2012 में तबाही आ चुकी है।
उत्तराखण्ड पर ये आपदाएं कब आ सकती हैं? जब लग्न, लग्नेश और सूर्य से किसी न किसी प्रकार से शनि और मंगल का सम्बंध एक साथ बने। यदि इसमें राहु का भी किसी न किसी प्रकार से सम्बंध बन जाए तो विपत्ति का दायरा काफ़ी बड़ा हो सकता है।
आइए अब उस दिन की स्थिति को देख लिया जाय जिस दिन से इस बार की तबाही का आगाज हुआ।
तबाही के दिन का गोचर:
आप देख सकते हैं कि उस दिन कुण्डली के चतुर्थ भाव में चार ग्रह विद्यमान थे। लग्न पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं थी। लग्नेश अस्त था। धर्मेश और भाग्येश मंगल भी अस्त था। लग्नेश पर राहु का प्रभाव था अत: राहु के साथ बैठे शनि का भी प्रभाव था। इस प्रकार न केवल लग्नेश गुरु बल्कि चतुर्थेश बुध के साथ ही सूर्य और शुक्र भी शनि और राहु से पीडित थे। सूर्य मंगल के नक्षत्र में था। गुरु भी मंगल के नक्षत्र में था। इस प्रकार हम देखते हैं कि लग्न और लग्नेश तथा सूर्य तीनो पर मंगल, शनि और राहु का प्रभाव दिख रहा है और उस समय मंगल जलकारक ग्रह चन्द्रमा के नक्षत्र में था। शुक्र और गुरु की युति भी किसी धार्मिक मामले को लेकर होने वाली परेशानी का द्योतक मानी गई है।उस दिन चन्द्रमा सूर्य की राशि में मंगल से दृष्ट था। ये सभी स्थितियां किसी बडी घटना का संकेत कर रही हैं। जो कि सबके सामने है।
दु:ख का विषय यहीं है कि ये सभी बातें हम घटना घटने के बाद जान पाते हैं। अगर इस मामले में आप हमें कसूरवार ठहराते हैं तो मैं व्यक्तिगत तौर इसे स्वीकार करने को तैयार हूं लेकिन हमसे ज्यादा कसूर वार वो लोग हैं ज्योतिष विद्या को बेकार और ढकोसला मानते हैं। अगर इसे सार्थक मान कर इस पर और काम (शोध) किया जाएगा तो घटना घटने से पहले सटीक जानकारी मिलना सम्भव है। आज भी अगर हम कोई ऐसी भविष्यवाणी करें तो लोगों को डराने और सनसनी फ़ैलाने के आरोप में हम पर तथाकथित अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है ऊपर से इतनी बडी दुनिया, इतना बडा देश, हर तरफ़ ध्यान भी तो नहीं जाता। अत: अगर वाकई इस विद्या का लाभ लेना हो तो सरकार को इसे मान्यता देकर और शोध करवाना पडेगा और हर स्तर पर एक सुयोग्य ज्योतिषी की नियुक्ति करनी चाहिए। केवल ये कहने से काम नहीं चलेगा कि ज्योतिषी सांप निकल जाने पर लकीर पीटते हैं।