आषाढ़ी एकादशी आज, जानें क्यों सो जाते हैं भगवान?

देवशयनी एकादशी पर शुभ कार्य क्यों होते हैं वर्जित? जानें आषाढ़ी एकादशी की पूजा-विधि एवं पारण मुहूर्त और समझें इसका धार्मिक महत्व।


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हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को अाषाढ़ी एकादशी कहते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से इस तिथि का विशेष महत्व है। शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चतुर्मास (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद एवं अश्विन) के लिए क्षीरसागर में शयन मुद्रा में चले जाते हैं इसी कारण इस तिथि को देवशयनी अथवा हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत धारण करने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। अतः श्रद्धालुगण इस पावन दिन के अवसर पर भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं।

देवशयनी एकादशी की पूजा विधि


देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विधिवत तरीके से भगवान विष्णु की जाती है। एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहा जाता है। नियमानुसार एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है, साथ ही एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि से पूर्व करना अनिवार्य है।

अाषाढ़ी एकादशी का पारण मुहूर्त


आषाढ़ी एकादशी पारण मुहूर्त:
07:07:22  से 08:15:02 तक, 5 जुलाई
अवधि
1 घंटे 7 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय
07:07:22, 5 जुलाई

नोटः उपरोक्त समय नई दिल्ली (भारत) के लिए है। जानें अपने शहर में पारण का मुहूर्त

देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन इस प्रकार करें-

  1. एकादशी के दिन प्रातःकाल उठना चाहिए।
  2. घर की साफ-सफाई के बाद स्नान करें और घर में गंगा जल का छिड़काव करें।
  3. पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें व षोडशोपचार विधि से पूजन करें। इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटे।
  4. अंत में गादी-तकिये पर भगवान विष्णु को शयन कराएं।


आषाढ़ी एकादशी का धार्मिक महत्व 


पुराणों में आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व मिलता है। मान्यता है कि, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और भगवान प्रसन्न होते हैं। आषाढ़ी एकादशी, देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी भगवान विष्णु का शयन काल होता है। इसी दिन से चौमासे का आरंभ माना जाता है। क्योंकि भगवान विष्णु चार मास (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद एवं अश्विन) के लिए निद्रा में रहते हैं इसलिए इस समय में विवाह समेत कई शुभ कार्य वर्जित माने गये हैं। इन चार महीनों में पृथ्वी के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। आषाढ़ी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं।

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