जानें कार्तिक पूर्णिमा व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त व संपूर्ण पूजा-विधि। साथ ही पढ़ें देव दीपावली पर दीपदान से जुड़ी पौराणिक कथा।
हिंदी धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध कर उसे मोक्ष दिलाया था, इसलिए कई राज्यों में इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। ये पर्व हर वर्ष दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन आता है इसलिए ये देव दिवाली के नाम से भी विख्यात है। यूँ तो ये पर्व देशभर में मनाया जाता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्साह यूपी के बनारस और काशी में देखने को मिलता है। इस दिन गंगा के तटों पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर मां गंगा की पूजा व आरती की जाती है। इस अदभुद नज़ारे को देखने दुनिया भर में लाखों लोग गंगा नदी के घाटों पर पहुँचते हैं और दीए जलाते व दीपदान करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत मुहूर्त
कल मंगलवार यानि 12 नवंबर 2019 को कार्तिक पूर्णिमा देशभर में मनाई जाएगी। ये शुभ तिथि हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आती है, इसलिए भी इसे कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली कहा जाता है। ज्योतिष अनुसार अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र होती है तो इसे ‘महाकार्तिकी’ कहा जाता है। इसके साथ ही भरणी नक्षत्र होने पर भी इस पूर्णिमा से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। चूँकि इस वर्ष इस दिन चंद्र भरणी नक्षत्र में होंगे इसलिए भी इस वर्ष इस पर्व का महत्व बढ़ जाता है।
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शास्त्रों की माने तो यही वो शुभ तिथि थी जब भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। इसलिए भी इस दिन गंगा स्नान करने और दीप-दान करने का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि जो भी मनुष्य इस दिन दीप दान कर गंगा स्नान करता है तो उसे इस जन्म में दस यज्ञों के समान फलों की प्राप्त होता है। इस पर्व की महत्ता को देखते हुए ही इसे त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) ने महापुनीत पर्व बताया है।
कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
साल भर आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियों में से कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा सबसे पवित्र मानी जाती है। इसलिए इस दिन किये जाने वाले सभी दान-पुण्य का फल शुभ साबित होता है। कहा जाता है कि यदि इस दिन संध्या-काल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान किया जाए तो व्यक्ति के सभी पुनर्जन्म के कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा
इस पावन दिन को लेकर कई प्रकार की पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। उन्ही में से एक कहानी के अनुसार प्राचीन काल में त्रिपुर नाम के एक राक्षस ने अपनी शक्तियाँ बढ़ाने के लिए करीब एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। उसकी उसी तपस्या के दुष्प्रभाव ने सभी मनुष्य और देवता भयभीत हो गए थे। ऐसे में सभी देवताओं ने उसके तप को भंग करने के लिए एक योजना के अनुसार उसके समक्ष सुन्दर अप्सराएँ भेजने का निर्णय लिया। लेकिन बावजूद इसके देवताओं की ये योजना असफल रही जिसके परिणामस्वरूप त्रिपुर राक्षस का तप सफल हुआ और उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी स्वयं उन्हें दर्शन देते हुए उसे एक वरदान मांगने को कहा।
असुर त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए कहा कि, ‘मैं न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्यों के हाथों से’। इसके बाद तथास्तु कहते हुए ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया। वरदान पाकर मानो राक्षस त्रिपुर का अहंकार बढ़ गया। उसने देव लोक में अपने अत्याचारों से सभी देवी-देवताओं को परेशान कर दिया। देव लोक पर विजय प्राप्त कर वो कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई करने लगा। जिसके बाद भगवान शंकर ने त्रिपुर को युद्ध के लिए ललकारा। अहंकार में अँधा हुआ त्रिपुर महादेव से भी भीड़ गया। दोनों के बीच कई दिनों तक भयंकर युद्ध भी हुआ। जिसके बाद शिव जी ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी की मदद से असुर त्रिपुर का संहार किया। माना जाता है कि जिस दिन असुर त्रिपुर को त्रिदेवो ने मोक्ष दिया उस दिन कार्तिक पूर्णिमा ही थी। जिसके बाद समस्त पृथ्वी-लोक व स्वर्ग-लोक में दीप जलाए गया।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत और धार्मिक कर्मकांड
मान्यता अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान, व अन्य दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है। चलिए जानते हैं इस दिन किये जाने वाले सभी धार्मिक कर्मकांड:-
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल जल्दी उठे।
- इसके बाद सूर्य देव के नग्न आँखों से दर्शन करते हुए उसके समक्ष सच्ची भावना से व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें।
- इस दिन मुख्य रूप से चंद्रोदय पर छः कृतिकाओं- शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुईया और क्षमा का पूजन करना न भूलें।
- देव दीपावली के दिन मवेशियों, रथ, घी, अन्न आदि का दान करना शुभ होता है। माना जाता है कि ऐसा करने से हर प्रकार की आर्थिक तंगी दूर होती है।
- जबकि कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर प्रत्येक पूर्णिमा पर व्रत रखने और रात्रि में जागरण करने से घर में सुख-समृद्धि आती हैं।
- इस दिन व्रत रखने वाले लोगों को किसी पवित्र नदी, कुण्ड व सरोवर के किनारे हवन करके ज़रूरतमंदों को भोजन करना चाहिए।
- इस दिन पवित्र यमुना में स्नान करके राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करने का भी विधान है। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली आती है।
- मान्यता है कि इस दिन व्रत पारण के दौरान यदि बैल यानी नंदी का दान किया जाएं तो भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
हम आशा करते हैं कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। हमारी ओर से आप सभी को कार्तिक पूर्णिमा व देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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