श्रावण के सोमवार २०१३

पंडित हनुमान मिश्रा
2013 में श्रावण मास में 29 जुलाई को पहला सोमवार है।
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श्रावण मास कहें या फ़िर सावन का महीना। जब भी इस महीने का नाम आता है, दिमाग में हरिआली का दृश्य किसी चलचित्र की भांति चलने लगता है। न केवल प्रकृति अपितु हम सबके जीवन को हरा भरा बनाए रखने के लिए हमारे ऋषियों और मनीषियों ने सावन के महीने में शिव उपासना पर विशेष बल दिया है। क्योंकि भगवान शिव भोलेनाथ हैं वो शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। दूसरी बात ये कि नौ ग्रहों में से चंद्र ग्रह को मन का कारक ग्रह कहा गया है और ये भी कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। यदि मन प्रसन्न हो तो कष्ट का अनुभव नहीं होता है और चन्द्र का निवास भगवान भोलेनाथ के शीश पर माना गया है। यानी भोलेनाथ की उपासना से अन्य कष्ट तो दूर होते ही हैं साथ ही चन्द्रमा भी प्रसन्न हो जाता है और हमें तमाम कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। सावन के महीने को भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना माना गया है। और सोमवार का दिन चन्द्रमा और शिव जी दोनो का माना गया है। अत: सावन के सोमवार को बहुत ही अधिक महत्त्व दिया गया है। शिव जी के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है।



इस बार यानी कि 2013 में श्रावण मास में 29 जुलाई को पहला सोमवार है, इसके अलावा अगस्त के महीने में 05 अगस्त, 12 अगस्त और 19 अगस्त को सोमवार व्रत हैं। कहा गया है कि श्रावण मास के इन समस्त सोमवारों के दिन व्रत लेने से पूरे साल भर के सोमवार व्रत का पुण्य मिलता है। सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। अविवाहित लड़किया अनुकूल वर पाने के लिए यह व्रत कर सकती हैं। अथवा अपने भाई, पिता की उन्नति के लिए तथा सुहागन महिला अपने पति एवं पुत्र की रक्षा के लिए पूरी श्रद्धा के साथ व्रत धारण करती हैं। इस व्रत से सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी के धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है। विद्यार्थियों को विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार और काम मिलने से मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। श्रावण व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति तथा सम्मान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।

सावन मे सोमवार व्रत के दिन प्रातः काल ही स्नान के पश्चात सफेद वस्त्र धारण कर काम क्रोध आदि का त्याग कर किसी शिव मंदिर या फ़िर घर पर ही भगवान गणेश के पूजन के साथ शिव पार्वती और नंदी बैल की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी का प्रयोग किया जाता है साथ ही चढ़ाने के लिए जनेऊ, चंदन, रोली, बेल पत्र, भांग और धतूरा की आवश्यकता होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि शिवजी की पूजा-अराधना में गंगाजल से स्नान और भस्म अर्पण का विशेष महत्त्व है। पूजा में धतूरे के फूलों, धतूरे के फल, सफेद चन्दन, भस्म आदि का प्रयोग अनिवार्य है। इसके अलावा धूप, दीप और दक्षिणा भी आवश्यक है। इसके अलावा भोलेनाथ की सवारी नंदी महराज यानी कि नंदी बैल के लिए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान शिव जी का पूजन किया जाता है। नैवेद्य में अभिष्ट अन्न के बने हुए पदार्थ अर्पण किए जाते हैं। उसके पश्चात, “ओम नमो दशभुजाय त्रिनेत्राय पन्चवदनाय शूलिने। श्वेतवृषभारुढ़ाय सर्वाभरणभूषिताय। उमादेहार्धस्थाय नमस्ते सर्वमूर्तयेनमः।” - इन मंत्रो से पूजा व हवन किया जाता है। रात्रिकाल में घी और कपूर सहित धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। यही प्रक्रिया लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को अपनाई जाती है। ऐसा करने से आपके सम्पूर्ण कार्य सिद्ध होते हैं।

आशा है आप सभी इस परम पवित्र श्रावन मास के सोमवारों को व्रत करेंगे और अपनी सम्पूर्ण समस्याओं से मुक्ति पाएंगे और अपने सफलता के मार्ग प्रशस्त करेंगें।

॥ओम नम: शिवाय॥

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