देवोत्थनी या देव प्रबोधिनी एकादशी

पंडित हनुमान मिश्रा

विष्णु पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी जिसे हरिशयनी एकादशी कहा जाता है को भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। चार मास के बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इस कारण से देशभर में कार्तिक एकादशी को देवोत्थान अर्थात देवताओं के जागने की तिथि के रूप में मनाने का प्रचलन पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। इस एकादशी को तुलसी एकादश भी कहा जाता है। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से कराया जाता है। मान्यता है कि इस प्रकार के आयोजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी शालिग्राम का विवाह करने से वही पुण्य प्राप्त होता है जो माता-पिता अपनी पुत्री का कन्यादान करके पाते हैं। इस वर्ष यह एकादशी 24 नवम्बर 2012 के दिन है।


एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस का संहार लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देवोत्थनी एकादशी कहलाया। इस दिन भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार इस एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक होता है। विष्णुपुराण में कहा गया है कि किसी भी कारण से चाहे लोभ के वशीभूत होकर, चाहे मोह के वशीभूत होकर ही जो लोग एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का पूजन अभिवंदन करते हैं वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। वहीं सनत कुमार इस एकादशी की महत्त्ता का वर्णन करते हुए ने लिखा है कि जो व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करता वह नरक का भागी होता है। महर्षि कात्यायन के अनुसार जो व्यक्ति संतति, सुख सम्पदा, धन धान्य व मुक्ति चाहता है तो उसे देवोत्थनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा के पाठ व व्रत रखना चाहिए।

भागवतपुराण के अनुसार विष्णु के शयन काल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध होता है। शास्त्रों के अनुसार श्रीहरि विष्णु इस समय क्षीरसागर में शयन अवस्था में होते हैं तथा पृथ्वी इस काल में रजस्वला रहती है। धर्म शास्त्रीय मान्यताओं एवं सिद्धांतों के अनुसार इस समय किसी भी मांगलिक कार्य में स्त्री सहभागी नहीं बन पाती है। पृथ्वी भगवान विष्णु की पांच पत्नियों में से एक है। प्रत्येक मांगलिक कार्यो में भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान किया जाता है। इस समय पृथ्वी पर वर्षा काल रहता है और यहां जल अधिकता रहती है। अत: इस अवधि में मांगलिक कृत्यों का आयोजन नहीं होता लेकिन देवोत्थनी (देवउठनी) एकादशी के बाद से सभी मांगलिक विवाहादि कार्य आरम्भ होने का विधान है। इस वर्ष 24 नवम्बर 2012 से 6 फ़रवरी 2013 के बीच में विवाह के केवल 20 मुहूर्त हैं, जो कि बहुत कम हैं। क्योंकि 15 दिसम्बर 2012 से 31 जनवरी 2013 के बीच मध्य पौष धनु संक्रांति का दोष रहेगा जबकि 11 फ़रवरी 2013 के बाद शुक्र का वृद्धत्त्व प्रारम्भ हो जाएगा। वही 14 फ़रवरी 2013 से 22 अप्रैल 2013 तक शुक्र अस्त रहेगा। इन कारणों से इस इस वर्ष विवाह मुहूर्त कम रहेंगे।

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