कार्तिक माह में स्नान का महत्‍व

 
हमारे धर्मशास्त्रों में अशांति, पाप आदि से बचने के कई उपाय बताए गए हैं। उन्हीं में से कार्तिक मास में किए गए स्नान-व्रत भी एक है। कार्तिक का महीना बहुत ही पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा गया है कि इस माह में की पूजा तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व का वर्णन स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।

स्कंद पुराण में कार्तिक माह के महत्‍व के बारे में कहा गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नही, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
   
कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान व सौ बार किए गए माघ स्नान, वैशाख माह में नर्मदा नदी पर किए गए करोड़ बार स्नान के समान माना गया है। कहा गया है कि जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्ममुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नानकर भगवान की पूजा किए जाने का विधान है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कलियुग में कार्तिक मास में किए गए व्रत, स्नान व तप को मोक्ष प्राप्ति का बताया गया है

कार्तिक माह में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश करने का बहुत महत्व माना गया है. इस माह में भगवान केशव का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए. ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है।

साल 2012 में कार्तिक महीने का शुभारम्भ ३० अक्तूबर से हो रहा है, लेकिन कार्तिक स्नान का आरंभ 29 अक्तूबर से ही हो जाएगा। इस पूरे माह स्नान, दान, दीपदान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनने का विधान है। ऎसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है।

कार्तिक स्नान की विधि -

श्रद्धालुओं को गंगा तथा यमुना में सुबह - सवेरे स्नान करना चाहिए। जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर सकते उन्हें प्रात:काल अपने घर के समीप स्थित जलाशय में स्नान करना चाहिए। व्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद आधे शरीर तक (नाभिपर्यन्त) जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। इसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारणकर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने का विधान है। विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को लगाकर स्नान करने का विधान है। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

कार्तिक स्नान का वैज्ञानिक महत्व -

कार्तिक मास में नदी स्नान का धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है। वर्षा ऋतु के बाद जब आसमान साफ होता है और सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी तक आती है ऐसे में प्रकृति का वातावरण शरीर के अनुकूल होता है। प्रात:काल उठकर नदी में स्नान करने से ताजी हवा शरीर में स्फूर्ति का संचार करती है। इस वातावरण से कई शारीरिक बीमारियां स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

अत: हम सभी को कार्तिक स्नान जरूर करना चाहिए। इससे हमारे घर में सुख शांति, आरोग्यता और वैभव हमेशा बने रहेंगे साथ आप पुण्य के भागीदार भी बनेंगे।

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