तुलसी विवाह आज

भगवान विष्णु और तुलसी (पौधा) के पवित्र विवाह को तुलसी विवाह कहा जाता है। यह हिन्दू विवाह ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है, इसलिए आने वाले पवितत्र समारोह के लिए तैयार हो जाएँ एवं तुलसी विवाह की रीति-रिवाज से जुड़ीअन्य जानकारी को जानने के लिए पढ़ें यह ब्लॉग!




तुलसी विवाह भगवान विष्णु और तुलसी (पौधा) के बीच वैवाहिक संबंध को दर्शाता है। हिन्दू धर्म में तुलसी को बेहद ख़ास और एक अतुलनीय पौधा माना गया है, बल्कि बिना तुलसी के किसी भी हिन्दू परिवार का घर अपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि इस पौधे को घर के प्रवेश द्वार की तरफ़ होना चाहिए, क्योंकि इससे घर के भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का आगमन होता है। 

इस वर्ष तुलसी विवाह 11 नवंबर को रचाया जाएगा। 

कई लोगों का मानना है कि तुलसी माँ लक्ष्मी जी का साकार रूप हैं, जो कि भगवान विष्णु जी की अर्धाग्नि हैं। तुलसी विवाह का समारोह प्रबोधिनि एकादशी एवं कार्तिक पूर्णिमा के बीच कभी भी संपन्न कराया जा सकता है। यह समारोह केवल भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह रूप में ही नहीं, वरन मॉनसून ऋतु की समाप्ति एवं हिन्दू विवाह ऋतु का आगमन का भी प्रतीक है। इसके अलावा तुलसी अध्यात्मिक और औषिधि की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है और यह बड़ी संख्या में मानसिक व शारीरिक रोग में रामबाण है।

तुलसी विवाह समारोह


रिति-रिवाज के अनुसार तुलसी विवाह कार्तिक मास की एकादशी के ठीक एक दिन बाद होता है। कहा जाता है कि तुलसी विवाह में कन्यादान सबसे बड़ा दान है। तुलसी विवाह के दिन तुलसी को एक दुल्हन की तरह सजाया जाता है। वहीं भगवान विष्णु की प्रतिमा को दूल्हा बनाया जाता है। उसके बाद दोनों को एक साथ रेशम की एक डोर से बांधा जाता है। यह दोनों के अट्टू बंधन को प्रकट करता है। यह सब प्रक्रिया वैवाहिक मंत्रोच्चारण के साथ होती है और भगवान विष्णु और तुलसी के ऊपर सिंदूरी रंग में रगे हुए चावल डालकर शादी को विधिपूर्वक संपन्न किया जाता है। तुलसी विवाह के अवसर पर विशेष प्रकार का व्यंजन बनाकर शालीग्राम (भगवान विष्णु) और तुलसी का भोग लगाया जाता है। इसी दिन से ही हिन्दू वैवाहिक ऋतु प्रारंभ होती है।

तुलसी विवाह की कथा


तुलसी विवाह से संबंधित कई प्रसंग सामने आते हैं जिनमें से यहाँ एक कथा का वर्णन किया जा रहा है। तुलसी का जन्म वृंदा (माँ लक्ष्मी जी का अवतार) के रूप में हुआ था और उनका विवाह असुर राजा जालंधर के साथ हुआ। वे अपने पति को बुरे कार्यों को करने से रोक न सकीं, परंतु वृंदा अपने पति के अनैतिक कर्मों को प्रभावहीन बनाने और देवों से उसके प्राणों की रक्षा के लिए प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करती थीं। लेकिन जालंधर का अंत तो निश्चित था। ऐसे में भगवान विष्णु वृंदा के हृदय की परवाह न करते हुए सभी देवताओं के आग्रह पर जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के साथ रहने लगे। जब इस बात का आभास वृंदा को हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु को शालीग्राम पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इसके अलावा वृंदा ने विष्णु जी को अगले जन्म में अपनी पत्नी से बिछड़ने का भी श्राप दिया जिसके कारण त्रेतायुग में भगवान राम को सीता माता से बिछड़ना पड़ा। उधर, वृंदा अपने पति की मृत्यु सह न सकीं और वियोग में तुलसी का रूप धारण कर लिया। तब से तुलसी पत्ता भगवान विष्णु की पूजा आराधना के प्रयोग में लाया जाने लगा। तुलसी भगवान विष्णु की बेहद प्रिय है। इसी के कारण हर साल उनके योग को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण को एक राजकुमारी से प्रेम हो गया था। कहते हैं कि वह राजकुमारी तुलसी का अवतार थीं, लेकिन जब यह बात भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांग्नि को पता चली तो उन्होंने उस राजकुमारी को तुलसी होने का श्राप दे दिया।

एक और प्रसंग आता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने उनसे उनके बराबर सोना तोलकर उसे प्रजा में बाँटने का आग्रह किया, लेकिन श्रीकृष्ण के वजन से सोने का भार कम निकला, इसे देखकर श्रीकृष्णजी की दूसरी अर्धाग्नि रुक्मणी ने यह सुझाव दिया कि तुलसी के पत्तों को सोने पर रखा जाए और यह करने के बाद सोने का वजन वंशीवाले के मुकाबले अधिक हो गया था।



तुलसी का महत्व


तुलसी पौधा और तुलसी पूजन प्रत्येक हिन्दू का अभिन्न अंग है। यह पौधा न केवल अध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें तमाम तरह की औषधियाँ भी विद्यमान हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से तुलसी पौधा वायु में प्रदूषण को कम कर उसे शुद्ध करता है। इसके साथ ही यह मच्छर एवं मक्खियों से होने वाले रोगों को भी भगाता है। तुलसी का तेल सिरदर्द और खाँसी-जुकाम में रामबाण है। 

तुलसी लगाने से पूर्व उस स्थान को अच्छी तरह से स्वच्छ कर लेना चाहिए। इसकी पत्तियों पर कुमकुम मलना चाहिए। महिलाएँ तुलसी की आराधना के लिए उसके आसपास दीपक जलाकर आरती करती हैं।

भारतीय संस्कृति में अक्सर महिलाओं की विशेषताओं को तुलसी के अनुरूप परखा जाता है। कहा जाता है कि एक महिला अपने सभी गुण-दोषों के साथ तुलसी का रूप है। महिलाएँ सच्चे मन से इसकी आराधना करती हैं। 

तुलसी विवाह हर साल महिलाओं के द्वारा बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। 

एस्ट्रोसेज की ओर से आपको तुलसी विवाह की हार्दिक शुभकामनाएँ !

जीवन में सकारात्मकता एवं समृद्धि लाने के लिए मनाए तुलसी विवाह जो भगवान विष्णु और माँ तुलसी के पवित्र बंधन का एक अटूट रिश्ता है।!

Related Articles:

No comments:

Post a Comment