गायंत्री जयंती पर ऐसे करें माँ गायत्री की पूजा, होंगी कामनाएँ पूर्ण ! आइए जानते हैं गायत्री जयंती की पूजा विधि और हिन्दू धर्म में इस पर्व का महत्व।
गायत्री जयंती, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर वर्ष मनाई जाती है। हालाँकि इसकी तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत हैं। इसलिए कुछ स्थानों पर गायत्री जयंती ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भी मनाए जाने का विधान है। इससे अलग श्रावण मास की पूर्णिमा को भी अधिकांश जगह गायत्री जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है।
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ऐसा कहते हैं कि इसी दिन माँ गायत्री का अवतरण हुआ था। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में माँ गायत्री को चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्व) की देवी माना जाता है। इसी कारण उन्हें वेद माता के नाम से पुकारा जाता है। गायत्री जयंती के दिन माँ गायत्री पूजा-आराधना विधि-विधान से की जाती है। इस दिन माँ के भक्त माँ की कृपा पाने के लिए गायत्री मंत्र का जाप, गायत्री चालीसा का पाठ और गायत्री आरती का गान करते हैं।
गायत्री जयंती का धार्मिक महत्व
माँ गायत्री को हिन्दू संस्कृति की जन्मदात्री के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, चारों वेदों और श्रुतियाँ इनकी उत्पत्ति माँ गायत्री के द्वारा ही हुई हैं। माँ गायत्री देवी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य देवी हैं। इसी कारण माता को देवमाता भी कहते हैं। माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी जी माँ गायत्री का ही अवतार हैं।
जब ब्रह्मा जी ने किया माँ गायत्री से विवाह
माँ गायत्री ब्रह्मा जी की पत्नी भी हैं। एक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी किसी यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे लेकिन किसी कारण से उनकी पत्नी सावित्रि देवी वहाँ मौजूद नहीं थी। मान्यता है कि धार्मिक कार्यों में एक विवाहित पुरुष के साथ पत्नी का होना अधिक शुभ और फलदायी माना जाता है। इसलिए ब्रह्मा जी ने यज्ञ में शामिल होने के लिए वहाँ उपस्थित माँ गायत्री से विवाह कर लिया।
गायत्री जयंती के दिन होने वाली पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर गंगा नदी या गंगा स्नान करें।
- व्रत के लिए संकल्प लें।
- इस दिन माँ गायत्री की आराधना करें।
- गायत्री चालीसा का पाठ करें।
- गायत्री मन्त्र का जप करके हवन करें।
- श्री आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- पूजा के समापन में गायत्री आरती का पाठ करें।
- इस दिन अन्न, गुड़ एवं गेहूँ का दान करना शुभ माना जाता है।
- भंडारे का आयोजन अथवा लोगों को मीठा शरबत बांटें।
- गायत्री जयंती के दिन पड़ेगी निर्जला एकादशी
निर्जला एकादशी
गायत्री जयंती के दिन निर्जला एकादशी भी है। हिन्दू धर्म में इस एकादशी का बड़ा महत्व माना जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु जी की आराधना होती है। इस दिन लोग बिना जल को ग्रहण कर एकादशी का व्रत रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम इस व्रत का पालन भीमसेन नाम के व्यक्ति ने किया था इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत सच्ची श्रद्धा और मन के साथ करता है कि उसे सभी एकादशी के व्रत के फलों के योग के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को दीर्घायु और मोक्ष प्राप्त होता है। इस एकादशी को पूजा पाठ एवं दान-पुण्य करने का विधान है।
गायत्री मंत्र -
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
गायत्री चालीसा
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड॥ शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥१॥
जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥२॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥१॥
अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥२॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥३॥
हंसारूढ श्वेताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन- बिहारी॥४॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥५॥
ध्यान धरत पुलकित हित होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥६॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥७॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥९॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो शारद शत मुख गुन गावैं॥१०॥
चार वेद की मात पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥११॥
महामन्त्र जितने जग माहीं। कोउ गायत्री सम नाहीं॥१२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥१३॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥१४॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥१५॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥१६॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥१७॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जगमे आना॥१८॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा॥१९॥
जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥२०॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई॥२१॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥२२॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥२३॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥२४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥२५॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें। रोगी रोग रहित हो जावें॥२६॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥२७॥
गृह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥२८॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख संपति युत मोद मनावें॥२९॥
भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥३०॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥३१॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥३२॥
जयति जयति जगदंब भवानी। तुम सम और दयालु न दानी॥३३॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे। सो साधन को सफल बनावे॥३४॥
सुमिरन करे सुरूचि बड़भागी। लहै मनोरथ गृही विरागी॥३५॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता॥३६॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी। आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥३७॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वांछित फल पावें॥३८॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ। धन वैभव यश तेज उछाउ॥३९॥
सकल बढें उपजें सुख नाना। जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥४०॥
दोहा - यह चालीसा भक्तियुत पाठ करै जो कोई। तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय॥'
गायत्री माँ की आरती
जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
जयति जय गायत्री माता...
आदि शक्ति तुम अलख निरञ्जन जग पालन कर्त्री।
दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह दारिद्रय दैन्य हर्त्री॥
जयति जय गायत्री माता...
ब्रहृ रुपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे।
भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे॥
जयति जय गायत्री माता...
भयहारिणि भवतारिणि अनघे, अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥
जयति जय गायत्री माता...
कामधेनु सत् चित् आनन्दा, जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता॥
जयति जय गायत्री माता...
ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्रार, सुषुम्ना, शोभा गुण गरिमे॥
जयति जय गायत्री माता...
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रहाणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरुपा, वाणी, विघा, कमला, कल्याणी॥
जयति जय गायत्री माता...
जननी हम है, दीन, हीन, दुःख, दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत, तऊ बालक है तेरे॥
जयति जय गायत्री माता...
स्नेहसनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै॥
जयति जय गायत्री माता...
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥
जयति जय गायत्री माता...
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत् मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
जयति जय गायत्री माता..
हम आशा करते हैं कि गायत्री जंयती से संबंधित हमारा यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। गायत्री जयंती की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ ! इस लेख से संबंधित आप अपनी टिप्पणी नीचे कमेंट बॉक्स में भी दे सकते हैं। धन्यवाद !
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