वट सावित्री पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि

प्रत्येक माह की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है लेकिन ज्येष्ठ माह में आने वाली पूर्णिमा सबसे ज्यादा पवित्र एवं पावन मानी गई है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन विशेष तौर पर स्नान और दान का बहुत अधिक महत्व होता है। माना गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति इस दिन गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना के पश्चात दान दक्षिणा करता है तो उस व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कुछ राज्यों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी मनाया जाता है जिसका महत्व व पूजा विधि भी वट सावित्री व्रत के समान ही होती है। स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को ही रखा जाना चाहिए। इसीलिए गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत के कई राज्यों में महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा को ही वट सावित्री व्रत करती हैं। जबकि उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को करना शुभ माना जाता है।


ज्येष्ठ पूर्णिमा/ वट सावित्री व्रत मुहूर्त


16 जून, 2019 (रविवार)  (पूर्णिमांत के अनुसार)

जून 16, 2019 को 14:03:50 से पूर्णिमा आरम्भ

जून 17, 2019 को 14:02:24 पर पूर्णिमा समाप्त



नोटः उपरोक्त समय केवल नई दिल्ली के लिए है। 

वट पूर्णिमा व्रत मुहूर्त एवं महत्व


इस वर्ष 2019 में ज्येष्ठ मास की शुभ पूर्णिमा तिथि 16 जून को पड़ रही है। ज्योतिष विशेषज्ञ अनुसार पूर्णिमा तिथि यदि चतुर्दशी के दिन दोपहर से पहले व सूर्योदय के पश्चात प्रारंभ हो तो वट पूर्णिमा उपवास पहले दिन करना चाहिए अर्थात चतुर्दशी विद्धा पूर्णिमा को ही यह व्रत ग्रहण करने का विधान है। ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व स्नान-दान आदि के साथ-साथ भोले नाथ के दर्शनों के लिए भी होता है। दरअसल भगवान भोलेनाथ के दर्शन हेतु अमरनाथ की यात्रा के लिये गंगाजल लेकर आने की शुरुआत आज के दिन से ही आरंभ होती हैं।

ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा व्रत पूजा विधि 


जैसा हमने ऊपर बताया कि ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी मनाया जाता है इसलिये वट सावित्री व्रत पूजा विधि की तरह ही वट पूर्णिमा का व्रत किया जाना चाहिए। इस दिन विशेष रूप से वट वृक्ष यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करने का विधान है। 

  • इस दिन महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके नए वस्त्र और सोलह श्रंगार करना चाहिए।
  • शाम के समय वट सावित्री की पूजा के लिए व्रती सुहागनों को बरगद के पेड़ के नीचे सच्चे मन से सावित्री देवी की पूजा करनी होती है। 
  • पूजा के लिए महिलाओं को एक टोकरी में पूजन की सारी सामग्री रख कर पेड़ के नीचे जाना होता है और पेड़ की जड़ो में जल चढ़ाना होता है। 
  • इसके बाद वृक्ष को प्रसाद का भोग लगाकर उसे धूप-दीपक दिखाना चाहिए। 
  • इस दौरान हाथ पंखे से वट वृक्ष की हवा कर मां सवित्री से आशीर्वाद प्राप्ति के लिए उनकी आराधना करें। 
  • इस प्रक्रिया के पश्चात सुहागनों को अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे धागे या मोली को 7 बार बांधना चाहिए।
  • अंत में वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें। 
  • इसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनका आशिर्वाद लें। 
  • फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि को ग्रहण कर शाम में मीठा भोजन से अपना व्रत खोले। 


वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की पूजन सामग्री 


शास्त्रों के अनुसार जिस तरह वट पूर्णिमा का व्रत और पूजन शुभ मुहूर्त अनुसार ही करना उचित होता है। ठीक उसी प्रकार ये भी माना जाता है कि इस व्रत के शुभ फल हेतु इसकी सही पूजन सामग्री का होना भी उतना ही आवश्यक होता है, अन्यथा ये व्रत अधूरा रह जाता है। वट सावित्री पूर्णिमा पूजन के लिए सत्यवान-सावित्री की मूर्ति (कपड़े की बनी हुई), बांस का बना हुआ एक हाथ पंखा, सूत का लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, सवा मीटर का एक कपड़ा, दो सिंदूरी जल से भरा हुआ पात्र और रोली पूजा सामग्री में ज़रूर रखें। 

वट सावित्री पूर्णिमा पर वट वृक्ष का महत्व


शास्त्रों अनुसार वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशेष महत्व होता है। पीपल की तरह ही वट या बरगद के पेड़ का भी महत्व पौराणिक काल से चला आ रहा है। धार्मिक जानकारों की मानें तो वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवों का वास होता है। इसलिए बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करने व व्रत कथा सुनने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती हैं। वट वृक्ष अपनी लंबी आयु के लिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यह वृक्ष दीर्घ काल तक जीवित रहता है, इसलिए कुछ विशेष वृक्ष अक्षयवट के नाम से भी मशहूर हैं। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष का पूजन कर उसकी आयु की तरह ही अपने पति की भी लंबी आयु की कमाना भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश जी से करती हैं। 

वट सावित्री व्रत की कथा


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावित्री को भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत पतिव्रता स्त्री माना जाता है। सावित्री का मतलब वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। इसी विषय में कहा जाता है कि राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं थी। इसी प्रयोजन से वो संतान प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण करते हुए हर रोज करीब एक लाख आहुतियां देते थे। लगातार 18 वर्षों तक ऐसा करने के पश्चात माँ सावित्री ने उनसे खुश होकर उन्हें दर्शन दिए और उन्हें एक तेजस्वी कन्या का वरदान दिया। जिसके बाद जब राजा के घर बेटी ने जन्म लिया तो उन्होंने उसका नाम सावित्री रखा। राजा की बेटी सावित्री बेहद सुंदर थी, ऐसे में उसकी ही तरह कोई योग्य वर नहीं मिल पाने के चलते राजा दुखी थे। पिता का दुख देख सावित्री स्वयं वर तलााशने तपोवन में भटकने लगी। वहां सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखकर उन्हें अपने पति के रूप में चुना। सत्यवान अल्पायु थे और वे वेद ज्ञाता भी थे। सत्यवान से विवाह करने के दौरान नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान की अल्प आयु के लिए चेतावनी भी दी थी, लेकिन सावित्री ने किसी की भी नहीं सुनी और सत्यवान से ही विवाह कर लिया। पति सत्यवान की मृत्यु का समय जब करीब आया तो सावित्री ने घोर तपस्या की। इस दौरान अपने पति के प्राणों की रक्षा करते हुए सावित्री यमराज से भी भिड़ गईं। जिसके बाद यमराज ने सावित्री की निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। सावित्री ने अपने पति की दीर्घायु होने की कामना की और इस तरह सावित्री ने अपने पति के प्राण बचाए। 

हम आशा करते हैं कि आपको वट पूर्णिमा पर लिखा हुआ हमारा ये लेख पसंद आया होगा। आप अपने सुझाव हमे नीचे कमेंट करके भी दे सकते हैं। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

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