कल शनि जयंती और वट सावित्री पर होगी इच्छा पूरी !

शनि जयंती और वट सावित्री व्रत पर सालों बाद बने चार शुभ योग। पढ़ें कैसे मुहूर्त अनुसार पूजा करके आप भी पा सकते हैं शनि देव से वरदान !


शनि जयंती देश भर में ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाए जाने का विधान है। खुद हिन्दू धर्म में भी व्रत करने और उसके शुभ फलों की प्राप्ति, दान-पुण्य और पितरों की शांति के लिए किये जाने वाले पिंड दान व तर्पण के लिए भी अमावस्या को सबसे ज्यादा शुभ माना गया है। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही शनि जयंती भी मनाई जाती है। अतः इन सभी विशेष कारणों से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व सनातन धर्म में और ज्यादा बढ़ जाता है। इस दिन शनि देव की आराधना व उनका पूजन करने का विशेष विधान है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य पुत्र शनि देव समस्त नवग्रहों में से एक हैं, जो सबसे धीरे अर्थात मंदगति से चलने की वजह से इन्हीं शनैश्चर नाम की उपाधि से भी नवाज़े गए हैं। इन्हें काल या कर्म फल दाता के नाम से भी जाना जाता है। इस विशेष दिन शनि जयंती के साथ-साथ उत्तर भारत में वैवाहिक महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं।

वट सावित्री व्रत


वट सावित्री व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। हालांकि समय के साथ आजकल इस व्रत का पालन कुमारी (कुँवारी) और विधवा महिलाएँ भी करती हैं। जिसका पूजन भी शनि जयंती यानी ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है। इस ख़ास दिन स्त्रियां वट यानि बरगद के वृक्ष का पूजन पूरी विधि व शुभ मुहूर्त अनुसार करती हैं और इस व्रत को करके स्त्रियां सावित्री की तरह ही अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगल कामना करती हैं। माना जाता है कि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस मांगे थे। इसलिए भी इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है।

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वट सावित्री, ज्येष्ठ अमावस्या व शनि जयंती मुहूर्त

3 जून, 2019 (सोमवार)  (पूर्णिमांत के अनुसार)

जून 2, 2019 को 16:41:34 से अमावस्या आरम्भ

जून 3, 2019 को 15:33:15 पर अमावस्या समाप्त


नोटः उपरोक्त समय केवल नई दिल्ली के लिए है।

अमान्त के अनुसार अमावस्या का मुहूर्त देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

वट सावित्री व्रत का मुहूर्त महत्व:


शास्त्रीय पंचांग मीमांस के अनुसार वट सावित्री व्रत अनुष्ठान में दो परम्पराएं यानी दो पक्ष बताए गए हैं।

  1. पहला: उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को, और
  2. दूसरा पक्ष: दक्षिण भारतीय परम्परा अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा को किया जाता है।

विशेष बात ये है कि दोनों ही पक्षों में ये व्रत पूर्व (चतुर्दशी) विद्धा अमावस्या या पूर्णिमा के दिन ही किया जाता है। हिन्दू शास्त्रों अनुसार माना गया है कि इस दिन पतिव्रता सावित्री ने अपने पति को यमपाश से छुड़ाया था। हमारे ज्योतिषी विशेषज्ञों के अनुसार, इस बार ये वट सावित्री व्रत करना महिलाओं के लिए विशेष फलदायी साबित होने वाला है। क्योंकि इस वर्ष इस दिन चार संयोग का निर्माण हो रहा है। जिसमें पहला सोमवती अमावस्या, दूसरा संयोग सर्वार्थ सिद्धि योग, तीसरा संयोग अमृत सिद्धि और चौथा संयोग त्रिग्रही योग बन रहा है। जो इस व्रत को और भी ज्यादा ख़ास बना देता है।

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वट सावित्री व्रत पूजन विधि:


  • वट सावित्री का व्रत पूरे विधि विधान के अनुसार ही करना चाहिए।
  • इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियों को ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी को प्रातः स्नानादि के पश्चात् इस मन्त्र को दौहराना चाहिए:

'मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं च वट सावित्री व्रतमहं करिष्ये।' 

  • इस मन्त्र का संकल्प करके तीन दिन उपवास करना चाहिए।
  • यदि किसी कारण वश ऐसा मुमकिन न हो तो त्रयोदशी को रात्रि भोजन, चतुर्दशी को अयाचित और अमावस्या को उपवास करके शुक्ल प्रतिपदा को अपना व्रत समाप्त करें।
  • इसके बाद अमावस्या के दिन व्रता स्त्री वट वृक्ष के समीप बैठकर बांस के एक पात्र में सप्तधान्य भरकर उसे दो वस्त्रों से ढक दें।
  • इसके साथ ही दूसरे पात्र में ब्रह्मसावित्री तथा सत्य सावित्री की मूर्ति स्थापित करके गन्ध और अक्षत आदि से उसका पूजन करें।
  • इसके बाद वट यानी बरगद के वृक्ष की परिक्रमा लेते हुए उस पर सूत लपेट कर उसका यथाविधि पूजन करें।

ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व


पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के ही दिन सूर्य पुत्र शनि देव का जन्म हुआ था, इस कारण भी ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि देव को सेवा और कर्म का कारक बताया गया हैं। इसलिए इस दिन शनि देव के बुरे प्रभावों को कम करने और उनकी कृपा पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना किये जाने का विधान है। चूँकि शनि देव को कर्म फल दाता कहा जाता है, इसलिए ही उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश माना गया है। यही कारण है कि हमें शनि को अपना शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करने वाले देव समझना चाहिए।

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शनिदेव की पूजा विधि


  • शनि देव की पूजा भी अन्य दूसरे देवी-देवताओं की पूजा की ही तरह बेहद सामान्य होती है।
  • इसके लिए शनि जयंती पर प्रात:काल उठकर जातक को शौचादि से निवृत होकर स्नानादि से शुद्ध होना चाहिए।
  • फिर लकड़ी के पाट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर शनि यंत्र और शनि देव की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  • इसके बाद पूजा स्थान पर एक सुपारी रखकर उसके दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं।
  • शनि देव के प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान कराकर शुद्ध करें।
  • इसके बाद प्रतिमा पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें।
  • पंचोपचार पूजन के बाद शनि मंत्र का कम से कम 108 बार जप भी करें।

शनि का वैदिक मंत्र 

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। 


शनि का तांत्रिक मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः।। 


शनि का बीज मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।

  • मन्त्र की कम से कम एक माला जपने के पश्चात समस्त परिवार शनि चालीसा का पाठ करें और शनि देव की आरती भी करें।

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शनि जयंती पर इन बातों का रखें ध्यान


  • शनि देव की पूजा करने के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर सरसों के तेल की मालिश कर स्नान करना चाहिये।
  • इस दिन शनि मंदिर के साथ-साथ हनुमान जी के दर्शन भी जरूर करने चाहियें।
  • शनि जयंती या शनि पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पूरा पालन करना चाहिये।
  • इस दिन यदि कोई यात्रा करनी पड़ रही है तो उसे स्थगित कर दें।
  • किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का दान दें। 

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  • गाय और कुत्तों को भी तेल में बने पदार्थ खिलाएं।
  • बुजुर्गों व जरुरतमंदों की सेवा कर उनका आशीर्वाद लें।
  • इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से परहेज करें।
  • पूजा करते वक़्त शनि देव की प्रतिमा या तस्वीर को देखते समय शनि देव की आंखो में न देखें।

हम आशा करते हैं कि एस्ट्रोसेज का ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

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