मंगला गौरी व्रत कल: सावन में शिव जी के साथ पाएँ माँ गौरी का वरदान

मंगला गौरी व्रत सावन के महीने में प्रथम मंगलवार से प्रारंभ होकर माह के सभी मंगलवारों को किया जाने वाला व्रत है। यह एक ऐसा व्रत है जो पवित्र श्रावण मास में भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती की कृपा पाने का सबसे सुलभ मौका प्रदान करता है और ऐसा ही एक मौका कल मिलेगा जब सावन का पहला मंगला गौरी व्रत पूरे विधि-विधान के रखा जाएगा। 


सावन का महीना हर मामले में बहुत ही पवित्र महीना है क्योंकि जहां एक ओर पूरे महीने भक्तजन भगवान शंकर की आराधना में लगे रहते हैं और प्रत्येक सोमवार को शंकर भगवान का व्रत रखते हैं, वहीं दूसरी ओर सावन के प्रत्येक मंगलवार को माता पार्वती की प्रसन्नता और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए सुहागिन स्त्रियां और अविवाहित कन्याएं मंगला गौरी व्रत रखती हैं।

Click here to read in English

देश के विभिन्न राज्यों में मंगला गौरी व्रत


माँ पार्वती जो भगवान शंकर की सहधर्मिणी हैं उनकी कृपा पाने के लिए विभिन्न स्थानों पर मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा। केवल किसी विशेष राज्य में ही नहीं बल्कि पूरे देश में यह पूरे रीति-रिवाज के अनुसार मनाया जाता है। उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा झारखंड आदि राज्यों में मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और समस्त दक्षिण भारत में श्री मंगला गौरी व्रथम के नाम से जाना जाता है। 

जानें सावन के पवित्र महीने का महत्व: यहां क्लिक करें

सावन के दौरान मंगला गौरी व्रत का महत्व


अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए हमारे देश में अनेक व्रत रखे जाते हैं जिनमें से मंगला गौरी व्रत का अत्यधिक महत्व माना गया है। सावन के दौरान जहां सोमवार के दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा होती है, तो मंगलवार के दिन माता पार्वती को समर्पित मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है, जो माता पार्वती की ही पूजा करने के लिए होता है। सावन के महीने में माता पार्वती ने अपनी कठोर तपस्या द्वारा और व्रत रखकर भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया था इसलिए सभी सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए माता गौरी का व्रत रखती हैं। 

ऐसी मान्यता है कि जो स्त्री मंगला गौरी व्रत रखती हैं, उसके पति की आयु लंबी होती है और उनके दांपत्य जीवन में सभी खुशियां मौजूद होती हैं। यदि कुंडली में मंगल दोष भी हो तो उसके संबंध के लिए भी मंगला गौरी व्रत रखना सर्वोत्तम माना जाता है। इसके अतिरिक्त जो कन्याएं अविवाहित हैं, वे भी यह व्रत रख सकती हैं। इससे उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि श्रावण मास में आने वाले मंगला गौरी व्रत को सभी सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे विधि-विधान के अनुसार रखती हैं और नियमों का पालन करती हैं। 

जानें सावन के सोमवार व्रत का महत्व। पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मंगला गौरी व्रत 2019 


मंगला गौरी व्रत श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को मनाया जाता है। चूंकि यह व्रत मंगलवार को किया जाता है, इस हेतु 'मंगला' और गौरी नाम देवी पार्वती का ही एक नाम है, इसलिए, इस व्रत का नाम मंगला गौरी व्रत है। 2019 में मंगला गौरी व्रत की तिथियाँ:

प्रथम मंगला गौरी व्रत 
मंगलवार 
द्वितीय मंगला गौरी व्रत 
मंगलवार 
तृतीय मंगला गौरी व्रत 
मंगलवार 
चतुर्थ मंगला गौरी व्रत 
मंगलवार 

सावन सोमवार व्रत 2019 कब है, जानने के लिए यहां क्लिक करें

मंगला गौरी व्रत क्यों किया जाता है


ऐसी मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत करने से सौभाग्यवती स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा अविवाहित कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। सावन के महीने में ही माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। यही कारण है कि सभी स्त्रियां मंगला गौरी व्रत पूरे मन और विधि विधान से करती हैं, ताकि उन्हें भी एक अच्छा वर प्राप्त हो।

मंगला गौरी व्रत सामग्री


मंगला गौरी व्रत की पूजा के दौरान विवाहित महिलाओं (सुहागन) के साथ-साथ 16 चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। अनुष्ठान के दौरान आवश्यक समाग्री से शुरुआत करते हैं। सावन के प्रत्येक मंगलवार को, आपको देवी गौरा की पूजा के लिए विशिष्ट प्रक्रियाओं का पालन करना होगा, और आपको निम्नलिखित वस्तुओं या समाग्री की आवश्यकता होगी:

  • एक चौकी या वेदी
  • सफेद और लाल कपड़ा
  • कलश
  • गेहूँ के आटे से बना एक चौमुखा दीया (दीपक) 
  • 16 कपास से बनी चार बत्तियां 
  • देवी पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी का पात्र
  • अभिषेक के लिए: पानी, दूध, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, चीनी का मिश्रण)
  • देवी गौरी के लिए कपड़े, भगवान गणेश के लिए जनेऊ
  • पवित्र लाल धागा (कलावा / मौली), रोली या सिंदूर, चावल, रंग, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, काजल
  • 16 प्रकार के फूल, माला, पत्ते और फल
  • गेहूं, लौंग, इलायची से बने 16 लड्डू
  • सात प्रकार का अनाज
  • 16 पंचमेवा (5 प्रकार के सूखे मेवे)
  • 16 सुपारी, सुपारी, लौंग
  • सुहाग पिटारी (सिंदूर, काजल, मेंहदी, हल्दी, कंघी, तेल, दर्पण, 16 चूड़ियाँ, पैर की अंगुली के छल्ले, पायल, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, हेयरपिन, आदि)
  • नैवेघ / प्रसाद

मंगला गौरी व्रत विधि


  • ब्रह्म मुहूर्त में सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद साफ, नए कपड़े पहनें।
  • पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और वेदी स्थापित करें। 
  • वेदी के आधे भाग पर सफेद कपड़ा बिछा दें और उसके ऊपर चावल के नौ छोटे ढेर लगा दें। 
  • दूसरे आधे भाग पर लाल कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर 16 छोटे गेहूं के दाने बिछाएं।
  • अब चौकी पर अलग से कुछ चावल रखें, और एक सुपारी पर, पत्तल पर एक स्वास्तिक का चित्र बनाकर, उस पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। 
  • उसी तरह, कुछ गेहूं भी रखें और उनके ऊपर कलश रखें।
  • बर्तन में पांच सुपारी रखें और उसके ऊपर एक नारियल रखें। 
  • अंत में, वेदी पर गेहूं के आटे का दीया (दीपक) रखें और 16 लटों वाली चारों बत्तियां जलाएं।
  • भगवान गणेश की पूजा करके शुरू करें, जो किसी भी शुभ काम की शुरुआत करने से पहले हमेशा व्रत रखना चाहिए। 
  • जनेऊ (कपड़े का प्रतीक) और रोली-चावल और सिंदूर चढ़ाएं। 
  • इसी प्रकार कलश और दीए की वंदना करें। 
  • इसके बाद, नवग्रह (नौ ग्रह) के रूप में चावल के नौ ढेर और देवी के सोलह अवतारों के रूप में गेहूं के 16 ढेर की पूजा करें। 
  • एक ट्रे में, साफ और पवित्र मिट्टी लें, और इसके साथ देवी गौरी की एक मूर्ति बनाएं। 
  • अब निम्न मंत्र का जाप करें, शुद्ध मन से भक्ति से भरकर व्रत का संकल्प करें: 
  • मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरी प्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरी व्रतमहं करिष्ये।
  • मूर्ति को पूरी श्रद्धा के साथ वेदी पर रखें और उसका अभिषेक पंचामृत, दूध और शुद्ध जल से करें और फिर देवी को कपड़े पहनाएं।
  • देवी गौरा का षोडशोपचार पूजन रोली-चावल से करें और उन्हें निम्न मंत्र का जाप करते हुए सुहागन (विवाहित महिला) के 16 सौंदर्य प्रसाधन अर्पित करें: कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्। 
  • नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।।
  • इसके बाद, उसे 16 फूल, माला, फल, पत्ते, गेहूं से बने लड्डू, सुपारी, सुपारी, लौंग, इलायची और पंचमेवा (5 प्रकार के सूखे मेवे) चढ़ाएं।
  • अब पूर्ण मंगला गौरी व्रत कथा (कहानी) पढ़ें और उसके बाद आरती करें। 
  • प्रत्येक बुधवार को व्रत का समापन करने के बाद, गौरी विसर्जन शुद्ध मन से करें।
  • यह कार्य किसी झील, तालाब या नदी में पूरी श्रद्धा के साथ करें।
  • अपने संकल्प / व्रत के अनुसार उद्यापन के साथ व्रत पूरा करें। 
  • ऊपर बताए विधि विधान के अनुसार मंगला गौरी पूजा पूरी करने के बाद अपने संकल्प समय के अंतिम मंगलवार को अपने पूरे परिवार के साथ हवन करें। 
  • बाद में, एक कुशल पुजारी के मार्गदर्शन में, उचित रस्मों का पालन करते हुए 16 विवाहित महिलाओं को भोजन कराएं।

मंगला गौरी व्रत कथा


मंगला गौरी व्रत करने वाली स्त्रियों को मंगला गौरी व्रत कथा पढ़नी चाहिए और सुननी चाहिए। यह कथा इस प्रकार है: धरमपाल नाम का एक व्यापारी था। वह बहुत धनी था और उसने एक सुंदर महिला से शादी की थी। उनके पास सभी सुख-सुविधाएं थीं। हालाँकि, उनके जीवन में केवल एक चीज की कमी थी, वो ये कि उनके कोई संतान नहीं। इसलिए उन्होंने प्रभु से प्रार्थना की और एक पुत्र का वरदान प्राप्त किया। उन्हें जल्द ही पता चला कि बच्चा बहुत कम अवधि तक जीवित रहेगा और उसके 16 वें वर्ष में पहुँचते ही उसकी मृत्यु हो सकती है। 

भगवान की कृपा से, उनके बेटे की शादी उसके सोलहवें जन्मदिन से पहले एक लड़की से हुई, जो हमेशा मंगला गौरी व्रत रखती थी। इस व्रत को रखते हुए माँ ने वरदान मांगा कि उनकी बेटी कभी विधवा न बने। इसी के परिणाम स्वरूप, शादी के बाद, 16 साल की उम्र में मरने के बजाय, धरमपाल के बेटे ने 100 साल तक एक खुशहाल और सुखी जीवन व्यतीत किया। इस प्रकार, हिंदू धर्मग्रंथ बताते हैं कि किसी को भी मंगला गौरी का व्रत श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। ऐसा करने से वैवाहिक सुख, पुत्रों और पौत्रों का वरदान, पति / पुत्र की दीर्घायु और भक्तों के जीवन में सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

हरियाली तीज: अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें

शीघ्र विवाह के लिए मंगला गौरी व्रत की पूजा और नियम


किसी भी व्रत को करने के कुछ मुख्य नियम होते हैं, जिन्हें जान लेना अत्यंत आवश्यक होता है, तभी उस व्रत का पूरा फल आपको प्राप्त होता है। जिन कन्याओं को विवाह होने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है या उनकी कुंडली में मांगलिक दोष है उन्हें मंगला गौरी व्रत के भी कुछ नियम हैं जिन्हें आप सरलता से समझ समझकर माता की पूजा कर सकती है:

  • सावन के मंगलवार को प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध हो जाएं। 
  • प्रातकाल अथवा संध्याकाल में माता गौरी की पूजा करें। 
  • उनके समक्ष देसी घी का एक बड़ा सा चौमुखी दीपक प्रज्वलित करें। 
  • माता पार्वती को 16 प्रकार के पुष्प अर्पित करें। 
  • ध्यान रखें उसमें लाल रंग के पुष्प अवश्य होने चाहिए क्योंकि लाल रंग माता को अत्यंत प्रिय है और यह अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। 
  • इसके बाद माता को चुनरी और चूड़ियां पहनाएँ। 
  • ॐ ह्रीं गौर्यै नमः, इस मंत्र का जाप माता की प्रतिमा के समक्ष कम से कम 108 बार करें। 
  • इसके बाद आप अपनी मनोवांछित कामना माता के समक्ष रख सकते हैं अर्थात शीघ्र विवाह की कामना कर सकती हैं। 

दांपत्य जीवन में सुख और संबंधों में प्रेम की वृद्धि के लिए मंगला गौरी व्रत 


  • आपको संध्या के समय में माता गौरी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। 
  • माता की प्रतिमा के समक्ष देसी घी के तीन दीपक जलाएं। 
  • क्योंकि आप एक विवाहित स्त्री हैं, इसलिए आपको माता के चरणों में सिंदूर अर्पित करना चाहिए। 
  • माता को लाल चुनरी और लाल पुष्प अर्पित करें। 
  • तदोपरांत 16 इलायची चढ़ाएं और इत्र भी समर्पित करें। 
  • ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चै मंत्र का कम से कम 11 माला जप करें। 
  • इसके बाद माता से अपने दांपत्य जीवन में आने वाली समस्याओं को बताकर उनसे इन समस्याओं को दूर करने की प्रार्थना करें। 
  • उसके बाद प्रसाद स्वरूप उन सभी इलायचियों को अपने पास प्रसाद के रूप में रख लें और धीरे धीरे खाएं। 

नाग पंचमी के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

वैवाहिक संबंधों को टूटने से बचाने के लिए मंगला गौरी व्रत


कई बार हमारे जीवन में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब हमारा दांपत्य जीवन अत्यंत ही कठिन दौर से गुजर रहा होता है। स्थिति यहां तक आ जाती है कि तलाक की नौबत आने लगती है और हमारा रिश्ता चाहकर भी दोबारा नहीं जुड़ रहा होता है। ऐसे में माता गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत रखने से आपके वैवाहिक संबंधों में उन्हें नई ऊर्जा का संचार हो सकता है। इसके लिए आपको निम्नलिखित नियमों का पालन करते हुए मंगला गौरी व्रत करना चाहिए: 

  • आपको माता पार्वती और भगवान शंकर की संयुक्त रूप से पूजा अर्चना करनी चाहिए। क्योंकि यह दोनों ही साक्षात एक सफल और सुखद दांपत्य जीवन के प्रतीक हैं। 
  • इसके लिए माता गौरी की पूजा करने का उपयुक्त समय अर्धरात्रि में अर्थात मध्यरात्रि में है। 
  • सर्वप्रथम माता गौरी और भगवान शंकर के चरणों में निवेदन करें कि आप जिस संकल्प से यह पूजा कर रही हैं उसमें आपको सफलता प्राप्त हो।
  • उसके बाद शिव शक्ति युगल को तिलक करें और वस्त्र समर्पित करें। 
  • तदुपरांत माता गौरी को अखंड सौभाग्य प्राप्ति की कामना करते हुए सुहाग की सामग्री भेंट करें जिसमें लाल रंग की बिंदी, चूड़ियां, सिंदूर, मेहंदी, काजल, आलता, शीशा और आभूषण हों। 
  • ॐ गौरीशंकराय नमः" मंत्र का कम से कम 11 माला जाप करें। 
  • माला रुद्राक्ष की हो तो उत्तम उत्तम होगी। 
  • जब आप का जाप समाप्त हो जाए तुम माता गौरी और भगवान शंकर से अपने वैवाहिक जीवन में चल रही समस्याओं के बारे में अवगत कराते हुए उनकी कृपा प्रदान करने के लिए निवेदन करें। 
  • इस प्रकार विभिन्न प्रकार की समस्याओं के निवारण के लिए मंगला गौरी व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है और शीघ्र अतिशीघ्र मनोवांछित फल देने वाला माना जाता है। 

हमें उम्मीद है कि मंगला गौरी व्रत पर यह ब्लॉग आपके लिए मददगार साबित होगा! माता गौरी का आशीर्वाद आपको इस पूरे सावन में अच्छी वर्षा के रूप में प्राप्त हो!

Related Articles:

No comments:

Post a Comment