देवशयनी एकादशी आज, जानें पूजा मुहूर्त और विधि

चातुर्मास हुआ प्रारंभ, आज से भूलकर भी न करें कोई शुभ काम! पढ़ें देवशयनी एकादशी 2019 व्रत का महत्व, पूजा विधि और मुहूर्त।


हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाली एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसे अलग-अलग राज्यों में आषाढ़ी, पद्मनाभा और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अगर अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें तो उसके अनुसार यह एकादशी हर वर्ष जून या जुलाई के माह में आती है, इस साल 2019 में देवशयनी एकादशी देशभर में 12 जुलाई, शुक्रवार को मनाई जा रही है। 

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह वही विशेष दिन होता है जब भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर में शयन करने जाते है और जहाँ वो लगभग चार माह की अवधि के बाद, जब सूर्य, तुला राशि में प्रवेश करता है, तो उन्हें उस काल में उठाया जाता है। शयन से उठाने वाले दिन को देवउठनी एकादशी कहते हैं। ऐसे में भगवान श्री विष्णु के इस 4 माह तक चलने वाले निद्रा काल को सनातन धर्म में चातुर्मास कहा जाता है। पद्मपुराण में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि, जो मनुष्य मोक्ष की कामना रखता है उसे देवशयनी और देवउठनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।


आषाढ़ी या देवशयनी एकादशी 2019 
आषाढ़ी एकादशी पारणा मुहूर्त :
06:32:03 से 08:17:48 तक 13, जुलाई को
अवधि :
1 घंटे 45 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय :
06:32:03 पर 13, जुलाई को

विशेष: उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में देवशयनी एकादशी व्रत का मुहूर्त

चातुर्मास 


चूँकि आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से ही भगवान विष्णु शयन करने चले जाते हैं और इसके बाद सीधा कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर निद्रा से जगते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु के शयन के इन 4 महीनों को हिन्दू धर्म में चातुर्मास कहा गया है। हिन्दू मान्यताओं अनुसार, इस अवधि में जब भगवान सो जाते हैं तो मनुष्य को अनेक शुभ कार्य जैसे- विवाह, गृह प्रवेश और मुंडन संस्कार आदि नहीं करने चाहिए। अगर कोई इस काल में कोई भी शुभ कार्य करता है तो उन्हें उन कार्यों में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है। वहीं ये भी देखा गया है कि इन महीनों में बारिश और बादलों के कारण सूर्य-चंद्रमा का तेज भी कम हो जाता है, जिसके कारण उनका आशीर्वाद भी व्यक्ति को उस कार्य में प्राप्त नहीं हो पाता है। 


देवशयनी एकादशी या आषाढ़ी एकादशी व्रत का महत्व


ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इस एकादशी का विशेष महत्व होता है। क्योंकि माना गया है कि इस विशेष व्रत को करने से कोई भी व्यक्ति न केवल अपनी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण कर सकता है बल्कि वो ऐसा करके अपने सभी प्रकार के पापों को भी नष्ट कर सकता है। इस व्रत के प्रभाव से व्रती को सीधे तौर पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व और विधान बताया गया है। 

देवशयनी एकादशी की सही पूजा विधि


जिस प्रकार देवशयनी एकादशी के दिन व्रत करने का एक शुभ मुहूर्त होता है उसी प्रकार इस व्रत से शुभ लाभ प्राप्त करने के लिए इसकी सही पूजा विधि करने का भी विधान बताया गया है। इस व्रत को करने की सही पूजा विधि इस प्रकार है:-

  • इस विशेष दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करने चाहिए। 
  • इस दिन विशेष तौर पर पवित्र नदियों में भी स्‍नान करने का विशेष महत्‍व बताया गया है। 
  • यदि किसी कारण वश ऐसा कर पाना संभव न हो तो आप गंगाजल से घर में छिड़काव कर स्वयं को शुद्ध करके भी पूजा शुरू कर सकते हैं। 
  • इसके पश्चात घर के मंदिर में भगवान विष्‍णु की मूर्ति स्थापित कर सच्चे हृदय से उसका पूजन करें। 
  • फिर पूजा के बाद व्रत की संपूर्ण कथा सुनें और इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटें। 

चातुर्मास में किन विशेष बातों का रखना चाहिए ध्यान


हिन्दू धर्म में 4 माह तक चलने वाले चातुर्मास की इस अवधि में कई शुभ कार्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य कामों को करना भी वर्जित माना गया हैं। आइये जानते हैं इस माह क्या करें और क्या नहीं:-

  • अगर अच्छी वाणी और मधुर स्वर चाहते हैं तो इस अवधि में गुड़ का सेवन न करें।
  • लंबी आयु व संतान की प्राप्ति हेतु किसी भी तरह तेल का इस्तेमाल न करें।
  • अपने वंश की वृद्धि के लिए नियमित रूप से इस अवधि काल में दूध का सेवन करें।
  • सब्जियों में ख़ास तौर से शहद, मूली, परवल और बैंगन खाने से परहेज करें।
  • फर्श पर ही सोए, बिस्तर का त्याग करें।
  • हर प्रकार की नमकीन या मसालेदार भोजन का परहेज करें।

पौराणिक कथा से जाने आखिर क्‍यों चार महीने के लिए सो जाते हैं भगवान विष्णु ?


वामन पुराण के अनुसार, पौराणिक काल में असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। ऐसे में राजा बलि के अहंकार को देखकर स्वयं इंद्र देव भी घबरा गए थे जिसके बाद इस समस्या से निजात पाने के लिए वो भगवान विष्‍णु के पास मदद की गुहार लेकर गए। सभी देवताओं की पुकार सुनकर भगवान श्री विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने उसके महल पहुंचे। वामन रूपी भगवान विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांगी। पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें। 

जिसके बाद भगवान वामन ने ऐसा ही किया और इस तरह देवताओं को इस समस्या से निजात मिली। वहीं भगवान विष्णु भी राजा बलि के इस दान-धर्म से बहुत खुश हुए और उन्होंने उनके इस दान-पुण्य को देख राजा बलि से एक वरदान मांगने को कहा। जिस पर बलि ने उनसे पाताल में बसने का वरदान मांग लिया। बलि की इच्‍छा पूर्ति करने के लिए भगवान पाताल में बसने हेतु चले गए। ऐसे में भगवान विष्‍णु के पाताल जाने के बाद सभी स्वर्ग के देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंतित हो गईं। 

माता लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्‍णु को स्वर्ग में वापस लाने के लिए गरीब स्‍त्री का रूप धारण किया और राजा बलि के पास पहुंची। जिसके बाद उन्होंने राजा बलि को अपना भाई बनाकर उन्हें राखी बांध दी। जिसके बदले उन्होंने राजा से भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। ऐसे में पाताल से वापस स्वर्ग जाते समय भगवान विष्‍णु ने राजा बलि को एक वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में ही वास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को ही योगनिद्रा माना जाता है, जिस कारण इन 4 माह कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया। 

हम आशा करते हैं कि देवशयनी एकादशी पर आधारित हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित। एस्ट्रोसेज की ओर से आप सभी को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ!

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