शरद नवरात्रि 2019 आज से प्रारंभ

जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त और पढ़ें नवरात्रि में प्रथम दिन का महत्व और मां शैलपुत्री की के पूजन की विधि। 


नवरात्रि का त्यौहार देवी आदि शक्ति मां दुर्गा की उपासना और आराधना का महाउत्सव होता है। जिसमें नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी शक्ति के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा किये जाने का विधान है। नवरात्रि के अर्थ को समझे तो ये दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ रातों में मां आदि शक्ति के भक्त अपनी उपासना और साधना से उनकी विशेष कृपा व आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 




नवरात्रि का पर्व हर वर्ष में पांच बार आता है, जिसमें चैत्र, आषाढ़, अश्विन, पौष और माघ नवरात्रि शामिल होती हैं। इनमें चैत्र और अश्विन यानि शारदीय नवरात्रि को ही मुख्य माना गया है। जिस दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित व्रत किये जाने का विधान है। इसके लिए उनकी पूजा से पूर्व नवरात्रि घटस्थापना कर समस्त देवी-देवताओं और माँ का आह्वान किया जाता है और इसके बाद ही इन पवित्र नौ दिनों तक माँ के अलग-अलग रूपों का विधिवत तरीके से पूजन होता है। 

घटस्थापना मुहूर्त


वर्ष 2019 में शरद नवरात्रि कल यानी 29 सितंबर, रविवार से प्रारंभ हो रही है और ऐसे में देवी शक्ति की आराधना का यह महापर्व 08 अक्टूबर 2019, मंगलवार तक देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। हिन्दू मान्यताओं अनुसार नौ दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व का प्रथम दिन मां के भक्तों के बीच बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान अनुसार घटस्थापना करने के बाद ही मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। तो चलिए आईये इस लेख के माध्यम से जानते हैं घटस्थापना का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि।  



शरद नवरात्रि 2019 घटस्थापना मुहूर्त
घटस्थापना करने का समय06:12:45 से 07:40:15 तक
अवधि1 घंटा 27 मिनट

सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में घटस्थापना का मुहूर्त, नियम और विधि

प्रथम दिन कलश स्थापना का महत्व


नवरात्रि में घटस्थापना जिसे कलश स्थापना भी कहते हैं, उसका अपना विशेष महत्व होता है। चूँकि यह नवरात्रि का प्रथम दिन होता है, ऐसे में घटस्थापना के बाद ही देवी दुर्गा के इस पर्व का विधिवत शुभारंभ किया जाता है। चाहे फिर वो चैत्र नवरात्र हो या शरद, दोनों में ही प्रतिपदा अथवा प्रथमा तिथि में शुभ मुहूर्त अनुसार ही कलश स्थापना की जाती है। हिंदू धर्म की माने तो किसी भी शुभ कार्य या पूजन की शुरुआत से पहले भगवान गणेश की पूजा किये जाने का विधान होता है और धार्मिक ग्रंथों की माने तो कलश को भगवान गणेश की ही संज्ञा दी गई है। ऐसे में नवरात्रि के प्रथम दिन सर्वप्रथम गणेश जी की वंदना कर समस्त देवी-देवताओं का आह्वान कलश स्थापना के द्वारा ही किया जाता है। 


नवदुर्गा की महिमा


हिन्दू धर्म में मां दुर्गा को ‘दुर्गति नाशिनी’ बताया गया है। अर्थात माँ दुर्गा निश्चित रूप से ही दुर्गति का नाश करने वाली होती हैं। इसलिए ही उन्हें संपूर्ण सृष्टि की आदि शक्ति का दर्जा भी प्राप्त है। उनकी उत्पत्ति स्वयं पितामह ब्रह्मा, भगवान विष्णु एवं महादेव, तीनों देवों द्वारा ही की गई थी। 

नवरात्रि पूजा विधि

  • प्रातःकाल सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद पूजा की थाली सज़ाएँ। 
  • इसके बाद पूजन स्थल की साफ़-सफाई कर, वहां मां आदि शक्ति के नौ रूपों की प्रतिमा या चित्र लगाएँ। 
  • इसके बाद माँ दुर्गा की प्रतिमा पर लाल रंग के वस्त्र चढ़ाएँ। 
  • इसके बाद यदि आप व्रत करना चाहते हैं तो माँ के समक्ष नवरात्रि के व्रत का संकल्प श्रद्धा अनुसार लें। 
  • फिर मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक इनमें प्रतिदिन ज़रूरत अनुसार पानी डालते रहें। 
  • इसके बाद पूजा स्थल पर मां की प्रतिमा के समक्ष हमारे बताए गए शुभ मुहूर्त अनुसार कलश को स्थापित करें। इस दौरान ध्यान रहे कि कलश गंगा जल से भरा हुआ हो और उसके मुख पर आम की पत्तियाँ लगाकर ऊपर नारियल रखा हो।
  • इसके बाद कलश से लाल कपड़े को लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बांधें। 
  • बांधने के बाद अब कलश को मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। 
  • इसके पश्चात फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योति के साथ कलश और मां दुर्गा के नौ रूपों की पंचोपचार पूजा करें। 
  • इसके बाद अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करें। बता दें कि मां के भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार मां के इन पावन नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाते हैं। 
  • इसी तरह नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रतिदिन माँ दुर्गा से संबंधित मन्त्रों का जाप करते हुए मां के हर रूप का स्वागत करें और उनसे अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करें। 
  • इसके बाद अष्टमी या नवमी के दिन अपनी प्रथा के अनुसार ही नौ कन्याओं का पूजन कर, उन्हें पूरी-चने-हलवे का भोग लगाएँ और श्रद्धानुसार दक्षिणा व भेट दें। 
  • आखिरी दिन मां दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें। इस दौरान मां दुर्गा की आरती गाए, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाए और अंत में उसका विसर्जन करें। 

नवरात्रि में अखंड ज्योति


नवरात्रि में मां दुर्गा को समर्पित अखंड ज्योति का अपना एक अलग ही महत्व होता है। माना जाता है कि इस अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करने से भक्त के जीवन से मां आदि समस्त अंधकारों को दूर कर केवल प्रकाश लाती हैं। इसलिए नवरात्रि में मां के नाम की अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित कर लोग अपनी समस्त बाधाओं, कष्टों, परेशानियाँ और हर प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाते हैं। स्वयं कई वेदों में भी विद्वान ऋषि-मुनियों ने इस बात का उल्लेख किया है कि अखंड ज्योति का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से साफ़ देखा जाता है।

नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व 


कन्या पूजन नवरात्रि व्रत के उद्यापन में किया जाने वाला विशेष कर्म-काण्ड है, जिसे कुमारी पूजन भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में हमेशा से ही महिलाओं को विशेष स्थान दिया जाता रहा है, ऐसे में कुंवारी कन्याओं को जगज्जननी माँ जगदम्बा का ही स्वरूप माना जाता है। इसलिए नवरात्रि में उनके पूजन का विशेष विधान होता है। इस दौरान अष्टमी या नवमी के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार नौ, सात, पांच, तीन या एक कन्या को देवी स्वरूप मानकर उनका पूजन कर उन्हें भोजन कराते हुए दान-दक्षिणा देनी चाहिए। 

नवरात्रि में इन विशेष बातों का रखें ध्यान 


  • नवरात्रि में विशेष रूप से माँ दुर्गा की आराधना और व्रत रखने वाले जातक को नौ दिनों तक ब्रह्मचर्य व्रत का सच्ची श्रद्धा भाव से पालन करना चाहिए।
  • नौ दिनों तक उपवास रखने वाले जातक को केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। इस दौरान केवल दूध, फल और शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करें। 
  • मां के इन पवन नौ दिनों तक भूमि शयन यानि ज़मीन पर सोने से बेहद अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। 
  • इन नौ दिनों तक भूल से भी मदिरा या माँस का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • नवरात्रि के नौ दिनों तक प्याज़ या लहसुन का उपयोग या सेवन करना भी वर्जित होता है। 

नवरात्र में नौ रंग और उनका महत्व


हिन्दू धर्म अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन का एक विशेष रंग तय होता है। ऐसे में मान्यता है कि प्रत्येक दिन के अनुसार ही यदि इन रंगों का इस्तेमाल किया जाए तो जातक को सौभाग्य की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है।

  • प्रतिपदा के दिन पीला रंग होता है शुभ 
  • द्वितीया के दिन हरा रंग होता है फलदायी 
  • भूरा रंग तृतीया के दिन 
  • चतुर्थी के दिन नारंगी रंग
  • पंचमी के दिन सफेद रंग है शुभ 
  • षष्टी के दिन लाल रंग
  • सप्तमी के दिन नीला रंग होता है शुभ 
  • अष्टमी के दिन गुलाबी रंग, और 
  • नवमी के दिन बैंगनी रंग का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा शुभ होता है। 

नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की करें आराधना


जैसा हमने पहले ही बताया कि नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। जिसमें प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना किये जाने का विधान है। संस्कृत में शैलपुत्री का अर्थ है ‘’पर्वत की बेटी’’ और अपने नाम के अनुसार ही मां शैलपुत्री का ये नाम पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही पड़ा था। पौराणिक मान्यताओं अनुसार इनका वाहन वृषभ होता है, जिसके चलते इन्हे वृषारूढ़ा नाम से भी जाना जाता है। मां के इस रूप के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित होते हैं। माँ के इस दुर्लभ प्रथम रूप को कई राज्यों में सती नाम से भी जाना जाता है।

मां शैलपुत्री का स्वरूप 


मां दुर्गा के इस रूप के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित होते हैं। मां शैलपुत्री के माथे पर अर्ध चंद्र होता है और मां नंदी बैल की सवारी करती है। 

मां शैलपुत्री की पूजा के लिए मंत्र


-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को नवरात्रि 2019 की शुभकामनाएँ!

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