अनंत चतुर्दशी आज, जानें पूजा मुहूर्त और व्रत नियम

आज के दिन भगवान विष्णु का ऐसे पाएँ आशीर्वाद! जानें अनंत चौदस पूजा का शुभ मुहूर्त और इससे संबंधित व्रत नियम।


भगवान विष्णु जी को समर्पित अनंत चतुर्दशी का पर्व आज है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चौदस का ये पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी दो शब्दों के योग से बना है। इसमें पहला शब्द अनंत है जिसका अर्थ भगवान विष्णु जी के उस अवतार से है जिसका न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत। जबकि दूसरा शब्द चतुर्दशी है। यह चौदस तिथि को दर्शाती है। इसलिए इस पर्व को कई स्थानों में चौदस भी कहते हैं।

इस शुभ दिन के अवसर पर भगवान विष्णु जी की विशेष पूजा होती है। इस पूजन के बाद अनंत सूत्र बांधने का बड़ा महत्व है। ये अनंत सूत्र कपास या रेशम के धागे से बने होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना के बाद इन्हें हाथ पर बांधा जाता है। मान्यता है कि अनंत सूत्र बांधने से भगवान अनंत हमारी रक्षा करते हैं और सांसारिक वैभव प्रदान करते हैं। अनंत चतुर्दशी पर सुख-समृद्धि और संतान की कामना से व्रत भी रखा जाता है।

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अनंत चतुर्दशी पूजा का मुहूर्त


पूजा मुहूर्त12 सितंबर को प्रातः 06:04:17 बजे से 13 सितंबर को सुबह 07:37:13 बजे तक
अवधि25 घंटे 32 मिनट

उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए है। अपने शहर के अनुसार जानें: अनंत चतुर्दशी का पूजा मुहूर्त

अनंत चतुर्दशी से संबंधित व्रत नियम


अनंत चतुर्दशी का व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाए जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाण्ड दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।


अनंत चतुर्दशी का महत्व


धार्मिक मान्यता के अनुसार अनंत चतुर्दशी पर्व और व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। जब पांडव पुत्र राज्य हारकर वनवास काट रहे थे उस समय भगवान श्री कृष्ण ने वन में उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन सुनाया था। कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ में 14 लोकों की रक्षा और पालन के लिए भगवान विष्णु चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, इससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। 

अतः अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। यह पूजन दोपहर में संपन्न होता है। इस दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है और कलश स्थापना की जाती है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा के महत्व का वर्णन मिलता है।

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गणेश विसर्जन


12 सितंबर को गणेश विसर्जन भी है। गणेश विसर्जन में भगवान गणेश जी की प्रतिमा को जल में प्रवाहित की जाती है। गणेश विसर्जन में गणेश जी को भव्य रूप से सजाकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन ढोल-नगाड़ों के साथ झांकियाँ निकालकर गणेश जी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। 

पौराणिक कथाओं में गणेश विसर्जन


हिन्दू धर्म ग्रंथों में गणेश विसर्जन का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि गणेश जी ने ही महाभारत ग्रंथ को लिखा था। ऐसा कहते हैं कि महर्षि वेद व्यास जी ने गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेश जी ने भी लगातार 10 दिनों तक इस कथा अक्षरशः लिखा। दस दिनों के बाद जब वेद व्यास जी ने गणेश जी को छुआ तो पाया कि उनका शरीर का तापमान बढ़ गया है। इसके बाद वेदव्यास जी ने उन्हें तुरंत समीप के कुंड में ले जाकर उनके तापमान को शांत किया। ऐसा कहते हैं कि गणेश विसर्जन के निमित्त गणपति महाराज को शीतल किया जाता है। 

गणेश विसर्जन की विधि


  • गणेश विसर्जन से पहले गणेश जी की विधिवत पूजा करें।
  • पूजा के समय उन्हें मोदक एवं फल का भोग लगाएँ।
  • इसके साथ ही गणेश जी की आरती करें।
  • अब गणेश जी से विदा लेने की प्रार्थना करें। 
  • पूजा स्थल से गणपति महाराज की प्रतिमा को सम्मान-पूर्वक उठाएँ।
  • पटरे पर पर गुलाबी वस्त्र बिछाएँ।
  • प्रतिमा को एक लकड़ी के पटे पर धीरें से रखें।
  • लकड़ी के पटरे को पहले गंगाजल से उसे पवित्र ज़रुर करें।
  • गणेश मूर्ति के साथ फल-फूल, वस्त्र एवं मोदक की पोटली रखें।
  • एक पोटली में थोड़े चावल, गेहूं और पंचमेवा रखकर पोटली बनाएँ उसमें कुछ सिक्के भी डाल दें।
  • उस पोटली को गणेश जी की प्रतिमा के पास रखें।
  • अब गणेश जी की मूर्ति को किसी बहते हुए जल में विसर्जन कर दें।
  • गणपति का विसर्जन करने से पहले फिर से उनकी आरती करें। 
  • आरती के बाद गणपति से मनोकामना पूर्ण करने का अनुरोध करें। 

गणपति महाराज की पूजा के दौरान रखें ये सावधानियाँ


  • गणपति महाराज की पूजा के दौरान तुलसी का प्रयोग बिलकुल भी ना करें। 
  • पूजा में गणपति की ऐसी प्रतिमा का प्रयोग करें, जिसमें गणपति भगवान की सूंड बाएँ हाथ की ओर घूमी हो। 
  • गणेश जी को मोदक और मूषक प्रिय हैं, इसलिए ऐसी मूर्ति की पूजा करें जिसमें मोदक और मूषक दोनों हों।

हम आशा करते हैं कि अनंत चतुर्दशी और गणेश विसर्जन पर लिखा गया यह विशेष ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को अनंत चौदस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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