स्कंद षष्ठी व्रत से ऐसे करें भगवान कार्तिकेय को खुश, होगी अपार संतान सुख की प्राप्ति। जानें व्रत का महत्व, पौराणिक कथा और संपूर्ण पूजन विधि।
स्कंद षष्ठी जिसे स्कन्दा षष्ठी भी कहते हैं, यह पर्व हर साल दक्षिण भारत में खासतौर पर तमिलनाडु राज्य में धूमधाम से मनाया जाता हैं। भारतीय अन्य पर्वों की तरह ही ये पर्व भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। जिसमें लोग भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र भगवान मुरूगन, सुब्रमण्य और कार्तिकेय की पूजा-अर्चना करते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार स्कंद षष्ठी पर उपवास रखने का विशेष महत्व होता है और ये उपवास भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है।
वर्ष 2019 में कब मनाया जाएगा स्कंद षष्ठी पर्व
जैसा हमने पहले ही बताया कि स्कंद षष्ठी का व्रत शिव-पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है जो छह दिनों तक मनाया जाता है। साल 2019 में यह पर्व 4 सितम्बर, बुधवार से शुरू हो रहा है। उत्तर भारत में जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र को कार्तिकेय कहते हैं, तो वहीं दक्षिण भारत में उनके पुत्र को भगवान मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है। विशेषतौर से दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल आदि प्रांतीय में भगवान कार्तिकेय की विशेष रूप से पूजा किये जाने का विधान है और उनकी पूजा को स्कंद षष्ठी पूजा भी कहते हैं।
स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान मुरुगन के जन्म और असुरों के नाश की खुशी में मनाया जाता है। इसलिए इस दिन जो भी भक्त उनकी पूजा-अर्चना सच्ची श्रद्धा से करता है, तो माना जाता है कि भगवान कार्तिकेय उनके हर कष्ट को हरते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। हर वर्ष आने वाले इस छह दिवसीय उत्सव में सभी भक्त बड़ी संख्या में भगवान कार्तिकेय के मंदिरों में इकट्ठा होते हैं। इस अवसर पर कई जगहों पर भव्य जुलूसों का भी आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिर जैसे उडूपी और पलानी हिल्स में बने भगवान सुब्रमण्यम के प्राचीन मंदिर, थिरुपरमकुनरम मंदिर आदि में इस पर्व पर छः दिनों तक विशेष पूजा की व्यवस्था की जाती है। कई जगहों पर विशाल मेले का भी आयोजन होता है।
स्कंद षष्ठी पर्व का धार्मिक महत्व
शास्त्रों अनुसार स्कंद पुराण भी अन्य सभी अठारह पुराणों की तरह ही बेहद पवित्र हैं। स्कंद पुराण के अनुसार पौराणिक काल में तारकासुर, सुरपद्मा, सिम्हामुखा ने अपनी दिव्य शक्तियों से देवताओं को हराकर उन्हें स्वर्ग से भगाकर पृथ्वीलोक पर भेज दिया था। स्वर्ग लोक पर जीत हासिल कर अब उन राक्षसों ने पृथ्वी पर आतंक मचाना शुरू कर दिया था। जिसके लिए वो देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करने लगे थे। हर तरफ त्राहि-त्राहि हो गई थी। तीनों लोकों पर राक्षसों के अत्याचार से सभी देवता और मनुष्य बेहद परेशान रहने लगे थे।
तीनों राक्षसों तारकासुर, सुरपद्मा, सिम्हामुखा में से एसुरपद्मा को भगवान महादेव से ये वरदान प्राप्त था, कि उसे भगवान शिव के पुत्र के अलावा कोई भी देवता या मनुष्य नहीं मार सकता। इधर राक्षसों का आतंक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था और उधर देवी सती के अग्नि को प्राप्त हो जाने के कारण भगवान शिव बेहद नाराज़ थे और घोर तप में लीन थे। राक्षसों ने भगवान शिव के तप में लीन होने का भरपूर फायदा उठाया क्योंकि वो जानते थे कि महादेव के अलावा उन्हें कोई नहीं रोक सकता, इसलिए उन्हें उस समय किसी का भय नहीं था।
राक्षसों के बढ़ते आतंक से परेशान होकर सभी देवी-देवता भगवान ब्रह्मा के समक्ष इस गंभीर विपदा के लिये सहायता मांगने पहुंचे। सभी देवताओं की विनती पर ब्रह्मा जी ने काम देव जी को भगवान शिव को योग निंद्रा से जगाने का निवेदन किया। हालांकि सभी ये बात भली-भाँती जानते थे कि महादेव को योग निंद्रा से जगाना कोई आसान काम नहीं है। इस काम में बहुत संकट था, क्योंकि भगवान शिव के क्रोध से बच पाना हर किसी के लिए मुश्किल था। परंतु राक्षसों के आतंक के आगे काम देव जी ने इस कार्य को करने का फैसला ले लिया और अपने इस कार्य में उन्हें सफलता भी मिली। लेकिन अपने तप में पड़े इस विघ्न के चलते भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल गया और उसकी क्रोधाग्नि से काम देव जी उसी समय भस्म हो गए।
माना जाता है कि उस समय भगवान शिव का अंश छह भागों में बंट गया, जो जाकर गंगा नदी में गिरा। फिर देवी गंगा ने महादेव के उन सभी छह अंशों को वन में रखा। उन्हीं से कई वर्षों बाद माता पार्वती ने महादेव के छह पुत्रों को बनाया और उनमें से एक थे भगवान मुरुगन।
स्कंद पुराण में भगवान मुरुगन को कई रूपों में दर्शाया हुआ है। उसके अनुसार:-
- भगवान मुरुगन का एक चेहरा, दो हाथ है।
- दूसरे रूप के अनुसार उनके एक चेहरा चार हाथ है।
- तीसरे रूप के अनुसार उन्हें छह चेहरे और बारह हाथ होते हैं।
यहाँ माता पार्वती भगवान मुरुगन को बना रही थी और उधर राक्षसों का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। उन्होंने कई देवी-देवताओं को बंदी बना लिया था। उनके इसी आतंक को देखते हुए भगवान मुरुगन ने उन सभी का अंत करने का फैसला लिए और राक्षसों को युद्ध के लिए बुलाया। ये युद्ध कई दिनों तक चला और अंतिम दिन में भगवान मुरुगन ने आखिरकार सुरपद्मा राक्षस का वध कर समस्त संसार का और देवताओं का उद्धार कर दिया।
जिस दिन राक्षसों का अंत हुआ वो दिन स्कंद षष्टि का ही पावन दिन था, जिस दौरान बुराई पर हमेशा की तरह अच्छाई की जीत हुई। तभी से माना जाता है कि ये पर्व इस जीत के उपलक्ष में हर साल बड़ी श्रद्धा-भाव से दक्षिण भारत के लोग उत्साह के साथ मनाते हैं।
चूँकि भगवान मुरुगन को कई अलग-अलग राज्यों में कई नामों से जाना जाता हैं जैसे कार्तिकेय, मुरुगन स्वामी उन्ही में से एक नाम उनका स्कन्द भी है, इसलिए इस दिवस को स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता हैं।
स्कंद षष्ठी पर्व के दौरान इन बातों का रखें विशेष ध्यान
- इन छः दिनों तक मांसाहार या शराब का सेवन बिलकुल नही करना चाहिए।
- इस दौरान कई लोग प्याज़, लहसन का प्रयोग करना भी वर्जित मानते हैं।
- जो भी श्रद्धालु स्कंद षष्ठी का उपवास करते हैं उन्हें भगवान मुरुगन का पाठ, कांता षष्ठी कवसम एवं सुब्रमणियम भुजंगम का पाठ अवश्य ही करना चाहिए।
- इस दौरान सुबह भगवान मुरुगन के मंदिर में जाकर उनके समक्ष भी पूजा करने का विधान है।
- उपवास के दौरान कुछ भी नहीं खाना चाहिए। हालांकि अगर ऐसा संभव न हो तो आप एक वक़्त भोजन या फलाहार कर सकते हैं।
- छः दिनों तक चलने वाले इस पर्व पर सभी छः दिनों तक उपवास करना शुभ होता है।
- कई लोग इस पर्व पर उपवास नारियल पानी पीकर भी छः दिनों तक करते हैं।
- इस दौरान मनुष्य को झूठ बोलने, लड़ने- झगड़ने से परहेज करना चाहिए।
स्कंद षष्ठी के दिन इन मंत्रों से करें भगवान मुरुगन की पूजा
शास्त्रों की मानें को स्कंद षष्ठी के उत्सव के दौरान इन मंत्रों के साथ भगवान मुरुगन की पूजा करना बहुत फलदायक होती है। इन मन्त्रों का जप करने से दाम्पत्य जीवन में सदैव सुख की अनुभूति होती हैं।
-ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात।
-ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते।
हम आशा करते हैं कि भगवान मुरुगन आपको स्कंद षष्ठी 2019 उत्सव पर अपार सुख-समृद्धि प्रदान करें। हम आपके मंगल भविष्य की कामना करते हैं।
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