काली चौदस आज, जानें पूजा मुहूर्त एवं व्रत विधि

काली चौदस का पर्व दिवाली के एक दिन पहले यानि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। आम बोल चाल की भाषा में इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, भी इस पर्व के प्रचलित नाम हैं। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन लोग अभ्यंग स्नान करने के बाद यमराज की पूजा का विधान है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन संध्या के समय दीप जलाए जाते हैं। 



काली चौदस पूजा मुहूर्त


दिनाँककाली चौदस निशीथ पूजा का मुहूर्तकुल अवधि
26-27 अक्टूबर, 201923:39 से 24:31 बजे तक52 मिनट

अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त

दिनांक27 अक्टूबर, 2019
समय05:15:59 से 06:29:17 तक
अवधि1 घंटे 13 मिनट

ऊपर दिया गया समय नई दिल्ली (भारत) के लिए है। अपने शहर के अनुसार जानें - अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

क्यों मनाया जाता है काली चौदस का पर्व


मान्यता के अनुसार, काली चौदस का पर्व भगवान विष्णु जी के नरकासुर नामक राक्षस पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस पर्व का संबंध माँ काली के पूजन से भी है। आज के दिन तांत्रिक विद्या सीखने और तांत्रिक क्रिया करने का विशेष दिन होता है। माँ काली को तांत्रिक विद्याओं की देवी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कोई साधक आज के दिन यदि माँ काली को प्रसन्न कर लेता है तो उसे अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। काली चौदस के दिन माँ काली की आराधना से भक्तों के जीवन से शारीरिक और मानसिक परेशानियाँ समाप्त हो जाती हैं।

काली चौदस के दिन अभ्यंग स्नान का महत्व


नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान का बड़ा महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि इस पावन दिन पर शुभ मुहूर्त के समय अभ्यंग स्नान किया जाए तो व्यक्ति को नर्क के भय से मुक्ति मिलती है। अभ्यंग स्नान से पहले शरीर पर तिल के तेल की मालिश की जाती है, इसके बाद अपामार्ग (चिरचिरा) की पत्तियाँ स्नान हेतु पानी में डाली जाती है और उसके बाद ही इससे स्नान किया जाता है। इसके साथ ही ऐसा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं, जिससे व्यक्ति को अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है और पापों से मुक्ति मिलती है। 

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काली चौदस की पूजन विधि


  • प्रात:काल सूर्य उदय से पहले स्नान करें। 
  • इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करें।
  • उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाएँ।
  • इससे पूर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखें।
  • काली चौदस के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाएँ।
  • स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। 
  • इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
  • शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें।
  • आज के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
  • इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है।

काली चौदस (नरक चतुर्दशी) से जुड़ी पौराणिक कथा 


पौराणिक कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और साधु संतों को आतंकित कर 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया था। नरकासुर के आतंक से परेशान होकर समस्त देवतागण एवं साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में पहुँचे। तब श्री कृष्ण जी ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। 

नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए श्री कृष्ण जी ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी क़ैद से 16 हज़ार स्त्रियों को आज़ाद कराया। बाद में ये सभी स्त्रियाँ भगवान श्री कृष्ण की पट रानियां कहलायीं। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाकर ख़ुशियाँ मनायीं और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

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