पंडित हनुमान मिश्रा
भारतवर्ष में अनेकों त्यौहार मनाएं जाते हैं जो हमारे व्यस्तम जीवन की नीरसता को दूर कर एक नया उत्साह और नया रंग घोलने का का कार्य करते हैं। अभी हमने जिस उत्साह और रंग की बात की है वो अनुभव करने की विषयवस्तु हैं लेकिन एक ऐसा त्यौहार है जिसके द्वारा प्रदत्त उत्साह और रंग प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। वह है होली का त्यौहार। वास्तव में होली एक दिन का त्यौहार न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार होता है।
होलिकोत्सव की शुरुआत होलाष्टक से ही हो जाती है। “होलाष्टक” शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।
इस वर्ष होलाष्टक 20 मार्च 2013 से प्रारम्भ हो रहा है और 28 मार्च 2013 तक रहेगा। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए २ डंडे स्थापित किये जते है। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं। क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं इसलिए होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी को कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परम्परा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंतेष्ठि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है।
देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जेसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानो पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।
भारतवर्ष में अनेकों त्यौहार मनाएं जाते हैं जो हमारे व्यस्तम जीवन की नीरसता को दूर कर एक नया उत्साह और नया रंग घोलने का का कार्य करते हैं। अभी हमने जिस उत्साह और रंग की बात की है वो अनुभव करने की विषयवस्तु हैं लेकिन एक ऐसा त्यौहार है जिसके द्वारा प्रदत्त उत्साह और रंग प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। वह है होली का त्यौहार। वास्तव में होली एक दिन का त्यौहार न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार होता है।
होलिकोत्सव की शुरुआत होलाष्टक से ही हो जाती है। “होलाष्टक” शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।
इस वर्ष होलाष्टक 20 मार्च 2013 से प्रारम्भ हो रहा है और 28 मार्च 2013 तक रहेगा। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए २ डंडे स्थापित किये जते है। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं। क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं इसलिए होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी को कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परम्परा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंतेष्ठि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है।
देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जेसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानो पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।
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