जगन्नाथ रथ यात्रा, आस्था का महापर्व

रथयात्रा में भाई-बहन के पीछे क्यों चलते हैं भगवान! जानें जगन्नाथ रथयात्रा का धार्मिक और पौराणिक महत्व। पढ़ें पुरी में हर साल की तरह 25 जून 2017 को धूमधाम से निकाली जाने वाली रथयात्रा की विशेषता।



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जगन्नाथ रथयात्रा


जगन्नाथ रथ यात्रा का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। ओडिशा राज्य के पुरी शहर में हर साल इस यात्रा का आयोजन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को किया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तारीख अक्सर जून या जुलाई के महीने में आती है। वर्ष 2017 में पुरी रथयात्रा 25 जून को निकाली जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन रथयात्रा के जरिए भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ प्रसिद्ध गुंडीचा माता के मंदिर में जाते हैं। इस यात्रा से एक दिन पूर्व गुंडीचा मार्जन नामक परंपरा को निभाया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा गुंडीचा मंदिर को धोया जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा देखने के लिए भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों से लोग हर साल पुरी पहुंचते हैं। इसके अलावा देश के कई राज्यों में भी पुरी की तरह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। 

जगत के नाथ यानि जगन्नाथ भगवान का मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। इस रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होते हैं। इन तीनों की इस पूरी यात्रा के दौरान भक्ति-भाव से पूजा की जाती है और तीनों के भव्य एवं विशाल रथों को सड़कों पर निकाला जाता है जिसमें बलभद्र का रथ आगे, सुभद्रा का मध्य और श्री कृष्ण का पीछे चलता है।

यात्रा से पूर्व रथ का निर्माण


भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए लकड़ी से निर्मित तीन रथों का निर्माण होता है। इन रथ की खास बात है कि, इसमें किसी भी अन्य धातु की कील या कांटा नहीं लगाया जाता है। रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया पर वनजगा महोत्सव से प्रारंभ होता है और रथ के लिए लकड़ी चुनने का काम इससे पहले बसंत पंचमी से शुरू हो जाता है। वहीं पुराने रथ की लकड़ियों को भक्तजन खरीद लेते हैं और इनका उपयोग अपने घरों में खिड़की और दरवाजे आदि बनाने के काम में करते हैं। 

रथयात्रा के दौरान मनाई जाने वाली परंपरा


हर साल पुरी में आयोजित होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा में कुछ धार्मिक रस्में निभाई जाती है। इनमें पहांडी, छेरा पहरा और हेरा पंचमी परंपरा का विशेष महत्व है।

पहांडी: पहांडी एक धार्मिक परंपरा है जिसमें भक्तों के द्वारा बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की रथ यात्रा कराई जाती है। कहा जाता जाता है कि गुंडिचा भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थीं, और उनकी इसी भक्ति का सम्मान करते हुए ये इन तीनों उनसे हर वर्ष मिलने जाते हैं।

छेरा पहरा: रथ यात्रा के पहले दिन छेरा पहरा की रस्म निभाई जाती है, जिसके अंतर्गत पुरी के गजपति महाराज के द्वारा यात्रा मार्ग एवं रथों को सोने की झाड़ू स्वच्छ किया जाता है। दरअसल, प्रभु के सामने हर व्यक्ति समान है। इसलिए एक राजा साफ़-सफ़ाई वाले का भी कार्य करता है। 

हेरा पंचमी: यात्रा के पाँचवें दिन हेरा पंचमी का महत्व है। इस दिन माँ लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में निकल गए हैं।

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जगन्नाथ रथयात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व


धार्मिक दृष्टि से पुरी रथयात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित है, जो स्वयं विष्णु के अवतार माने जाते हैं। मान्यता है कि जो भक्त रथयात्रा में निष्ठा के साथ सम्मिलित होता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। रथयात्रा एक सामुदायिक पर्व है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है और न उपवास रखा जाता है। रथयात्रा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ को अर्पित चावल कभी अशुद्ध नहीं होता है इसलिए इसे महाप्रसाद की संज्ञा दी गई है। देश-विदेश के सैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केन्द्र मानी जाती है। इस यात्रा को पुरी कार फ़ेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। ये सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।

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