पढ़ें इस व्रत की पूजा विधि और नियम! कल यानि 23 जून 2018 को निर्जला एकादशी व्रत मनाया जाएगा। विस्तार से जानें इस व्रत के नियम और पूजा विधि।
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हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी पड़ती हैं। हालांकि पुरुषोत्तम मास या मल मास में इनकी संख्या 24 से बढ़कर 26 हो जाती है। इन सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है और इसका व्रत अत्यंत कठिन होता है। क्योंकि इस एकादशी के व्रत में अन्न के अलावा पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी पड़ती हैं। हालांकि पुरुषोत्तम मास या मल मास में इनकी संख्या 24 से बढ़कर 26 हो जाती है। इन सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है और इसका व्रत अत्यंत कठिन होता है। क्योंकि इस एकादशी के व्रत में अन्न के अलावा पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत मुहूर्त | |
निर्जला एकादशी पारणा मुहूर्त
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13:47:13 से 16:34:49 तक 24 जून को
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अवधि
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2 घंटे 47 मिनट
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हरि वासर समाप्त होने का समय
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10:10:08 पर 24 जून को
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सूचना: उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में निर्जला एकादशी व्रत का मुहूर्त
मान्यता है कि जो श्रद्धालु साल की सभी 24 एकादशी का व्रत करने में समर्थ नहीं रहता है, उसे निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए। क्योंकि इस एकादशी का व्रत करने से दूसरी सभी एकादशियों के व्रत का लाभ मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व होता है।
निर्जला एकादशी व्रत में पानी क्यों नहीं पीया जाता है?
यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी में आता है। ज्येष्ठ मास में गर्मी अधिक होती है और दिन भी बड़े होते हैं, इसलिए इन दिनों में प्यास अधिक लगती है। ऐसे में यह व्रत अत्यंत कठिन होने के साथ-साथ संयम को भी दर्शाता है। इस व्रत में एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल नहीं पिया जाता है। ऐसी दशा में इतना कठोर व्रत रखना ईश्वर के प्रति बड़ी साधना का काम है। हालांकि इस व्रत में फलाहार के बाद दूध ग्रहण किया जा सकता है।
महाभारत काल में निर्जला एकादशी
इस एकादशी व्रत के महत्व का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को भीम ने धारण किया था, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। स्वयं महर्षि वेद व्यास ने पांडवों को निर्जला एकादशी व्रत का महत्व बताया था और इस व्रत को धारण करने को कहा था।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को बिना अन्न-जल ग्रहण किये संयमित रहकर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। इस दिन दान-पुण्य और स्नान का भी विशेष महत्व है। प्रातःकाल पवित्र नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए, साथ ही ब्राह्मण या किसी जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन और दान देना चाहिए। निर्जला एकादशी व्रत के प्रताप से व्यक्ति को दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन पारणा के बाद यह व्रत पूर्ण रूप से संपन्न होता है।
हम आशा करते हैं कि निर्जला एकादशी पर आधारित यह लेख आपको अवश्य पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज की ओर से उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ!
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