आचार्य रमन
हम जब भी कोई काम शुरू करना चाहते हैं तो बहुधा हम कोशिश करते हैं की उसे ऐसे दिन प्रारंभ करें जिस से हमें उसका अधिकतम सकारात्मक फल प्राप्त हो। इसको मुहुर्त भी कहते हैं। मैं आप लोगों से एक नियम साझा करूंगा जिस से आप इस मुहुर्त को खुद ही प्राप्त कर पायेंगे थोड़े से अध्ययन मनन और स्वविवेक से। इसको मैंने स्वयं अपने जीवन में बहुत सफल पाया है इसलिए आप लोगों को भी बता रहा हूँ। इसका सामान्य रूप से प्रचलित मुहूर्त से कोई लेना देना नहीं है और यदि आपने प्रयास करा तो आपको कभी मुहूर्त आदि के लिए किसी पंडित जी की सेवा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
प्रत्येक गृह को ३ नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है जो की इस प्रकार हैं:
केतु : अश्विनी, मघा, मूल
शुक्र : भरिणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा
सूर्य : कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा
चन्द्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण
मंगल : मृगशिरा, चित्र, धनिष्ठा
राहू :आर्द्रा, स्वाति, सतभिषा
गुरु : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद
शनि : पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपद
बुध :अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती
जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो वोही हमारा जन्म नक्षत्र होता है। चन्द्र जिस राशी में हो वोही हमारी जन्म राशी होती है। सूर्य जिस राशी में हो वोही हमारी सूर्य राशी होती है।
अब आपके जन्म नक्षत्र से गिनना शुरू कीजिये:
१) जन्म –अर्थात जिस नक्षत्र में जन्म हुआ हो
२) संपत – जन्म नक्षत्र से दूसरा नक्षत्र
३) विपत – जन्म नक्षत्र से तृतीय
४) क्षेम – चतुर्थ
५) प्रत्यारी – पंचम
६) साधक – षष्ठ
७) निधन – सप्तम
८) मित्र – अष्टम
९) परम मित्र – नवम
हिन्दू ज्योतिष पूर्ण रूप से नक्षत्र आधारित ज्योतिष है और नक्षत्र क्रम इसमें पूर्व निश्चित है जो की इस प्रकार है:
१)अश्विनी २)भरिणी ३)कृत्तिका ४)रोहिणी ५)मृगशिरा ६)आर्द्रा ७)पुनर्वसु ८)पुष्य ९)अश्लेषा
१)मघा २)पूर्वाफाल्गुनी ३)उत्तराफाल्गुनी ४)हस्त ५)चित्रा ६)स्वाति ७)विशाखा ८)अनुराधा ९)ज्येष्ठा
१)मूल २)पूर्वाषाढ़ा ३)उत्तराषाढ़ा ४)श्रवण ५)धनिष्ठा ६)सतभिषा ७)पूर्वाभाद्रपद ८)उत्तराभाद्रपद ९)रेवती
आपकी सुविधा के लिए ये तीन विभाजन कर दिए हैं जिस से आपको समझने में असुविधा ना हो।
मान लीजिये आपका जन्म ३१-८-२०१२ को ९:०१ पर हुआ है।
चन्द्रमा इस दिन कुम्भ राशी और सतभिषा नक्षत्र में था। तो आपका जन्म नक्षत्र हुआ सतभिषा। इस से दूसरा हुआ पूर्वाभाद्रपद, तीसरा - उत्तरभाद्रपद, चौथा – रेवती, पांचवा – अश्विनी, छठा – भरिणी, सातवाँ – कृतिका, आठवाँ – रोहिणी, नौवां – मृगशिरा।
जो भी गृह (१)जन्म (२)संपत (४)क्षेम (६)साधक (८)मित्र, इन नक्षत्रों में स्थित होगा यदि वह बलवान हुआ तो मध्यम फलदायी होगा यदि दुर्बल हुआ तो शुभ फल नहीं दे पायेगा। खुद में ही दम नहीं रहेगी तो आपको कैसे संभालेगा?
जो भी गृह (९)परम मित्र नक्षत्र में होते हैं वोह अति शुभ फलदायी होते हैं।
जो भी गृह (३)विपत (५)प्रत्यारी (७)निधन में होते हैं वे अशुभ फलदायी होते हैं।
संपत सबसे शुभ और निधन सबसे अशुभ होता है।
इस सिद्धांत को सावधानी पूर्वक उपयोग में लाने पर आप किसी भी कार्य को ज्योतिषीय हिसाब से सबसे अच्छे दिन शुरू कर सकते हैं। इस सिद्धांत के साथ गृह गोचर को ध्यान में अवश्य रखें।
इसका उपयोग आप किसी नए कार्य की शुरुआत करने में ,नया वाहन खरीदने में, गृह प्रवेश इत्यादि में कर सकते हैं। व्यापार के लिए बहुत उपयोगी सिद्धांत है और बहुत काम करता है।
यदि कोई गृह आपकी जन्म कुंडली में अष्टमेश भी है मगर परम मित्र नक्षत्र में है और थोडा भी शुभ प्रभाव उस पर है तो वोह आपका अहित करने की जगह शुभ फलदायी हो जाता है। और लग्नेश यदि विपत निधन आदि में है तो लग्नेश ही आपका परम शत्रु सिद्ध होता है।
यदि आपको वाहन लेना है या बैंक में किसी क़र्ज़ के लिए आवेदन देना है या नौकरी के लिए साक्षात्कार के लिए जाना है तो आप इस तालिका से आपके लिए सबसे शुभ दिन ज्ञात कर सकते और उस दिन अपना कार्य शुरू कर सकते हैं ।किसी भी कार्य का होना न होना बहुत सारे विषयों से ताल्लुक रखता है मात्र नक्षत्र से नहीं। और वह थोडा अन्दर का विषय है। लेकिन फिर भी इन दिनों में आप प्रयास करेंगे तो आपका कार्य सफल होने की प्रायकता बहुत बढ़ जाएगी इसमें कोई संदेह नहीं है।
आजकल की अत्यधिक व्यस्त जीवन शैली में पति पत्नी के सम्बन्ध भी बहुत बार बिगड़ जाते हैं, कार्य की अधिकता या अन्य कारणों से। यदि आप दोनों अपनी जन्म पत्रिका के अनुसार शुभ नक्षत्रों में (जो दोनों के लिए सामान रूप से शुभ हों) वार्तालाप या संयोग इत्यादि करने का प्रयास करेंगे तो निश्चित ही आपके संबंधों में भी मधुरता आने की संभावना बढ़ जायेगी।
नक्षत्र के साथ महादशा अंतर, प्रत्यंतर और गृह गोचर का यदि आप सफल समावेश कर लेंगे तो शुभता और बढ़ जायेगी।
कुछ बातें मैंने इसमें से हटा दी हैं जिस से आप स्वयं प्रयास कर सकें और छूटी हुई कड़ी को पकड़ सकें।
हम जब भी कोई काम शुरू करना चाहते हैं तो बहुधा हम कोशिश करते हैं की उसे ऐसे दिन प्रारंभ करें जिस से हमें उसका अधिकतम सकारात्मक फल प्राप्त हो। इसको मुहुर्त भी कहते हैं। मैं आप लोगों से एक नियम साझा करूंगा जिस से आप इस मुहुर्त को खुद ही प्राप्त कर पायेंगे थोड़े से अध्ययन मनन और स्वविवेक से। इसको मैंने स्वयं अपने जीवन में बहुत सफल पाया है इसलिए आप लोगों को भी बता रहा हूँ। इसका सामान्य रूप से प्रचलित मुहूर्त से कोई लेना देना नहीं है और यदि आपने प्रयास करा तो आपको कभी मुहूर्त आदि के लिए किसी पंडित जी की सेवा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
प्रत्येक गृह को ३ नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है जो की इस प्रकार हैं:
केतु : अश्विनी, मघा, मूल
शुक्र : भरिणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा
सूर्य : कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा
चन्द्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण
मंगल : मृगशिरा, चित्र, धनिष्ठा
राहू :आर्द्रा, स्वाति, सतभिषा
गुरु : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद
शनि : पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपद
बुध :अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती
जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो वोही हमारा जन्म नक्षत्र होता है। चन्द्र जिस राशी में हो वोही हमारी जन्म राशी होती है। सूर्य जिस राशी में हो वोही हमारी सूर्य राशी होती है।
अब आपके जन्म नक्षत्र से गिनना शुरू कीजिये:
१) जन्म –अर्थात जिस नक्षत्र में जन्म हुआ हो
२) संपत – जन्म नक्षत्र से दूसरा नक्षत्र
३) विपत – जन्म नक्षत्र से तृतीय
४) क्षेम – चतुर्थ
५) प्रत्यारी – पंचम
६) साधक – षष्ठ
७) निधन – सप्तम
८) मित्र – अष्टम
९) परम मित्र – नवम
हिन्दू ज्योतिष पूर्ण रूप से नक्षत्र आधारित ज्योतिष है और नक्षत्र क्रम इसमें पूर्व निश्चित है जो की इस प्रकार है:
१)अश्विनी २)भरिणी ३)कृत्तिका ४)रोहिणी ५)मृगशिरा ६)आर्द्रा ७)पुनर्वसु ८)पुष्य ९)अश्लेषा
१)मघा २)पूर्वाफाल्गुनी ३)उत्तराफाल्गुनी ४)हस्त ५)चित्रा ६)स्वाति ७)विशाखा ८)अनुराधा ९)ज्येष्ठा
१)मूल २)पूर्वाषाढ़ा ३)उत्तराषाढ़ा ४)श्रवण ५)धनिष्ठा ६)सतभिषा ७)पूर्वाभाद्रपद ८)उत्तराभाद्रपद ९)रेवती
आपकी सुविधा के लिए ये तीन विभाजन कर दिए हैं जिस से आपको समझने में असुविधा ना हो।
मान लीजिये आपका जन्म ३१-८-२०१२ को ९:०१ पर हुआ है।
चन्द्रमा इस दिन कुम्भ राशी और सतभिषा नक्षत्र में था। तो आपका जन्म नक्षत्र हुआ सतभिषा। इस से दूसरा हुआ पूर्वाभाद्रपद, तीसरा - उत्तरभाद्रपद, चौथा – रेवती, पांचवा – अश्विनी, छठा – भरिणी, सातवाँ – कृतिका, आठवाँ – रोहिणी, नौवां – मृगशिरा।
जो भी गृह (१)जन्म (२)संपत (४)क्षेम (६)साधक (८)मित्र, इन नक्षत्रों में स्थित होगा यदि वह बलवान हुआ तो मध्यम फलदायी होगा यदि दुर्बल हुआ तो शुभ फल नहीं दे पायेगा। खुद में ही दम नहीं रहेगी तो आपको कैसे संभालेगा?
जो भी गृह (९)परम मित्र नक्षत्र में होते हैं वोह अति शुभ फलदायी होते हैं।
जो भी गृह (३)विपत (५)प्रत्यारी (७)निधन में होते हैं वे अशुभ फलदायी होते हैं।
संपत सबसे शुभ और निधन सबसे अशुभ होता है।
इस सिद्धांत को सावधानी पूर्वक उपयोग में लाने पर आप किसी भी कार्य को ज्योतिषीय हिसाब से सबसे अच्छे दिन शुरू कर सकते हैं। इस सिद्धांत के साथ गृह गोचर को ध्यान में अवश्य रखें।
इसका उपयोग आप किसी नए कार्य की शुरुआत करने में ,नया वाहन खरीदने में, गृह प्रवेश इत्यादि में कर सकते हैं। व्यापार के लिए बहुत उपयोगी सिद्धांत है और बहुत काम करता है।
यदि कोई गृह आपकी जन्म कुंडली में अष्टमेश भी है मगर परम मित्र नक्षत्र में है और थोडा भी शुभ प्रभाव उस पर है तो वोह आपका अहित करने की जगह शुभ फलदायी हो जाता है। और लग्नेश यदि विपत निधन आदि में है तो लग्नेश ही आपका परम शत्रु सिद्ध होता है।
यदि आपको वाहन लेना है या बैंक में किसी क़र्ज़ के लिए आवेदन देना है या नौकरी के लिए साक्षात्कार के लिए जाना है तो आप इस तालिका से आपके लिए सबसे शुभ दिन ज्ञात कर सकते और उस दिन अपना कार्य शुरू कर सकते हैं ।किसी भी कार्य का होना न होना बहुत सारे विषयों से ताल्लुक रखता है मात्र नक्षत्र से नहीं। और वह थोडा अन्दर का विषय है। लेकिन फिर भी इन दिनों में आप प्रयास करेंगे तो आपका कार्य सफल होने की प्रायकता बहुत बढ़ जाएगी इसमें कोई संदेह नहीं है।
आजकल की अत्यधिक व्यस्त जीवन शैली में पति पत्नी के सम्बन्ध भी बहुत बार बिगड़ जाते हैं, कार्य की अधिकता या अन्य कारणों से। यदि आप दोनों अपनी जन्म पत्रिका के अनुसार शुभ नक्षत्रों में (जो दोनों के लिए सामान रूप से शुभ हों) वार्तालाप या संयोग इत्यादि करने का प्रयास करेंगे तो निश्चित ही आपके संबंधों में भी मधुरता आने की संभावना बढ़ जायेगी।
नक्षत्र के साथ महादशा अंतर, प्रत्यंतर और गृह गोचर का यदि आप सफल समावेश कर लेंगे तो शुभता और बढ़ जायेगी।
कुछ बातें मैंने इसमें से हटा दी हैं जिस से आप स्वयं प्रयास कर सकें और छूटी हुई कड़ी को पकड़ सकें।
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