पंडित हनुमान मिश्रा
सभी ऋतुओं में वसंत का अपना अलग महत्व है। वसंत का आगमन उल्लास और उमंग लाता है। वातावरण में विशेष स्फूर्ति दिखने लगती है और मन अपने कोमल और निर्मल स्वभाव के साथ हिलोरे लेता रहता है। सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही बसंतोत्सव मनाया जाने लगता है। यह पर्व दो कारणों से सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र रहता है। पहला है रति-काम महोत्सव। इस अवधि में पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोपलों से आच्छादित होने लगते हैं। फूलों की सुगंध और भौंरों की गूंज से सम्पूर्ण वातवरण आम जन को मदहोश करने लगता है। बसंत ऋतु मे प्रकृति के सौन्दर्य मे एक कमनिये निखार आ जाता है, पक्षियों के व्यवहार मे कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजार होने लगता है। शायद यही कारण है कि इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। बसंत के इस मौसम पर ‘शुक्र’ ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव रहता है। शुक्र काम और सौंदर्य का कारक ग्रह माना गया है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखें तो बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को कहते हैं। माघ मास को देव मास भी कहते हैं,इस मास मे ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और ये भी सर्व विदित है की उत्तरायण देवताओं का दिन होता है और दक्षिणायन रात। बसंत पंचमी ज्योतिष का अबूझ मुहूर्त है ,इस दिन विवाह,नामकरण संस्कार,गृहप्रवेश आदि निःसंकोच किये जा सकते हैं वो भी बिना पंचांग शुद्धी और ज्योतिषिये सलाह के माघ मास मैं जप,तप, ब्रत और गंगा स्नान का अपना महत्व है। इस बार बसंत पंचमी का त्यौहार 14 और 15 फरवरी को है। पंचमी तिथि का उदय 14 फरवरी को सुबह 8 बजकर 19 मिनट पर हो रहा है और 15 फरवरी को सुबह 9 बजकर 05 मिनट यह तिथि रहेगी। पंचमी तिथि प्रवेश के समय चन्द्रमा मीन राशि में रहेगा। अत: प्रेम प्रसंग के लिए यह बसंत आपके लिए कैसा फलदायी रहेगा इसके लिए आप हमारा लेख "इस वेलेन्टाइन डे क्या करें, क्या न करें" जरूर पढें।
बसंत ऋतु के प्रमुख देवी व देवता कामदेव व रति को भी माना गया है और अधि देवता श्री कृष्ण हैं अतः बसंत पंचमी के दिन काम देव व रति की पूजा का भी विधान है। बसंत ऋतु मे प्रकृति मे एक आकर्षण उत्पन्न होता है जो की कामदेव का ही एक स्वरुप है। भारतीय दर्शन शास्त्र ने काम को भी देव मानकर पूजा की है क्योंकि काम के वगैर जीवन गतिहीन व नीरस है काम नहीं तो सृष्टि नहीं। लेकिन काम देव हैं शैतान नहीं, काम मर्यादित होना चाहिए, शास्त्र सम्मत होना चाहिए उन्मुक्त और अश्लील नहीं। इसी के नियंतरण और रूपांतरण की व्यवस्था का नाम है गृहस्थाश्रम। मर्यादा और शास्त्र आज्ञा से जीवन जीना ही बसंत पंचमी का उदघोष है।
दूसरा प्रमुख कारण जो इस उत्सव के मनाने के पीछे है वह है मां सरस्वती का जन्मदिन। आज के दिन विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की देवी माँ सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ था। भारतीय संस्कृति में सरस्वती पूजन का विशेष महत्व है। माघ शुक्ल पंचमी का दिन ज्ञान, संगीत और कला की देवी माँ सरस्वती की वंदना का अवसर देता है। प्राचीन समय में बच्चे के पढ़ाई आरंभ करने पर माँ सरस्वती का आह्वान किया जाता था। प्राचीन काल से हमारे गुरुकुलों और घरों मे भी ये परंपरा रही है की आज के ही दिन बालकों को प्रथम अक्षर के रूप मे माँ सरस्वती का बीज मन्त्र "ऐं" उनकी जिह्वा पर केसर की स्याही से लिखकर और इसी मन्त्र का पाठ कराकर विद्यारम्भ कराया जाता है। आज भी गुरुकुलों मे यह परंपरा विद्यमान है और बहुत धूमधाम से ये त्यौहार आज भी गुरुकुलों मे मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की आज के दिन विद्यारम्भ करने से विद्या प्राप्ति मे बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता और माँ सरस्वती की विशेष कृपा उस विद्यार्थी पर बनी रहती है।
जन्मकुण्डली का चौथा और पंचम भाव विद्या के नैसर्गिक भाव हैं। इन्हीं भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। ये भाव दूषित या पापाक्रांत हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है। इन भावों से प्रभावित लोग मां सरस्वती के प्राकटच्य पर्व माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) पर उनकी पूजा-अर्चना कर इच्छित क़ामयाबी हासिल कर सकते हैं। आज के दिन माँ की पूजा करने से बुद्धि तेज होती है, पढाई मे मन एकाग्र होता है। परीक्षाओं मे अच्छे नंबर आने लगते हैं। वाणी मे सरसता व मधुरता आती है। जिन बच्चों के बोलने मे परेशानी होती हो या तुतलाते हों तो वो माँ की कृपा से ठीक होने लगते हैं। आज के दिन माँ सरस्वती की पूजा,जप व व्रत करने से माँ का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है।
आइए अब यह जान लेते हैं कि अपनी राशि के अनुसार विद्यार्थी को किस प्रकार मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए।
मेष और वृश्चिक राशि के छात्रों को लाल पुष्प विशेषत: गुड़हल, लाल कनेर, लाल गैंदे आदि से मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। वृष और तुला राशि वाले छात्रों को श्वेत पुष्पों से मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए। मिथुन और कन्या राशि वाले छात्रों को कमल पुष्पों से आराधना करनी चाहिए। कर्क राशि वाले श्वेत कमल या अन्य श्वेत पुष्प से, जबकि सिंह राशि के लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल) से आराधना करके लाभ पा सकते हैं। धनु और मीन के लोग पीले पुष्प से मां सरस्वती की आराधना करें। मकर और कुंभ राशि के छात्रों को नीले पुष्पों से मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए।
आपके लिए कुछ ख़ास मन्त्र दिए जा रहे हैं जिनके जाप से आप सभी अत्यधिक लाभान्वित होंगे. इन्हें जपने की बिधि वही माँ सरस्वती के चित्र के सामने जहाँ तक संभव हो पीले वस्त्र पहन कर बैठें ,उन्हें पीले चन्दन का तिलक लगायें और निम्न मे से किसी भी मन्त्र का जाप अपनी श्रद्धा के अनुसार 1,3,5,1,7 अथवा 11 माला का जाप करें
मन्त्र 1: ऐं
मन्त्र 2: नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें
मन्त्र 3: ॐ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा
मन्त्र 4: सरस्वती चालीसा का रोज प्रातः पाठ करें
मन्त्र 5: विद्या प्राप्ति के लिए गणेश जी के बीज मन्त्र ॐ गं गणपतये नमः का भी जाप किया सकता है।
बसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। इस दिन विशेषकर मीठा चावल बनाया जाता है। जिसमें बादाम, किसमिस, काजू आदि डालकर खीर आदि विशेष व्यंजन बनाये जाते हैं। इसे दोपहर में परोसा जाता है। घर के सदस्यों व आगंतुकों में पीली बर्फी बांटी जाती है। केसरयुक्त खीर सभी को प्रिय लगती है। गायन आदि के विशेष कार्यक्रमों से इस त्यौहार का आनन्द और व्यापक हो जाता है। बसंत पंचमी पर हर साधक ना सिर्फ देवी की आराधना करता है बल्कि यह दिन कई मायनों में हर कलाकार के लिए खास होता है। कहीं पर कलाकार अपने वाद्य यंत्रों की पूजा-अर्चना करते हैं तो कहीं साधकों द्वारा पहले से ज्यादा अभ्यास और समर्पण के प्रण लिए जाते हैं। मां सरस्वती की कृपा से ही विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति होती है। देवी कृपा से ही कवि कालिदास ने यश और ख्याति अर्जित की थी। वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक और व्यास जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे। अत: हमें भी मां सरस्वती की कृपा प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।
सभी ऋतुओं में वसंत का अपना अलग महत्व है। वसंत का आगमन उल्लास और उमंग लाता है। वातावरण में विशेष स्फूर्ति दिखने लगती है और मन अपने कोमल और निर्मल स्वभाव के साथ हिलोरे लेता रहता है। सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही बसंतोत्सव मनाया जाने लगता है। यह पर्व दो कारणों से सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र रहता है। पहला है रति-काम महोत्सव। इस अवधि में पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोपलों से आच्छादित होने लगते हैं। फूलों की सुगंध और भौंरों की गूंज से सम्पूर्ण वातवरण आम जन को मदहोश करने लगता है। बसंत ऋतु मे प्रकृति के सौन्दर्य मे एक कमनिये निखार आ जाता है, पक्षियों के व्यवहार मे कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजार होने लगता है। शायद यही कारण है कि इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। बसंत के इस मौसम पर ‘शुक्र’ ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव रहता है। शुक्र काम और सौंदर्य का कारक ग्रह माना गया है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखें तो बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को कहते हैं। माघ मास को देव मास भी कहते हैं,इस मास मे ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और ये भी सर्व विदित है की उत्तरायण देवताओं का दिन होता है और दक्षिणायन रात। बसंत पंचमी ज्योतिष का अबूझ मुहूर्त है ,इस दिन विवाह,नामकरण संस्कार,गृहप्रवेश आदि निःसंकोच किये जा सकते हैं वो भी बिना पंचांग शुद्धी और ज्योतिषिये सलाह के माघ मास मैं जप,तप, ब्रत और गंगा स्नान का अपना महत्व है। इस बार बसंत पंचमी का त्यौहार 14 और 15 फरवरी को है। पंचमी तिथि का उदय 14 फरवरी को सुबह 8 बजकर 19 मिनट पर हो रहा है और 15 फरवरी को सुबह 9 बजकर 05 मिनट यह तिथि रहेगी। पंचमी तिथि प्रवेश के समय चन्द्रमा मीन राशि में रहेगा। अत: प्रेम प्रसंग के लिए यह बसंत आपके लिए कैसा फलदायी रहेगा इसके लिए आप हमारा लेख "इस वेलेन्टाइन डे क्या करें, क्या न करें" जरूर पढें।
बसंत ऋतु के प्रमुख देवी व देवता कामदेव व रति को भी माना गया है और अधि देवता श्री कृष्ण हैं अतः बसंत पंचमी के दिन काम देव व रति की पूजा का भी विधान है। बसंत ऋतु मे प्रकृति मे एक आकर्षण उत्पन्न होता है जो की कामदेव का ही एक स्वरुप है। भारतीय दर्शन शास्त्र ने काम को भी देव मानकर पूजा की है क्योंकि काम के वगैर जीवन गतिहीन व नीरस है काम नहीं तो सृष्टि नहीं। लेकिन काम देव हैं शैतान नहीं, काम मर्यादित होना चाहिए, शास्त्र सम्मत होना चाहिए उन्मुक्त और अश्लील नहीं। इसी के नियंतरण और रूपांतरण की व्यवस्था का नाम है गृहस्थाश्रम। मर्यादा और शास्त्र आज्ञा से जीवन जीना ही बसंत पंचमी का उदघोष है।
दूसरा प्रमुख कारण जो इस उत्सव के मनाने के पीछे है वह है मां सरस्वती का जन्मदिन। आज के दिन विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की देवी माँ सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ था। भारतीय संस्कृति में सरस्वती पूजन का विशेष महत्व है। माघ शुक्ल पंचमी का दिन ज्ञान, संगीत और कला की देवी माँ सरस्वती की वंदना का अवसर देता है। प्राचीन समय में बच्चे के पढ़ाई आरंभ करने पर माँ सरस्वती का आह्वान किया जाता था। प्राचीन काल से हमारे गुरुकुलों और घरों मे भी ये परंपरा रही है की आज के ही दिन बालकों को प्रथम अक्षर के रूप मे माँ सरस्वती का बीज मन्त्र "ऐं" उनकी जिह्वा पर केसर की स्याही से लिखकर और इसी मन्त्र का पाठ कराकर विद्यारम्भ कराया जाता है। आज भी गुरुकुलों मे यह परंपरा विद्यमान है और बहुत धूमधाम से ये त्यौहार आज भी गुरुकुलों मे मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की आज के दिन विद्यारम्भ करने से विद्या प्राप्ति मे बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता और माँ सरस्वती की विशेष कृपा उस विद्यार्थी पर बनी रहती है।
जन्मकुण्डली का चौथा और पंचम भाव विद्या के नैसर्गिक भाव हैं। इन्हीं भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। ये भाव दूषित या पापाक्रांत हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है। इन भावों से प्रभावित लोग मां सरस्वती के प्राकटच्य पर्व माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) पर उनकी पूजा-अर्चना कर इच्छित क़ामयाबी हासिल कर सकते हैं। आज के दिन माँ की पूजा करने से बुद्धि तेज होती है, पढाई मे मन एकाग्र होता है। परीक्षाओं मे अच्छे नंबर आने लगते हैं। वाणी मे सरसता व मधुरता आती है। जिन बच्चों के बोलने मे परेशानी होती हो या तुतलाते हों तो वो माँ की कृपा से ठीक होने लगते हैं। आज के दिन माँ सरस्वती की पूजा,जप व व्रत करने से माँ का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है।
आइए अब यह जान लेते हैं कि अपनी राशि के अनुसार विद्यार्थी को किस प्रकार मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए।
मेष और वृश्चिक राशि के छात्रों को लाल पुष्प विशेषत: गुड़हल, लाल कनेर, लाल गैंदे आदि से मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। वृष और तुला राशि वाले छात्रों को श्वेत पुष्पों से मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए। मिथुन और कन्या राशि वाले छात्रों को कमल पुष्पों से आराधना करनी चाहिए। कर्क राशि वाले श्वेत कमल या अन्य श्वेत पुष्प से, जबकि सिंह राशि के लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल) से आराधना करके लाभ पा सकते हैं। धनु और मीन के लोग पीले पुष्प से मां सरस्वती की आराधना करें। मकर और कुंभ राशि के छात्रों को नीले पुष्पों से मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए।
आपके लिए कुछ ख़ास मन्त्र दिए जा रहे हैं जिनके जाप से आप सभी अत्यधिक लाभान्वित होंगे. इन्हें जपने की बिधि वही माँ सरस्वती के चित्र के सामने जहाँ तक संभव हो पीले वस्त्र पहन कर बैठें ,उन्हें पीले चन्दन का तिलक लगायें और निम्न मे से किसी भी मन्त्र का जाप अपनी श्रद्धा के अनुसार 1,3,5,1,7 अथवा 11 माला का जाप करें
मन्त्र 1: ऐं
मन्त्र 2: नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें
मन्त्र 3: ॐ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा
मन्त्र 4: सरस्वती चालीसा का रोज प्रातः पाठ करें
मन्त्र 5: विद्या प्राप्ति के लिए गणेश जी के बीज मन्त्र ॐ गं गणपतये नमः का भी जाप किया सकता है।
बसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। इस दिन विशेषकर मीठा चावल बनाया जाता है। जिसमें बादाम, किसमिस, काजू आदि डालकर खीर आदि विशेष व्यंजन बनाये जाते हैं। इसे दोपहर में परोसा जाता है। घर के सदस्यों व आगंतुकों में पीली बर्फी बांटी जाती है। केसरयुक्त खीर सभी को प्रिय लगती है। गायन आदि के विशेष कार्यक्रमों से इस त्यौहार का आनन्द और व्यापक हो जाता है। बसंत पंचमी पर हर साधक ना सिर्फ देवी की आराधना करता है बल्कि यह दिन कई मायनों में हर कलाकार के लिए खास होता है। कहीं पर कलाकार अपने वाद्य यंत्रों की पूजा-अर्चना करते हैं तो कहीं साधकों द्वारा पहले से ज्यादा अभ्यास और समर्पण के प्रण लिए जाते हैं। मां सरस्वती की कृपा से ही विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति होती है। देवी कृपा से ही कवि कालिदास ने यश और ख्याति अर्जित की थी। वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक और व्यास जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे। अत: हमें भी मां सरस्वती की कृपा प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।
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