शनि त्रयोदशी व्रत आज- जानें महत्व, पूजा विधि व लाभ

इस शनि त्रयोदशी पर शनि देव और भगवान शिव का पाएँ आशीर्वाद! जानें व्रत और उद्यापन की संपूर्ण विधि। 


त्रयोदशी व्रत को प्रदोष व्रत भी कहा जाता है, जो माता पार्वती और भगवान शंकर की अपार कृपा पाने के लिए सबसे आसान व्रत माना जाता है। प्रदोष व्रत हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन ही रखा जाता है। ऐसे में जो प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ता है उसे शनि प्रदोष या शनि त्रयोदशी व्रत भी कहते हैं। इस बार ये व्रत 9 नवंबर, शनिवार के दिन यानि आज है। शनि प्रदोष व्रत विधि अनुसार करके कोई भी मनुष्य भगवान शिव और शनि देव का आशीर्वाद पाकर अपने मन की किसी भी इच्छा को बहुत जल्दी पूरा कर सकता है। 

शनि त्रयोदशी व्रत से पाएँ भगवान शिव का आशीर्वाद 


शनि त्रयोदशी व्रत में भक्त शाम के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के करीब 45 मिनट बाद भगवान शिव की पूजा-अराधना करते हैं। ऐसा करने से मान्यता है कि व्यक्ति को भगवान शिव के साथ-साथ शनि देव की महा कृपा भी प्राप्त होती है और साथ ही उसकी कुंडली से शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का दुष्प्रभाव भी शून्य या कम हो जाता है। 

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शनि प्रदोष व्रत का महादेव से संबंध 


सनातन धर्म में हर मास आने वाले शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष काल का समय सूर्यास्त के बाद के समय से रात्रि प्रारंभ होने के ठीक पूर्व का समय होता है। जिस प्रकार किसी भी शुभ तिथि में किया गया कार्य या उपवास मनवांछित इच्छाएँ पूर्ण करता है, ठीक उसी प्रकार प्रदोष व्रत करने का भी अपना एक विशेष महत्व होता है। धार्मिक शास्त्रों अनुसार प्रदोष काल के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में तांडव नृत्य करते हैं। इसलिए शिव भक्तों में इस तिथि का महत्व पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। 


विभिन्न त्रयोदशी व्रत और उनके लाभ


विभिन्न वार अनुसार प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत अलग-अलग नामों से विख्यात हैं, जिसका महत्व भी आपस में एक दूसरे से भिन्न होता है। चलिए जानते हैं वार अनुसार त्रयोदशी व्रत का महत्व और उनके लाभ:- 

  • रविवार त्रयोदशी व्रत: रविवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत करने से स्वास्थ्य जीवन व दीर्घायु की प्राप्ति होती है। 
  • सोमवार त्रयोदशी व्रत: सोमवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत से व्यक्ति की हर मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसे सोम प्रदोषम या चंद्र प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है। 
  • मंगलवार त्रयोदशी व्रत: मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत से आरोग्य जीवन की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने जीवन में हर प्रकार की गंभीर बीमारी से भी मुक्ति मिलती है। इसे भौम प्रदोषम भी कहा जाता है। 
  • बुधवार त्रयोदशी व्रत: बुधवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत से भगवान शिव हर कामना पूरी करते हैं। 
  • बृहस्पतिवार त्रयोदशी व्रत: गुरूवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत करने से आप अपने शत्रुओं और विरोधियों पर विजय प्राप्त कर पाते हैं। 
  • शुक्रवार त्रयोदशी व्रत: शुक्रवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत आजीवन सुख और सौभाग्य प्रदान करता है। इस व्रत से आपका दांपत्य जीवन भी सुखमय व्यतीत होता है। 
  • शनिवार त्रयोदशी व्रत: शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत यानी त्रयोदशी व्रत को शनि प्रदोषम भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से शनि देव संतान प्राप्ति की चाह रखने वाले सभी जातकों को तेजस्वी संतान प्रदान करते हैं। 

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त्रयोदशी व्रत का पौराणिक महत्व


हिंदू धर्म में त्रयोदशी व्रत को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सबसे आसान तरीका माना गया है। जिस दौरान व्रत करने से भगवान शिव की कृपा पाकर व्यक्ति को शुभ फलदायक लाभों की प्राप्ति अवश्य होती है। इसलिए माना जाता है कि जो भी भक्त इस तिथि के दिन सच्ची श्रद्धा भाव से उपवास रख, भगवान शिव की आराधना करता है, उन्हें समस्त बाधाओं और कष्टों से भगवान भोले मुक्ति दिलाते हैं और उन्हें मृत्यु के पश्चात मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इस व्रत से जुड़ी यूँ तो आपको कई पौराणिक कथाएँ सुनने को मिल जाएंगे जिनके अनुसार प्रदोष व्रत करने से सौ गायों के दान व कन्या दान जितना पुण्य मिलता है। इस व्रत को लेकर ये भी माना जाता है कि वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने शौनकादि ऋषियों से चर्चा करते हुए इस बात का उल्लेख किया था कि कलियुग में अधर्म का बोल-बाला होगा, इसलिए न्याय की राह छोड़ अधर्म के मार्ग पर चल निकले मनुष्यों के लिए प्रदोष व्रत ही उनके पश्चाताप का एक मात्र माध्यम साबित होगा। 


शनि त्रयोदशी व्रत के दौरान इन बातों का रखें ध्यान 


शनि त्रयोदशी व्रत के दिन विशेष तौर से सुबह और शाम दोनों समय ही भगवान शिव और शनि देव की पूजा की जाती है। इस दौरान संध्या का समय व्रत पूजन के लिए सबसे शुभ एवं लाभकारी माना जाता है। तभी इस तिथि पर सभी शिव मंदिरों व शनि मंदिरों में संध्या के समय शनि प्रदोष मंत्र का जाप किया जाता है। ऐसे में शनि प्रदोष व्रत को करने के कुछ विशेष नियम भी बताए गए हैं, जिन्हे अपना कर आप इस व्रत को और भी शुभ बना सकते हैं। 

  • शनि त्रयोदशी तिथि के दिन सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद अपनी नग्न आँखों से उगते हुए सूर्य देव के दर्शन करें और उन्हें जल अर्पित करें। 
  • इसके पश्चात किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि अर्पित करें। 
  • इसके बाद शनि मंदिर जाकर भगवान शनि देव की प्रतिमा को बिना छुए सरसों के तेल या काले तिल का तेल अर्पित करें। 
  • इसके साथ ही सरसों के तेल का चौमुखा दिया किसी पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं और एक दीया शनिदेव के मंदिर में जलाएं और शनि त्रयोदशी व्रत का संकल्प लें। 
  • इस व्रत को करने वाले लोगों को इस पूरे ही दिन किसी भी प्रकार का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। 
  • हालांकि अगर ऐसा मुमकिन न हो तो फलाहार करें या संध्या के समय एक बार भोजन भी कर सकते हैं। 
  • शनि त्रयोदशी वाले दिन सूर्यास्त से कुछ देर पहले पुनः स्नान कर सफेद वस्त्र पहनें। 
  • इसके पश्चात स्वच्छ जल अथवा गंगाजल से पूजा स्थल को भी शुद्ध करें। 
  • इस दौरान आप पूजा स्थल पर अलग-अलग रंगों से रंगोली भी बना सकते हैं। 
  • इसके बाद सारा दिन भगवान शिव के मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें। 
  • अब प्रदोष काल में भगवान शिव को सबसे पहले पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराए और फिर उन्हें शुद्ध जल से भी स्नान कराए। 
  • अब अंत में रोली, मोली, चावल, धूप, दीप आदि से उनका पूजन कर उन्हें भोग लगाएँ। 


प्रदोष व्रत के उद्यापन की पूजा-विधि


प्रदोष व्रत को लेकर माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को 11 या फिर 26 त्रियोदशी तक करता है, उसे भगवान शिव और मां पार्वती का आशीर्वाद ज़रूर प्राप्त होता है। आइये जानते हैं इस व्रत के उद्यापन की सही पूजा-विधि। 

  • प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि को अर्थात प्रदोषम के दिन हीं करना अनिवार्य होता है। 
  • प्रदोष व्रत के उद्यापन से एक दिन पूर्व भगवान श्री गणेश की पूजा-वंदना ज़रूर करनी चाहिए। 
  • उद्यापन से एक रात पूर्व जागरण कर रात भर भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती का कीर्तन करें। 
  • जागरण के अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में गाय के गोबर से एक मंडप बनाएँ और उसे रंगीन वस्त्रों और सुंदर-सुंदर रंगोली से सज़ाएँ। 
  • इसके बाद ‘ओम उमा सहित शिवाय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करते हुए पूजा स्थल पर एक हवन करें।
  • ध्यान रखें की हवन में आहूति देने हेतु खीर का प्रयोग अवश्य करें। 
  • हवन पूर्ण होने पर भगवान शंकर की आरती और शांति पाठ करें। 
  • इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी श्रद्धा अनुसार भोजन कराए और अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें दान दक्षिणा देकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।
  • इस पूरे ही समय अपने मन में किसी भी तरीके के गलत विचारों को न आने दें। 

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हम आशा करते हैं कि हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

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