तुलसी विवाह कल, जानें शुभ मुहूर्त में कैसे करें तुलसी विवाह

तुलसी विवाह हिन्दुओं का धार्मिक पर्व है। यह पर्व हमेशा कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी अथवा द्वादशी के दिन मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी कहते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु जी चार माह के पश्चात् शयन के बाद जागते हैं। इसके एक दिन बाद भगवान विष्णु का विधिनुसार उनकी प्रिय तुलसी से विवाह किया जाता है। 


इस वर्ष तुलसी विवाह का पर्व 9 नवंबर को है। पंचांग के अनुसार इस दिन द्वादशी है। अतः इसी दिन ही तुलसी विवाह का मुहूर्त भी होगा। शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह का समारोह देवउठनी एकादशी एवं कार्तिक पूर्णिमा के बीच कभी भी संपन्न कराया जा सकता है।


तुलसी विवाह का मुहूर्त


द्वादशी तिथि प्रारंभ8 नवंबर 201912:26:21 बजे से
द्वादशी तिथि समाप्त9 नवंबर 2019शाम को 02:41:33 बजे तक

नोट: ऊपर दिया गया समय नई दिल्ली (भारत) के लिए मान्य है।

तुलसी और भगवान विष्णु जी का संबंध


हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा पूजनीय है। इसलिए प्रत्येक हिन्दू घर के आंगन या छत पर तुलसी का पौधा अवश्य ही लगा होता है। यह औषीधीय गुणों से संपन्न पौधा होता है। वहीं धार्मिक दृष्टि से देखें तो शास्त्रों में तुलसी को माँ लक्ष्मी का रूप माना गया है और माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु जी की अर्धांगिनी हैं।

इसलिए तो तुलसी भगवान विष्णु को बेहद प्रिय हैं और तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम और तुलसी माता के बीच विधि-विधान से विवाह कराया जाता है। इस अवसर पर श्री हरि नारायण को दूल्हे और तुलसी को एक दुल्हन की तरह सजाकर उनका विवाह संपन्न कराया जाता है। साथ ही इसी दिन से विवाह ऋतु प्रारंभ हो जाती है।

तुलसी विवाह की विधि


  • इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को नहा धोकर के अच्छे कपड़े पहना जाता है।
  • वहीं जो कन्यादान करते हैं उन्हें इस रस्म से पहले व्रत रखना चाहिए।
  • शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को आंगन में पटले पर रखें।
  • अपनी सुविधानुसार आप चाहे तो छत या मंदिर स्थान पर भी तुलसी विवाह किया जा सकता है।
  • तुलसी के गमले की मिट्टी में ही एक गन्ना गाढ़ें और उसी पर लाल चुनरी से मंडप सजाएं।
  • गमले में शालिग्राम पत्थर भी रखें।
  • यहाँ शालिग्राम पत्थर भगवान विष्णु जी के प्रतीक हैं।
  • तुलसी और शालिग्राम की हल्दी करें।
  • इसके लिए दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं।
  • गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं।
  • अब पूजन करते हुए फल-फूल चढ़ाएं।
  • अब पूजा की थाली में ढेर सारा कपूर रख जलाएं।
  • इससे तुलसी और शालिग्राम की आरती उतारें।
  • आरती उतारने के बाद तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें और प्रसाद बांटे।

तुलसी विवाह का महत्व


तुलसी विवाह का आयोजन धार्मिक, आध्यात्मिक और चिकित्सीय दृष्टि महत्वपूर्ण है। तुलसी का पौधा अति शुभ होता है। जहाँ कहीं भी यह होता है उस वातावरण में अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखता है। अतः कई रोग-दोषों समाप्त करने में यह यह कारगर और सक्षम है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो इस विवाह में भाग लेने वाले सभी लोगों को माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

माँ लक्ष्मी धन की देवी हैं। उनके आशीर्वाद से जीवन में धन समृद्धि का आगमन होता है। जीवन में दरिद्रता कभी नहीं आती है और सपन्नता बनी रहती है। वहीं भगवान विष्णु जी जो कि समस्त सृष्टि के पालन हार हैं। यदि किसी व्यक्ति पर उनकी कृपा दृष्टि हो जाए तो उस व्यक्ति जीवन ही धन्य हो जाता है। 

पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जिस घर में बेटी न हो तो वहाँ पर तुलसी विवाह का आयोजन नहीं करना चाहिए। तुलसी विवाह से ही हिन्दू धर्म में होने वाले सभी शुभ कर्मकांड प्रारंभ होने लगते हैं।

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तुलसी विवाह से जुड़ी पौराणिक कथा


भगवान शिव और पार्वती का एक तीसरा पुत्र था। इस पुत्र का नाम जलंधर था, जो असुर प्रवत्ति का था। वह खुद को सभी देवताओं को ऊपर समझता था। जलंधर का विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से विवाह हुआ। वह बार-बार अपनी शक्तियों से देवताओं को परेशान करता, लेकिन देवता वृंदा की भक्ति की वजह से जलंधर को मारने में असफल रहते। एक बार सभी देवता इस समस्या को लेकर भगवान विष्णु के पास गए और हल मांगा।

हल बताते हुए विष्णु जी ने वृंदा का सतीत्व खत्म करने की योजना बनाई। ऐसा करने के लिए विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया। इसके बाद त्रिदेव जलंधर को मारने में सफल हुए। इस छल को जान वृंदा ने विष्णु दी को श्राप दिया। इस पर सभी देवताओं ने श्राप वापस लेने की विनती की, जिसे वृंदा ने माना और अपना श्राप वापस ले लिया। लेकिन भगवान विष्णु ने प्रायश्चित के लिए खुद का एक पत्थर का स्वरूप बनाया। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया।

वृंदा अपने पति जलंधर के साथ सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने अपना प्रायश्चित जारी रखते हुए तुलसी को सबसे ऊँचा स्थान दिया और कहा कि, मैं तुलसी के बिना भोजन नहीं करूंगा। इसके बाद सभी देवताओं ने वृंदा के सती होने का मान रखा और उसका विवाह शालिग्राम के कराया। जिस दिन तुलसी विवाह हुआ उस दिन देवउठनी एकादशी थी। इसीलिए हर साल देवउठनी के दिन ही तुलसी विवाह किया जाने लगा।

एस्ट्रोसेज की ओर से आपको तुलसी विवाह की हार्दिक शुभकामनाएँ। हम आशा करते हैं कि माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद सदैव आपके ऊपर बना रहे। एस्ट्रोसेज से जुड़ने रहने के लिए आपका धन्यवाद!

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