15 अगस्त 1947 - स्वतन्त्रता दिवस या ग्रहों की विनाश लीला?

अगस्त १५, १९४७ ही वो दिन है जब सोने की चिड़िया, हिंदुस्तान को अंग्रेज़ों के शासन से स्वतंत्रता मिली और तिरंगे को उसका असली सम्मान प्राप्त हुआ। लेकिन यह स्वतंत्रता अपने साथ घोर नरसंहार लेकर आयी। क्या ये सब पहले से ही निश्चित था? क्योंकि इतिहास अपने आप को दोहराता है। पं. दीपक दूबे बताएंगे भारत की समस्याओं के पीछे छुपे राज़।


१५ अगस्त, २०१४ को हम सभी भारतवासी आज़ादी के 67 वर्ष पूरे कर लेंगे और 68 वें वर्ष में प्रवेश करेंगे, अतः 68वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जायेगा। 

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15 अगस्त, 1947 को रात्रि 12 बजे आधिकारिक तौर पर नए भारत या यूँ कहें कि विघटन के बाद बचे हुए शेष भारत का नया वजूद सामने आया। देश की असली कुंडली क्या बनायी जाये? क्या 15 अगस्त, 1947 ही भारत देश का वास्तविक उद्भव समय है? इस बात पर विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु यह सत्य है कि उस दिन एक बहुत ही बड़ी और ऐतिहासिक घटना घटी, और वर्तमान में भारत की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, भौगोलिक; अर्थात लगभग सभी परिस्थितियों की नयी परिभाषा गढ़ी गयी। अतः एक पुनर्जन्म तो कहा ही जायेगा। 

अगर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाये तो 1942 से लेकर 1948 तक का दौर ग्रहों की विनाश लीला का दौर था। भयानक रक्त पात हुआ उस दौर में पूरी पृथ्वी पर, भारत की पूरी धरती रक्तरंजित हो उठी थी। 
शिव की पवित्र नगरी वाराणसी के रहने वाले पण्डित दीपक दूबे अनन्य शिवभक्त, प्रखर ज्योतिषी और अनुष्ठानों के मर्मज्ञ हैं। साथ ही वे कर्मकाण्ड, मन्त्र-तन्त्र और वास्तु के गहन अध्येता भी हैं। उन्हें ज्योतिष और कर्मकाण्ड का ज्ञान अपने पिता से हासिल हुआ, जो स्वयं प्रकाण्ड ज्योतिषी और अनन्य काली-उपासक हैं। वे विभिन्न टीवी और एफ़एम चर्चाओं में ज्योतिषी के तौर पर प्रायः आमंत्रित किए जाते रहे हैं। मनोविज्ञान में स्नातक, पण्डित दीपक दूबे, कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी कर चुके हैं।

मैं सोच रहा हूँ ऐसा क्या हुआ होगा की अपने ही लोग जो एक दूसरे के सुख - दुःख के साथी थे, एक - दूसरे के खून का प्यासे हो उठे। अंग्रेज़ों की तुलना में देखा जाये तो कई गुना अधिक जन-धन की हानि अपनों से हुई। 

जब मैंने इतिहास को टटोला तो पाया कि ग्रहों की दृष्टि और घटनाओं की समानता को देखा जाये तो ऐसा ही विभत्स और भयानक मंजर महाभारत काल में भी हुआ था, भयानक रक्त पात हुआ था उस समय भी, धरती काँप उठी थी, इतिहासकारों के अनुसार अक्टूबर माह, 3104 ईसा पूर्व यह युद्ध हुआ था, उस माह 3 ग्रहण पड़े थे, 6 ग्रह - सूर्य, चन्द्रमा, बुध, गुरु, राहु, शनि - या तो साथ थे, या बहुत करीब थे। सूर्य, राहु से ग्रसित था, उसपर केतु और मंगल एक दूसरे के साथ अंगारक योग बना रहे थे। साथ ही इन दोनों मारक ग्रहों की सीधी दृष्टि, ग्रहण और शनि दृष्टि युत, सूर्य पर थी। परिणाम स्वरूप भीषण युद्ध हुआ, प्राकृतिक आपदाओं का भी ज़िक्र है कहीं-कहीं। यह सब कुछ किसी एक दिन के ग्रहों का परिणाम नहीं था, कई वर्षों से ये भूमिकाएँ बन रही थीं। 

लगभग ऐसा ही कुछ समय था 1942 से 1948 का था, जब भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व , द्वितीय विश्व युद्ध के चपेट में था। 1947 के वर्ष में भी नवम्बर माह में 12 और 28 को सूर्य और चन्द्र ग्रहण पड़े। सूर्य, राहु, बुध, मंगल, चन्द्रमा, और शनि जून माह में एक दूसरे के बहुत ही करीब थे जो कुछ समय पहले और कुछ समय बाद तक भी एक दूसरे के आस पास बने रहे।

भारत - पाकिस्तान विभाजन (१९४७)
द्वितीय विश्व युद्ध

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यहाँ यह बताना उचित समझूँगा की इसी वर्ष के अक्टूबर माह में इतिहास की जानकारी के अनुसार अभी तक का सबसे भयानक समुद्री तूफान भी आया था, जिसकी रफ़्तार करीब 250 किमी प्रति घंटे थी। वर्ष 1945 और 1947 में पूरी दुनिया में सबसे अधिक और भयानक तूफान आये। ज्ञात तथ्यों के आधार पर 1942 से लेकर 1947 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के कारण पूरी दुनिया में करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए थे। 

एक और इसी तरह के योग की चर्चा करना चाहूंगा , महाभारत युद्ध के लगभग 30 वर्षों के भीतर द्वारका में भयानक गृह युद्ध हुआ था, जिसमे पूरी द्वारका लगभग ख़त्म हो गयी थी। अपने समय की सबसे विकसित नगरी द्वारका और वहां के निवासी सबसे समृद्धशाली ग्वाले, दोनों का ही सम्पूर्ण विनाश हो गया था। कहा जाता है कि उस समय बहुत ही भयानक समुद्री तूफान और सुनामी भी आई थी जिसने पूरी द्वारका को ही नेस्त-नाबूत कर दिया था। 

द्वितीय विश्व युद्ध और भारत-पाकिस्तान के बँटवारे के लगभग 25 वर्ष बाद भी ऐसा ही भयानक मंजर 1971 में पुनः आया, जब बांग्लादेश का बँटवारा हुआ। एक अनुमान के मुताबिक करीब 3 से 5 लाख लोग मारे गए थे और कई लाख लोग विस्थापित हो गए थे।

भोला नामक समुद्री तूफ़ान - 1970
बांग्लादेश विभाजन (1971) का विभत्स दृश्य


बांग्लादेश का युद्ध मार्च १९७१ से प्रारम्भ हुआ था, जिससे ठीक ४ महीने पहले अर्थात नवंबर,१९७० में पूर्वी पाकिस्तान में अबतक के वर्तमान इतिहास का सबसे भयानक "भोला" नामक समुद्री तूफान भी आया था, जिसमें एक अंदाज़ के मुताबिक करीब ५ लाख लोग मारे गए थे। पूरी फसल, पशु-पक्षी, सबकुछ तबाह हो गया था। साथ ही यह भी बता दूँ की १९७१ में भी भयानक तूफान, सुनामी, और ८.१ तीव्रता तक का भूकंम आया था। अब ग्रहों की स्थिति भी देख लें।

एक बार पुनः सूर्य-केतु-चन्द्रमा-बुध-शुक्र एक दूसरे के पास, सूर्य-चन्द्रमा-केतु एक साथ ग्रहण योग में, राहु और मंगल एक साथ, सूर्य और चन्द्रमा के ऊपर राहु, मंगल और शनि की पूर्ण दृष्टि।ऊपर से शनि रोहिणी नक्षतर् में, (शनि जब रोहिणी नक्षत्र को पार कर रहा था तो राजा दशरथ ने अपनी प्रजा को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए “दशरथ कृत शनि स्तोत्र” की रचना की और शनि को प्रसन्न कर अपनी प्रजा की रक्षा की, परन्तु इस वक्त ना तो गुरु वशिष्ठ जैसे भविष्यदृष्टा हैं ना ही राजा दशरथ जैसा राजा), परिणाम अत्यंत ही भयानक। 

यदि हम १५ अगस्त १९४७ रात्रि १२ बजे की बात करें तो उस दिन भी ग्रहों की स्थितियाँ कोई बहुत अच्छी नहीं हैं, उस दिन की कुंडली है: 


इस कुंडली के अनुसार लग्न में ही राहु विराजमान है और सप्तम भाव में केतु। अतः पड़ोसियों से कभी भी मधुर सम्बन्ध नहीं बन पायेगा चाहे जितने वार्तालाप, युद्ध, या प्रयास कर लें। 

लग्न में राहु के परिणाम स्वरूप नास्तिकता और पर-संस्कृति को बढ़ावा तथा स्वधर्म की हानि होती ही जाएगी। शीर्षस्थ बैठे लोगों से लेकर मज़दूर वर्ग तक जिसको जब और जहाँ मौका मिलेगा शोषण करने से बाज़ नहीं आयेगा। 

तृतीय भाव में सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, और शनि की युति यह दर्शाती है की देश में महिलाओं का वर्चस्व रहेगा। लेकिन धर्म के ग्रह गुरु के छठे भाव में जाने से देश के स्वधर्म और संस्कृति की हानि भी होगी। साथ ही इस भारत पर कर्ज सदैव बना रहेगा। हालाँकि देश में युवाओं की कभी कमी नहीं रहेगी और उन्हीं के भरोसे देश का भाग्य संवरेगा क्योंकि मंगल की उच्च दृष्टि भाग्य स्थान पर है। 

आइये देखें यह वर्ष (१५,अगस्त,२०१४ - १४-अगस्त,२०१५) कैसा रहेगा देश के लिए:



इस वर्ष १५ अगस्त, २०१४ को रात्रि १२ बजे ग्रहों की जो स्थिति है उसके अनुसार युवा वर्ग में असंतोष व्याप्त होगा। तेल, खनिज पदार्थ, गैस इत्यादि के दाम नवंबर २०१४ के बाद बढ़ेंगे, महंगाई नियंत्रित नहीं हो पायेगी। अक्टूबर से दिसंबर के बीच कोई बड़ी प्राकृतिक या आतंकी घटना घट सकती है। सीमा पर तनाव बढ़ेगा। अगले वर्ष के प्रारम्भ में भारत और आस-पास भयानक भूकम्प आने की सम्भावना बन रही है, विशेष कर पश्चिमोत्तर क्षेत्र में। किसी बड़े राजनेता की मृत्यु होगी। साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ेगा। परन्तु उच्च के गुरु के कारण धार्मिक संस्थाओं, जल तथा कृषि सम्बन्धी कार्यों में वृद्धि होगी।

आईए अब बात करते हैं भारत प्रधानमन्त्री, नरेंद्र मोदी की (15 अगस्त 2014 के अनुसार)


वहीं अगर नरेंदर मोदी की कुंडली को १५ अगस्त के दिन से देखा जाये तो (मेरी कुंडली के अनुसार जो तुला लग्न की है और जन्म १७ सितम्बर, १९४९) मोदी इस वर्ष विदेशी दौरे खूब करेंगे और उनका विदेशों में प्रभाव भी बढ़ेगा। लगभग आधे वर्ष तक तो समय अनुकूल रहेगा, परन्तु आधे समय के बाद कुछ परेशानियों का योग बनेगा। सीमा पर तनाव हो सकता है जिससे सख्ती से निपटेंगे। छोटी सैन्य कार्यवाही भी संभव है। आंतरिक तनाव का भी सामना करना पड़ सकता है। देश की कुंडली में सप्तम में शनि तथा मोदी की कुंडली में द्वितीय भाव में शनि (नवंबर से) तथा देश की कुंडली में पंचम में राहु यह दर्शा रहा है कि मोदी के द्वारा लिया गया कोई निर्णय बहुत विवाद का कारण बनेगा।

यह तो था ग्रहों के अनुसार देश का भविष्य, परन्तु कृष्ण ने कहा है, “ कर्मण्ये वाधिकारस्ते , मा फलेषु कदाचन !!” अतः वास्तविक कर्म को समझें, पहले स्वधर्म को समझें, अपने को खुद की विसंगतियों और बुराइयों की गुलामी से बाहर निकालें, क्योंकि जब तक आप स्वयं ही अपनी बुराइयों के गुलाम रहेंगे वास्तव में देश तबतक आज़ाद नहीं हो पायेगा। अतः आइये पहले स्वयं को आज़ाद करने का संकल्प लें, अच्छे इंसान बनें, अच्छा देश बनायें। 

जय हिन्द!


आज का पर्व


आज पंचक काल समाप्त हो जाएगा। पंचक काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। 

आज के दिन उड़ीसा में रक्षा पंचमी मनाई जाती है। इस दिन मंगल कामना करते हुए लोग भगवन भैरव की आराधना करते हैं। 

आज चन्द्र षष्ठी है। इस दिन चन्द्र देव की उपासना की जाती है। 

आपका दिन मंगलमय हो!

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