क्या आप अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते हैं ? हम आपके लिए एक सुनहरा मौका लेकर आये हैं जिससे स्वयं भगवान विष्णु आपको उन पापों से मुक्त करेंगे। यह सब संभव हो पायेगा अजा एकादशी व्रत रखने से। आइये अजा एकादशी व्रत के बारे में विस्तार से जानें।
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एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। प्रत्येक माह की प्रत्येक एकादशी को श्री विष्णु से सम्बंधित कोई ना कोई व्रत का विधान है। उन्हीं २४ एकादशियों में से अत्यंत ही महत्वपूर्ण एकादशी है अजा एकादशी। यह प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष में ११वें दिन मनाई जाती है। महाभारत समाप्त होने के उपरांत श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को अपने पूर्व कृत अपराधों से मुक्ति पाने हेतु, अजा एकादशी व्रत और भगवान विष्णु की आराधना करने को कहा था।
आप सब राजा हरिश्चंद्र के बारे में तो जानते ही होंगे जो अब तक के इतिहास में अपने सत्य बोलने के लिए प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार महाराज हरिश्चंद्र, अपने पूर्व जन्म के पापों के कारण अपना राज - पाठ गंवा बैठे। यहाँ तक कि उन्हें अपनी पत्नी को भी बेचना पड़ा और स्वयं काशी के श्मशान पर काम करने को विवश होना पड़ा। इसी बुरे दौर में गंगा के घाट पर उनकी मुलाकात ऋषि गौतम से हुई। उन्होंने उनसे अपने दुःख का कारण और उससे मुक्त होने का मार्ग पूछा। ऋषि गौतम ने उन्हें अपने पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति और वर्तमान में सुख समृद्धि देने वाली ‘अजा एकादशी’ का व्रत रखते हुए श्री विष्णु की आराधना करने को कहा।
महाराज हरिश्चंद्र ने ऋषि गौतम के कहे अनुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इस व्रत को रखा। उन्होंने पूरी रात जागरण करते हुए अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु की आराधना की। कहा जाता है कि इस प्रकार राजा हरिश्चंद्र, अजा एकादशी के व्रत के कारण अपने सभी पापों से मुक्त हुए और पुनः अपने पत्नी और बच्चे को प्राप्त किया। साथ ही उन्हें उनका खोया हुआ राज - पाठ भी प्राप्त हो गया और उसके उपरांत उन्होंने बहुत लम्बे समय तक सुख पूर्वक राज किया और मृत्यु के उपरांत मोक्ष को प्राप्त हुए।
इस एकादशी को भी बाकी सभी एकादशियों की तरह ही करने का विधान है। पूरी रात्रि जागरण करते हुए भगवान विष्णु की आराधना करना सभी ज्ञात - अज्ञात पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाला होता है। यथा संभव योग्य ब्राह्मणों, विद्यार्थियों और गरीबों को भोजन कराएँ और श्रद्धा अनुसार चावल का दान करें।
अजा एकादशी में माने जाने वाले नियम भी वो ही हैं जो दूसरी एकादशियों में माने जाते हैं। आइये नीचे दिए गए नियमों के बारे में पढ़ें।
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। प्रत्येक माह की प्रत्येक एकादशी को श्री विष्णु से सम्बंधित कोई ना कोई व्रत का विधान है। उन्हीं २४ एकादशियों में से अत्यंत ही महत्वपूर्ण एकादशी है अजा एकादशी। यह प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष में ११वें दिन मनाई जाती है। महाभारत समाप्त होने के उपरांत श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को अपने पूर्व कृत अपराधों से मुक्ति पाने हेतु, अजा एकादशी व्रत और भगवान विष्णु की आराधना करने को कहा था।
अजा एकादशी व्रत - पौराणिक मान्यता
आप सब राजा हरिश्चंद्र के बारे में तो जानते ही होंगे जो अब तक के इतिहास में अपने सत्य बोलने के लिए प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार महाराज हरिश्चंद्र, अपने पूर्व जन्म के पापों के कारण अपना राज - पाठ गंवा बैठे। यहाँ तक कि उन्हें अपनी पत्नी को भी बेचना पड़ा और स्वयं काशी के श्मशान पर काम करने को विवश होना पड़ा। इसी बुरे दौर में गंगा के घाट पर उनकी मुलाकात ऋषि गौतम से हुई। उन्होंने उनसे अपने दुःख का कारण और उससे मुक्त होने का मार्ग पूछा। ऋषि गौतम ने उन्हें अपने पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति और वर्तमान में सुख समृद्धि देने वाली ‘अजा एकादशी’ का व्रत रखते हुए श्री विष्णु की आराधना करने को कहा।
महाराज हरिश्चंद्र ने ऋषि गौतम के कहे अनुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इस व्रत को रखा। उन्होंने पूरी रात जागरण करते हुए अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु की आराधना की। कहा जाता है कि इस प्रकार राजा हरिश्चंद्र, अजा एकादशी के व्रत के कारण अपने सभी पापों से मुक्त हुए और पुनः अपने पत्नी और बच्चे को प्राप्त किया। साथ ही उन्हें उनका खोया हुआ राज - पाठ भी प्राप्त हो गया और उसके उपरांत उन्होंने बहुत लम्बे समय तक सुख पूर्वक राज किया और मृत्यु के उपरांत मोक्ष को प्राप्त हुए।
इस एकादशी को भी बाकी सभी एकादशियों की तरह ही करने का विधान है। पूरी रात्रि जागरण करते हुए भगवान विष्णु की आराधना करना सभी ज्ञात - अज्ञात पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाला होता है। यथा संभव योग्य ब्राह्मणों, विद्यार्थियों और गरीबों को भोजन कराएँ और श्रद्धा अनुसार चावल का दान करें।
अजा एकादशी व्रत - व्रत के नियम
अजा एकादशी में माने जाने वाले नियम भी वो ही हैं जो दूसरी एकादशियों में माने जाते हैं। आइये नीचे दिए गए नियमों के बारे में पढ़ें।
- प्रातः जल्दी उठकर नहाएँ।
- भगवान विष्णु की पूजा पूरी श्रद्धा से करें।
- अजा एकादशी व्रत की कथा सुनें।
- इस दिन चावल और चने न खाएँ।
- इस दिन शहद ग्रहण ना करें क्योंकि शहद व्रत का असर कम कर देता है।
- किसी से लिया हुआ खाना ना खाएँ।
- अपने पाप दूर करने के लिए पूरी रात जागरण करें।
- ब्राह्म, विद्यार्थी और ज़रूरतमंद लोगों को भोजन कराएँ।
- इस शुभ दिन चावल का दान करें।
आज का पर्व
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जैन पर्युषण पर्व चतुर्थि पक्ष आज से आरम्भ है। इस अवधि के दौरान जैन धर्म के लोग जीवन के १० अहम सिद्धांतों का पालन करते हैं। ये १० अत्यंत महत्वपूर्ण नियम हैं - क्षमा करना, सच्चाई, विनम्रता, दान, व्रत, संयम, संतोष, तटस्थता, सादगी तथा आत्म संयम।
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