प्यार, विश्वास और लगाव का एक पवित्र त्यौहार है रक्षा बंधन जो भाई बहन के पावन रिश्ते में और भी ज़्यादा प्यार घोल देता है। कैसे तथा किस शुभ मुहूर्त में बांधें राखी जिससे आप इस त्यौहार का ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठा सकें। आइये जानते हैं ज्योतिषी 'रेखा कल्पदेव' द्वारा।
रक्षा बंधन का पर्व भाई बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। इनका प्रेम सदियों से बड़ा ही अनूठा और अद्भुत रहा है। हमारा इतिहास ऐसे हज़ारों उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें हमारे वीर योद्धाओं ने अपनी बहन की राखी की लाज रखने के लिए महानतम वीरों को युद्ध के मैदान में परास्त किया है। राखी के रेशम के धागों में गज़ब की ऊर्जा शक्ति पाई जाती है। जब यह कोमल धागा प्रेम, विश्वास और श्रद्धा के भावों में लिपटकर भाई की कलाई पर सजता है तो समय आने पर भाई इस धागे का सम्मान देते हुए, अपनी जान तक देने को तैयार हो जाता है। यह पर्व मात्र धागों का पर्व न होकर भाई बहन के अटूट स्नेह की अभिव्यक्ति का पर्व है।
इस दिन भाई घर से दूर हो तो वह प्रयास करता है कि राखी बंधवाने वह अपनी बहन के पास पहुँच जाए। इसी प्रकार बहन भी हाथ में राखी और पूजा की थाली लिए, बेसब्री से आँखें रास्ते पर लगाये प्रतीक्षा कर रही होती है कि कब उसका भाई आये और वह अपने भाई को राखी बांधे। मानवीय संवेदनाओं का यह एक खूबसूरत उदहारण है। आधुनिक परिवेश में अनेक रिश्तों में बदलाव आया है, व्यक्ति विशेष के लिए रिश्तों का महत्त्व भी पहले की तुलना में कुछ कम अवश्य हो गया है परन्तु रक्षा बंधन का पर्व ऐसा पर्व है जिसने भाई बहन के रिश्तों को मज़बूती ही प्रदान की है। लगता है समय के साथ स्नेह की यह डोर और भी मज़बूत होती जा रही है।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को पूरे भारत में रक्षा बंधन विशेष श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष रक्षा बंधन १० अगस्त २०१४ को मनाया जाएगा।
इस दिन १३:३८ मिनट तक भद्रा तिधि रहेगी। अत: इसके बाद ही भाइयों की कलाई पर राखी बाँधी जा सकेगी। राखी बांधने का शुभ समय १३:३८ से लेकर १५:३८ तक स्थिर लग्न का रहेगा। प्रदोष काल में राखी बाँधने का शुभ समय ०७:०१ से ०९:११ के मध्य का रहेगा। (यह समय दिल्ली के अनुसार लिया गया है)
राखी बांधने का कार्य भद्रा काल में नहीं किया जाता है। विशेष रूप से इस कार्य के लिए भद्रा के मुख काल का त्याग किया जाता है। अन्य किसी कारण से यदि भद्रा काल में राखी बांधनी ही पड़े तो भद्रा पुंछ काल का प्रयोग किया जा सकता है। स्थिर लग्न के अलावा प्रदोष काल को भी राखी पर्व के लिए विशेष शुभ मुहूर्त माना जाता है।
पुराने समय में राखी का त्यौहार विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता था। परन्तु आज यह भारत के कोने कोने में उल्लास और उमंग से मनाया जाता है। आज के दिन महाराष्ट्र राज्य में नारली पूर्णिमा नाम से एक पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर समुद्र देव को नारियल अर्पित किये जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र देव वरुण देव का साक्षात रूप हैं इसलिए इस दिन समुद्र देव का पूजन दर्शन कर वरुण देव को प्रसन्न किया जाता है। शास्त्रों में नारियल की तीसरी आँख को भगवान शिव की तीसरी आँख माना गया है। इसके अलावा दक्षिणी भारत में भी एक पर्व मनाया जाता है जिसका नाम अवनी अविट्टम है।
रक्षा बंधन त्यौहार का गौरव पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों कालों में देखा जा सकता है। निस्वार्थ स्नेह के इस बंधन का उल्लेख सैकड़ों कथाओं में देखा गया है। आइये आपको इसकी पौराणिक पृष्ठभूमि से अवगत कराते हैं।
रक्षाबंधन पौराणिक कथाएँ
इंद्र- इन्द्राणी कथा
कथा कुछ इस प्रकार है: जब एक बार देवताओं और दानवों का युद्ध हो रहा था तो दानवों की अजय शक्ति के सामने जब देव परास्त होने लगे, यह देख इंद्र देव परेशान होकर बृहस्पति देव के पास गये और उनसे कोई उपाय करने की प्रार्थना करने लगे। जिस समय यह प्रसंग चल रहा था उस समय वहाँ इंद्र देव की पत्नी इन्द्राणी भी मौजूद थी।
इंद्र देव की यह दशा देख कर इन्द्राणी ने तुरंत एक धागा मंत्रों से अभिमंत्रित कर इंद्र देव की कलाई पर बांध दिया। ऐसा करने से इंद्र देव को दानवों से रक्षा में सहायता प्राप्त हुई। कहा जाता है कि जिस दिन देवी इन्द्राणी ने यह धागा इंद्र देव की कलाई पर बाँधा वह दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था। यह माना जाता है कि इस दिन से ही रक्षा बंधन पर्व का आरम्भ हुआ।
श्री विष्णु और राजा बलि कथा
कुछ इसी प्रकार का प्रसंग श्री विष्णु के वामनवतार कथा में सामने आता है। राजा बलि के अहंकार को समाप्त करने के लिए श्री विष्णु हरि ने वामन अवतार लिया था। कथा के अनुसार श्री विष्णु ब्राह्मण का रूप लेकर दानव राजा बलि से मांगने उनके दरबार में पहुँचते हैं। राजा बलि ने अहंकार में भरकर कुछ भी मांगने के लिए कहा। श्री विष्णु ने कहा कि उन्हें सिर्फ तीन पग भूमि चाहिए। यह कहकर श्री विष्णु ने तीन पग भूमि में आकाश, पाताल और भूमि तीनों पर अपना स्वामित्व पा लिया। यह देख राजा बलि समझ गए कि ये कोई सामान्य ब्राह्मण नहीं है। इस अवसर पर राजा बलि के द्वारा प्रार्थना करने पर श्री विष्णु ने सदैव उनके समक्ष रहने की बात स्वीकार कर ली। श्री हरि को सदैव राजा बलि के सामने रहना होगा, इस बात की सूचना जब देवी लक्ष्मी को हुई तो उन्होंने एक उपाय का सहारा लेते हुए, राजा बलि को राखी बाँधी और राखी के परिणाम में अपने भाई बलि से श्री विष्णु को वापस मांग लिया।
कहा जाता है कि बाद में सम्राट हूमायूं को रानी कर्मावती ने राखी बाँधी थी। सिकंदर और पोरस के युद्ध के समय सिकंदर की पत्नी ने पोरस को राखी बाँधी थी। भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी का भी एक प्रसंग मिलता है जिसमें द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली पर अपनी साड़ी का कोना फाड़कर बांधा था। जिसके प्रत्युत्तर में भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी। कुछ इसी तरह की अनगिनित कथाओं से रक्षा बंधन पर्व का इतिहास भरा हुआ है। कई परिवारों में स्त्रियाँ भगवान श्रीकृष्ण अथवा श्री गणेश अथवा अपने इष्ट देव को भी राखी बांधती है। क्योंकि यह माना जाता है कि सब की रक्षा करने वाले ईष्ट देव ही हैं।
रक्षा बांधने की शास्त्रीय विधि
सदियों से श्रावणी मास की पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाई के हाथों पर राखी का पवित्र धागा बांधती रही हैं। राखी बांधने के साथ ही बहनें अपने भाई की लम्बी आयु, उन्नति और सफलता के लिए कामना करती हैं। भाई बहनों का यह मधुर सम्बन्ध हर्ष और उल्लास की खुशबू में महका रहता है। आइये आपको बताये कि राखी कैसे बाँधी जानी चाहिए।
- प्रात: काल में भाई-बहन सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि क्रियाओं से मुक्त होकर श्रद्धा भाव से अपने इष्ट देव का पूजन करें
- प्रसन्न मुद्रा में भाई के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए, पूजा की थाली तैयार करें
- सबसे पहले अपने इष्टदेव के समक्ष रख कर राखियों को धूप, दीप और फूल चढ़ाकर पूजा जाता है, इसके बाद इन्हे राखी की थाली में रखा जाता है
- थाली में रोली, अक्षत, कुमकुम, दीपक, राखी और कुछ मीठा रखा जाता है
- सबसे पहले बहन भाई की आरती करती है, और उसके बाद माथे पर कुमकुम का टीका लगाती हैं
- फिर बहन अपने भाई की दाईं कलाई पर हर्ष के साथ राखी बांधती है। राखी बांधते समय बहन निम्न मंत्र का उच्चारण करती है।
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: I
तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल II
- राखी बांधने के बाद मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराया जाता है
- राखी बांधने के बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देते हुए, ज़रुरत के समय साथ देने का वादा करता है
- आज कल बहन को उपहार देने का चलन भी ज़ोरों पर है, परन्तु इस पर्व को निस्वार्थ भाव से मनाने का अपना एक अलग ही आनंद है
राखी पर्यावरण रक्षा पर्व
आज के सन्दर्भों में रक्षा बंधन को रक्षा सूत्र पर्व का नाम देना अधिक सार्थक है। रक्षा बंधन का पर्व आज केवल भाई बहन के प्रेम तक सिमित नहीं रह गया है बल्कि आज इसकी आवश्यकता समाज के प्रत्येक वर्ग में समान रूप से सामने आने लगी है। प्राचीन काल में भी इस विषय में प्रसंग मिलते हैं कि पुरोहित अपने यजमानों को राखी बांधा करते थे, और दोनों एक दूसरे की उन्नति और कल्याण की कामना करते थे। प्रकृति की रक्षा के लिए वृक्षों को राखी बांधने का प्रचलन भी सुनने में आता है। दिन प्रतिदिन आज प्रदूषण नाम का राक्षस बढ़ता जा रहा है, जिसे शांत रखने के लिए प्रकृति को बचाने की सबसे अधिक ज़रुरत है। इस राखी पर पुराने पेड़ों की सुरक्षा के लिए सामूहिक रूप से पेड़ों की रक्षा का अभियान चलाया जाना चाहिए तथा संभव हो तो समाज के सभी व्यक्ति मिलकर इस दिन नए पौधे लगाये जो भविष्य में पेड़ बनकर हमारी पृथ्वी को नष्ट होने से बचाने में सहयोग करें।
प्राचीन काल में बहनों और स्त्री जाति को विशेष सम्मान प्राप्त था। समय के साथ इसमें गिरावट आती जा रही है। आज के समय में रक्षा बंधन पर्व की आवश्यकता पहले से अधिक हो गई है। आज सामाजिक मूल्य, संस्कार, आदर्श सिद्धांत बहुत कम रह गए हैं। वर्तमान में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य स्थानों पर स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार की जो घटनाएँ सामने आ रही है, उन्हें देखते हुए, रक्षा बंधन पर्व का महत्व ओर भी बढ़ गया है। स्त्री रक्षा के लिए केवल भाइयों को ही नहीं अपितु समाज के प्रत्येक पुरुष को आगे आना होगा। अपनी माँ, बहन और पत्नी के साथ-साथ समाज की हर स्त्री को बहन समान स्थान देते हुए, उसकी अस्मत और अधिकारों के लिए निडरता के साथ लड़ना होगा और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण सबसे पहले अपने अंदर के बुराई के राक्षस को मार कर उच्च आदर्शों की स्थापना करनी होगी। तभी वास्तव में भाइयों की ओर से अपनी बहनों को इस राखी पर एक सच्चा तोहफा होगा। आप सभी को रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई।
रेखा कल्पदेव
आज का पर्व
आज का दिन क्या ख़ास लाया है आपके लिए, जानिए दिन की शुभता द्वारा।
आज नारली पूर्णिमा है। यह त्यौहार महाराष्ट्र में मनाया जाता है और इस त्यौहार में समुद्र देव को नारियल अर्पित करते हैं।
अशून्य शयन व्रत भी आज रखा जाता है। यह व्रत शादीशुदा जीवन में शुभता प्रदान करता है।
शुभ दिन!
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