क्या आप अपने पति की लम्बी आयु चाहती हैं? क्या आप चाहती हैं कि आपके पति का स्वास्थ्य अच्छा रहे और वो हर दिशा में तरक्की करे? तो आइये जानते हैं क्या है कजली तीज का धार्मिक और सामाजिक महत्व। इसका व्रत कैसे रखें और इससे अपनी जिंदगी को अधिक खुशहाल कैसे बनाएँ? कजली तीज लाएगी आपके जीवन में शुभता और रिश्तों में प्यार।
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कजली तीज भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया मनाया जाता है। यह त्यौहार विषेश रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। यह शादी शुदा जोड़ों के प्यार का परिचायक है।
कजली तीज व्रत करवा चौथ के व्रत के समान होता है जिसमें अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता। इस व्रत के माध्यम से स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं।
यह व्रत महिलाओं द्वारा बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। बागों में झूले लगाए जाते हैं और नीम के वृक्ष की पूजा की जाती है।
कजली तीज का व्रत सैकड़ों वर्षों से मनाया जा रहा है। यह त्यौहार शादीशुदा जोड़ों के लिए ख़ास है। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके प्रेम का बंधन और मज़बूत हो जाता है।
यह व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है, पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए १०७ जन्म लिए थे। उन्हें १०७ जन्मों तक भगवान शिव की प्रतीक्षा करनी पड़ी। अंततः, भगवान शिव ने देवी पार्वती की श्रद्धा को मान्यता दी और उन्हें अपने जीवन में स्वीकार किया।
इसी प्रकार, कजली तीज का व्रत एक स्त्री का उसके पति के प्रति प्रेम को दर्शाता है। इस व्रत को रख कर वह हर जन्म में अपने पति का साथ पाने की कामना करती है। पौराणिक कथाओं को आधार मानकर वर्तमान में भी स्त्रियाँ इस व्रत के माध्यम से माँ पार्वती को प्रसन्न करती हैं, ताकि उनका भी वैवाहिक जीवन सुखमय हो और युगों - युगों तक एक - दूसरे का साथ बना रहे।
कजली तीज का त्यौहार मुख्य रूप से राजस्थान के बूंदी शहर में बहुत ही आनंद और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन कजली माता को सजी हुई पालकी में बैठाकर उनकी झाँकी निकाली जाती हैं। इस झांकी में सजे हुए हाथी, ऊँट, संगीतकार, कलाकार, लोक नर्तकियाँ भी शामिल होती हैं।
संगीतकारों और कलाकारों द्वारा बहुत ही उम्दा नृत्य और अभिनय प्रस्तुत किया जाता है। देश विदेश से आए पर्यटक यह प्रदर्शन देख कर बहुत प्रसन्न होते हैं।
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कजली तीज भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया मनाया जाता है। यह त्यौहार विषेश रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। यह शादी शुदा जोड़ों के प्यार का परिचायक है।
कजली तीज व्रत करवा चौथ के व्रत के समान होता है जिसमें अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता। इस व्रत के माध्यम से स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं।
यह व्रत महिलाओं द्वारा बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। बागों में झूले लगाए जाते हैं और नीम के वृक्ष की पूजा की जाती है।
कजली तीज: व्रत का महत्व
कजली तीज का व्रत सैकड़ों वर्षों से मनाया जा रहा है। यह त्यौहार शादीशुदा जोड़ों के लिए ख़ास है। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके प्रेम का बंधन और मज़बूत हो जाता है।
यह व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है, पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए १०७ जन्म लिए थे। उन्हें १०७ जन्मों तक भगवान शिव की प्रतीक्षा करनी पड़ी। अंततः, भगवान शिव ने देवी पार्वती की श्रद्धा को मान्यता दी और उन्हें अपने जीवन में स्वीकार किया।
इसी प्रकार, कजली तीज का व्रत एक स्त्री का उसके पति के प्रति प्रेम को दर्शाता है। इस व्रत को रख कर वह हर जन्म में अपने पति का साथ पाने की कामना करती है। पौराणिक कथाओं को आधार मानकर वर्तमान में भी स्त्रियाँ इस व्रत के माध्यम से माँ पार्वती को प्रसन्न करती हैं, ताकि उनका भी वैवाहिक जीवन सुखमय हो और युगों - युगों तक एक - दूसरे का साथ बना रहे।
राजस्थान में कजली तीज का अनोखा जश्न
कजली तीज का त्यौहार मुख्य रूप से राजस्थान के बूंदी शहर में बहुत ही आनंद और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन कजली माता को सजी हुई पालकी में बैठाकर उनकी झाँकी निकाली जाती हैं। इस झांकी में सजे हुए हाथी, ऊँट, संगीतकार, कलाकार, लोक नर्तकियाँ भी शामिल होती हैं।
संगीतकारों और कलाकारों द्वारा बहुत ही उम्दा नृत्य और अभिनय प्रस्तुत किया जाता है। देश विदेश से आए पर्यटक यह प्रदर्शन देख कर बहुत प्रसन्न होते हैं।
कजली तीज: व्रत की विधि
- कुछ साफ़ मिट्टी इकट्ठी करके उसका एक सरोवर बनाएँ और ध्यान रखें की उसमें से पानी बाहर ना निकले।
- अब सारी नीम की डालियों को एक साथ बाँध ले और सरोवर के बीच में लगा दें।
- उन नीम की डालियों पर लाल रंग की चुन्नी उढ़ा दें।
- अब उसके पास गणेशजी और लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ रख दें।
- एक कलश पर स्वास्तिक बनाएँ और उसके चारों तरफ मौली बाँधे। ऐसे ही एक स्वास्तिक पूजा के स्थान पर बनाएँ मौली, चावल, गुड़, सत्तू और एक सिक्का रखें।
- अब नीम को कुमकुम से तिलक लगाएँ और उन्हें मौली, गुड़ और फ़ूल अर्पित करें। सरोवर में दूध और चावल डालें।
- अब अगरबत्ती जलाएँ और व्रत की कथा सुनायें।
- कथा के बाद महिलायें अपनी छवि को सरोवर में देखें।
- अब झुक कर तीज माता को प्रणाम करें और इनका आशीर्वाद लें।
- अब खड़े होकर तीज माता के आसपास तीन फेरे लगाएँ।
आज का पर्व
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आज विशालाक्षी यात्रा है। यह त्यौहार वाराणासी में मनाया जाता है क्योंकि वहाँ देवी सती के कर्ण कुंडल गिरे थे।
संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी आज मनाई जाती है। आज भगवन गणेश की पूजा द्वारा विशेष शुभता प्राप्त कर सकते हैं।
आज बहुला चतुर्थी है। यह त्यौहार गुजरात के कृषि समुदाय में पशुओं को आदर देने के लिए मनाया जाता है।
आज अंतराष्ट्रीय लेफ़्ट हैंडर्स डे है।
शुभ दिन!
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