इस सितम्बर बन रहा है सहस्राब्दी का सबसे अद्भुत योग!

इस सितम्बर एक ऐसा योग बन रहा है, जो सस्राब्दियों में एक बार ही बनता है। इसी तरह के योगों में श्री राम, श्री कृष्ण और गौतम बुद्ध का भी जन्म हुआ था। इस बार यह योग किस महापुरुष के आगमन का निमित्त बनेगा, जानिए पं. दीपक दूबे के लेख इस लेख में।

सभी पापियों का विनाश करने आने वाला है महा अवतार।

होने वाला है महा अवतार, बन रहा है इस सहस्त्राब्दी का सबसे अद्भुत संयोग। ग्रहों का ऐसा संयोग हजारों वर्षों में एक बार होता है। सितम्बर माह में आने वाला है वह शुभ दिन, जिस दिन पैदा हुआ कोई-न-कोई बच्चा होगा महा अवतार। ग्रहों की ऐसी स्थिति या तो श्रीराम के जन्म के समय थी या लगभग भगवान कृष्ण के जन्म के समय। गौतम बुद्ध के जन्म के समय भी ऐसा योग नहीं था। कुछ मामलों में उससे भी बढ़कर है यह योग।

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ज्ञात तथ्यों के आधार पर भगवान राम की कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार बताई जाती है - गुरु उच्च का, मंगल उच्च का, शनि उच्च का, सूर्य उच्च का, शुक्र उच्च का, चन्द्रमा स्वराशिस्थ, केतु और राहु उच्च या स्वराशिस्थ (क्योंकि मतान्तर से राहु को कन्या में तथा केतु को मीन में उच्च का माना जाता है )। केवल बुध ही है जो ना तो स्वराशिस्थ है ना ही उच्च राशि में है।

उसी प्रकार भगवान कृष्ण की कुंडली (कृष्ण की कुंडली को लेकर विद्वानो में मतभेद है) में जहाँ बी. वी. रमन के अनुसार चन्द्रमा लग्न में उच्च का, सूर्य स्वराशिस्थ केंद्र में गुरु के साथ, बुध स्वराशिस्थ, नीच का मंगल परन्तु उच्च दृष्टि भाग्य स्थान पर, शनि भाग्य और दशम का स्वामी होकर सप्तम में है।

वहीं ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार कृष्ण की कुंडली में चन्द्रमा, सूर्य, और बुध की स्थिति तो वही है; परन्तु मंगल और शनि को स्वराशिस्थ बताया है।

डॉ. भोजराज द्विवेदी के अनुसार चन्द्रमा उच्च का लग्न में, सूर्य और बुध के साथ सिंह राशि में केंद्र में, गुरु उच्च का कर्क में, शनि उच्च का तुला में, राहु उच्च का कन्या में, केतु उच्च का मीन में, और मंगल वृश्चिक का स्वराशि में है।

एक बात जो लगभग सबके अनुसार एक सी है, वह है सूर्य और चन्द्रमा की बहुत ही अच्छी स्थिति। साथ ही भगवान राम, कृष्ण, और गौतम बुद्ध तीनों की ही कुंडली में गुरु और शनि की युति या दृष्टि में सम्बन्ध है। यह उनके सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान की पराकाष्ठा को दर्शाता है। साथ ही मंगल और चंद्रमा का दृष्टि योग है, यह पराक्रम और दयालुता का संगम भी दर्शाता है।

कालचक्र में जब कभी ऐसा समय आया है जब अधिकांश ग्रह या तो उच्च के हों या स्वगृही हों, मार्गी हों, नक्षत्र भी शुभ हो, तिथि भी शुभ हो, दिन भी शुभ हो; तो कोई न कोई अवतार तो होता ही है। ऐसा संयोग हज़ारों वर्षों में एक बार होता है और इस संयोग में उत्पन्न बच्चा इतिहास को बदल देता है। यह बच्चा विश्व में पूजा जाता है, दुनिया को मार्ग दिखाता है तथा भटके इंसानों को राह दिखता है। कृष्ण ने कहा है:

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)

तात्पर्य:

हे भारत, जब जब धर्म का लोप होता है, और अधर्म बढ़ता है,
तब तब मैं स्वयं ही स्वयं की रचना करता हूँ॥
साधु पुरुषों के कल्याण के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये,
तथा धर्म की स्थापना के लिये, मैं युगों-युगों में जन्म लेता हूँ॥

कृष्ण के लगभग २५०० वर्ष बाद गौतम बुद्ध का अवतार हुआ था। एक बार पुनः लगभग २५०० वर्ष बीत चुके हैं। पाप और अपराध से धरती त्राहि-त्राहि कर रही है। एक बार पुनः ग्रह अपना प्रभाव दिखाने वाले हैं।

क्या है ग्रहों का यह अद्भुत महासंयोग? कौन-सा दिन और तारीख़ है वह? कौन-सा समय होगा वह? कौन-से लग्न का बच्चा बनेगा महावतार? पढ़िए मेरे अगले लेख में, शुक्रवार - २२ अगस्त २०१४ को।

पं. दीपक दूबे

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