पंडित हनुमान मिश्रा
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अपनी तेज तर्रार छवि के लिए पहचाने जाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी अपने बड़बोलेपन के लिए बडे मशहूर हैं। उदाहरण के लिए इनका खूंखार आतंकवादी ओसामा बिनलादेन को ओसामा जी कहकर सम्बोधित करना बहुत मशहूर हुआ था। लेकिन वर्तमान में बृहस्पति ग्रह का गोचर इस बात का संकेत कर रहा है कि यही बड़बोलापन उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। उपलब्ध जानकारियों के आधार पर दिग्विजय सिंह का जन्म 28 फरवरी 1947 को मकर लग्न और वृषभ राशि में हुआ।
इनकी कुण्डली में वाणी स्थान का स्वामी शनि है जो वक्री है। वाणी स्थान पर सूर्य और मंगल है जो प्रबल और अप्रिय भाषा बोलने के संकेतक है। वाणी का कारक बुध इनकी कुण्डली में नीच राशि में स्थित होकर वक्री है। ये स्थितियां अपने आप में अप्रिय वक्ता बनाने के लिए पर्याप्त हैं। सूर्य और मंगल की युति इन्हें अनुशासन में बंधने नहीं देती। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह कभी अनुशासन में बंधकर काम नहीं कर पाए और न ही आगें कर पाएंगे। मंगल उत्श्रृंखल स्वभाव का होता है उसका संबंध सूर्य (राजा) ग्रह से होने पर व्यक्ति अपने आपको राजा के समान समझने लगता है। अत: राजा तो दूसरों के लिए नियम बनाता है। वह स्वयं अनुशासन में बंधा नहीं रहना चाहता। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह कभी-कभी पार्टी के नियमों से परे आचरण करते हुए पाए जाते हैं।
वर्तमान में इन पर शनि में राहु की दशा का प्रभाव है जो जून 2014 तक रहेगा। दोनो ही पाप ग्रह हैं। अत: इस दशा में कुछ अप्रिय फलों की प्राप्ति भी होगी। यद्यपि इन पर इस दशा का प्रभाव अगस्त 2011 के आस पास से है लेकिन तब बृहस्पति का गोचर इनके अनुकूल रहा है लेकिन छठे भाव का गोचर इनकी छवि को धूमिल करवा सकता है या फ़िर किसी प्रतिस्पर्धी के षडयंत्र में फंसा सकता है। बृहस्पति का गोचर इसी ३१ मई से इनके लग्न के छठे भाव में हुआ है और इस समय सट्टेबाजी के पक्ष में बयानबाजी और अपने समर्थक को थप्पड़ मारने जैसा काम करके दिग्विजय सिंह फ़िर सुर्खियां बटोर रहे हैं, जो आने वाले समय में इनके लिए घातक हो सकता है।
यद्यपि दसम भाव में शनि और राहु का गोचर अच्छे परिणाम देने वाला माना गया है लेकिन अति “सर्वत्र वर्जयेत” के अनुसार शनि में राहु की दशा का प्रभाव तथा दसम में शनि और राहु का गोचर पाप ग्रहों के प्रभावों में वृद्धि कर रहा है। शुभता का संचार करने वाले ग्रह; बृहस्पति का गोचर भी प्रतिकूल है। अत: पाप प्रभाव के कारण दिग्विजय सिंह को सरकार या शीर्षस्थ नेताओं के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। यदि हम चंद्र कुण्डली से देखें तो भी बृहस्पति दूसरे भाव में आ चुका है। अत: वाणी में ऊर्जा का आना स्वाभाविक है, यदि दिग्विजय सिंह चाहें तो बृहस्पति के इस गोचर का लाभ लेकर अपनी बातों से सबको मंत्रमुग्ध कर सकते हैं लेकिन ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम हैं क्योंकि दो पाप ग्रहों की दशाएं उनके वाणी के जोश में नकारात्मकता घोल कर, वाणी के माध्यम से ही इनका नुकसान करवा सकती हैं। अत: पूरे एक साल तक दिग्विजय सिंह को बहुत संयमित भाषण करना चाहिए अन्यथा दिग्विजय सिंह का बड़बोलापन इन्हें फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। जून 2014 के बाद इन्हें कई सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति होगी। वहीं 2017 से शुरू होने वाली बुध की दशा इनके लिए सकारात्मक परिणाम देने वाली सिद्ध होगी।
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अपनी तेज तर्रार छवि के लिए पहचाने जाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी अपने बड़बोलेपन के लिए बडे मशहूर हैं। उदाहरण के लिए इनका खूंखार आतंकवादी ओसामा बिनलादेन को ओसामा जी कहकर सम्बोधित करना बहुत मशहूर हुआ था। लेकिन वर्तमान में बृहस्पति ग्रह का गोचर इस बात का संकेत कर रहा है कि यही बड़बोलापन उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। उपलब्ध जानकारियों के आधार पर दिग्विजय सिंह का जन्म 28 फरवरी 1947 को मकर लग्न और वृषभ राशि में हुआ।
इनकी कुण्डली में वाणी स्थान का स्वामी शनि है जो वक्री है। वाणी स्थान पर सूर्य और मंगल है जो प्रबल और अप्रिय भाषा बोलने के संकेतक है। वाणी का कारक बुध इनकी कुण्डली में नीच राशि में स्थित होकर वक्री है। ये स्थितियां अपने आप में अप्रिय वक्ता बनाने के लिए पर्याप्त हैं। सूर्य और मंगल की युति इन्हें अनुशासन में बंधने नहीं देती। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह कभी अनुशासन में बंधकर काम नहीं कर पाए और न ही आगें कर पाएंगे। मंगल उत्श्रृंखल स्वभाव का होता है उसका संबंध सूर्य (राजा) ग्रह से होने पर व्यक्ति अपने आपको राजा के समान समझने लगता है। अत: राजा तो दूसरों के लिए नियम बनाता है। वह स्वयं अनुशासन में बंधा नहीं रहना चाहता। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह कभी-कभी पार्टी के नियमों से परे आचरण करते हुए पाए जाते हैं।
वर्तमान में इन पर शनि में राहु की दशा का प्रभाव है जो जून 2014 तक रहेगा। दोनो ही पाप ग्रह हैं। अत: इस दशा में कुछ अप्रिय फलों की प्राप्ति भी होगी। यद्यपि इन पर इस दशा का प्रभाव अगस्त 2011 के आस पास से है लेकिन तब बृहस्पति का गोचर इनके अनुकूल रहा है लेकिन छठे भाव का गोचर इनकी छवि को धूमिल करवा सकता है या फ़िर किसी प्रतिस्पर्धी के षडयंत्र में फंसा सकता है। बृहस्पति का गोचर इसी ३१ मई से इनके लग्न के छठे भाव में हुआ है और इस समय सट्टेबाजी के पक्ष में बयानबाजी और अपने समर्थक को थप्पड़ मारने जैसा काम करके दिग्विजय सिंह फ़िर सुर्खियां बटोर रहे हैं, जो आने वाले समय में इनके लिए घातक हो सकता है।
यद्यपि दसम भाव में शनि और राहु का गोचर अच्छे परिणाम देने वाला माना गया है लेकिन अति “सर्वत्र वर्जयेत” के अनुसार शनि में राहु की दशा का प्रभाव तथा दसम में शनि और राहु का गोचर पाप ग्रहों के प्रभावों में वृद्धि कर रहा है। शुभता का संचार करने वाले ग्रह; बृहस्पति का गोचर भी प्रतिकूल है। अत: पाप प्रभाव के कारण दिग्विजय सिंह को सरकार या शीर्षस्थ नेताओं के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। यदि हम चंद्र कुण्डली से देखें तो भी बृहस्पति दूसरे भाव में आ चुका है। अत: वाणी में ऊर्जा का आना स्वाभाविक है, यदि दिग्विजय सिंह चाहें तो बृहस्पति के इस गोचर का लाभ लेकर अपनी बातों से सबको मंत्रमुग्ध कर सकते हैं लेकिन ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम हैं क्योंकि दो पाप ग्रहों की दशाएं उनके वाणी के जोश में नकारात्मकता घोल कर, वाणी के माध्यम से ही इनका नुकसान करवा सकती हैं। अत: पूरे एक साल तक दिग्विजय सिंह को बहुत संयमित भाषण करना चाहिए अन्यथा दिग्विजय सिंह का बड़बोलापन इन्हें फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। जून 2014 के बाद इन्हें कई सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति होगी। वहीं 2017 से शुरू होने वाली बुध की दशा इनके लिए सकारात्मक परिणाम देने वाली सिद्ध होगी।
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