उषा सक्सेना
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अर्थात् त्रिकोण लक्ष्मी स्थान है, केन्द्र विष्णु स्थान है, इनके सम्बन्ध मात्र से नर चक्रवर्ती बनता है।
अन्ततः कर्म का प्रथम उद्देश्य धनार्ज्रन होता है। सदा से ही सांसारिक जनों की अधिक से अधिक धन,समृधि प्राप्त करने की कामना होती है, स्वंय की धन की स्थिति से भी शायद ही कोई जन सन्तुष्ट रहता हो, विशेषकर आज के युग में तो वैभव की चाह का कोई अन्त ही नहीं है।परन्तु किस ग्रह स्थिति में जातक पर्याप्त धन अर्जित करने में समर्थ हो सकता है यह ज्ञात होना अति आवश्यक है।
धनेश धनभाव अथवा केन्द्र, त्रिकोण में हो तो धनवृधि करता है। यह 8, 6, 12 स्थानों में हो तो धन प्रदान करने में निर्बल होता है वरन दुस्थानों में हो तो सचिंत धन की भी हानि कराता है।
द्वितीयेश लाभ भाव में तथा लाभेश द्वितीय में हो तो प्रचुर मात्रा मे धन लाभ होता है। धनेश लाभेश केन्द्र व त्रिकोण मे स्थित हो तो जातक धनवान होता है।
लाभेंश(एकादश भाव का स्वामी) यदि लाभ स्थान में अथवा केन्द्र व त्रिकोण में स्थित हो अथवा उच्चराशि में हो तो प्रचुर धन लाभ करता है।
यदि लाभेश धन भाव में हो व धनेश केन्द्र में गुरू के साथ स्थित हो तो जातक पर्याप्त धन अर्जित करता है।
लाभेश शुभ ग्रहो से युक्त हो कर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक 40 वें वर्ष की आयु में प्रचुर धन प्राप्त करता है।
लाभ स्थान में गुरू स्थित हो चन्द्र धन भाव में हो शुक्र भाग्य भाव में हो तो जातक ऐश्वर्यशाली होता है।
यदि धन भाव, लाभ भाव तथा लग्न आपने स्वामी से युत हो जातक समृद्धिवान होता है।
यदि धनेश, लाभेश लाभ भाव में स्वराशि, मित्रराशि, उच्चराशि में स्थित हो तो प्रचुर धन प्रदान करते है।
यदि धनेश, लाभेश लग्न में स्थित हो तथा वे एक दूसरे के मित्र हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है।
यदि लग्नेश द्वितीयेश के साथ लग्न में स्थित हो तो जातक अधिक धनी होता है।
लग्नेश यदि धनभाव में हो तो जातक धनवान होता है।
धनेश लग्न में, लग्नेश धनभाव में हो तो जातक स्वयं के प्रयत्नों से धन अर्जित करता है।
धनेश लाभभाव में लाभेश धनभाव में या केन्द्र में हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है।
यदि लग्नेश धनभाव में हो, धनेश लाभभाव में हो या लाभेश लग्न में हो तो जातक विशाल कोश का स्वामी होता है।
यदि लग्नेश, एकादशेष, नवमेश परमोच्च अंशो में हो तो जातक करोड़पति होता है।
लाभस्थान में पूर्णबली ग्रह समद्धि प्रदान करता है।
एकादशेष यदि केन्द्र व त्रिकोण में स्थित हो तथा लाभस्थान में पूर्णबली क्रूर ग्रह स्थित हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है।
अर्थात लाभस्थान में पूर्णबली कू्र ग्रह स्थित हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है, इस संदर्भ में मेरे अनुभव से सूर्य,, मंगल,राहु जातक को धनवान बनाते है। परन्तु शनि, केतु इसके विपरीत ही फल देते है। लाभभाव में राहु अनीति से, गलत तरीके से धन प्राप्ति कराता है। परन्तु किसी भी स्थिति में तात्कालिक भावस्वामित्व ही प्रभावी रहता है। सूर्य, मंगल अथवा कोई भी ग्रह यदि द्वादश भाव का स्वामी हो कर धनभाव में स्थित हो तो धनलाभ के स्थान पर धनहानि ही करायेगा।
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“लक्ष्मीस्थान त्रिकोणख्यं विष्णुस्थानतु केन्द्रकम।
तयोस्सम्बन्धमात्रेण चक्रवर्ती भवेन्नर॥”
अर्थात् त्रिकोण लक्ष्मी स्थान है, केन्द्र विष्णु स्थान है, इनके सम्बन्ध मात्र से नर चक्रवर्ती बनता है।
अन्ततः कर्म का प्रथम उद्देश्य धनार्ज्रन होता है। सदा से ही सांसारिक जनों की अधिक से अधिक धन,समृधि प्राप्त करने की कामना होती है, स्वंय की धन की स्थिति से भी शायद ही कोई जन सन्तुष्ट रहता हो, विशेषकर आज के युग में तो वैभव की चाह का कोई अन्त ही नहीं है।परन्तु किस ग्रह स्थिति में जातक पर्याप्त धन अर्जित करने में समर्थ हो सकता है यह ज्ञात होना अति आवश्यक है।
“धनेशो धनभावस्थ केन्द्रकोणगतोऽपि वा।
धनवृदधिकरो ज्ञेयस्त्रिकस्थो धनहानिकृत।।”
धनेश धनभाव अथवा केन्द्र, त्रिकोण में हो तो धनवृधि करता है। यह 8, 6, 12 स्थानों में हो तो धन प्रदान करने में निर्बल होता है वरन दुस्थानों में हो तो सचिंत धन की भी हानि कराता है।
“धनेशे लाभभावसथे लाभेशे वा धंनगते।
तावुभौ केन्द्रकोणस्थो धनवान स नरो भवेत्।।”
द्वितीयेश लाभ भाव में तथा लाभेश द्वितीय में हो तो प्रचुर मात्रा मे धन लाभ होता है। धनेश लाभेश केन्द्र व त्रिकोण मे स्थित हो तो जातक धनवान होता है।
“लाभाधिपो यदा लाभे तिष्टेत्केन्द्रत्रिकोणगः।
बहुलाभं तदा कुर्यादुच्चे सूर्याशगोऽपि वा।।”
लाभेंश(एकादश भाव का स्वामी) यदि लाभ स्थान में अथवा केन्द्र व त्रिकोण में स्थित हो अथवा उच्चराशि में हो तो प्रचुर धन लाभ करता है।
“लाभेशे धनराशिस्थे धनेश केन्द्रसंस्थिते।
गुरूणा सहिते भावे गुरूलाभं विनिर्दिशेत्।।”
यदि लाभेश धन भाव में हो व धनेश केन्द्र में गुरू के साथ स्थित हो तो जातक पर्याप्त धन अर्जित करता है।
“केन्द्रत्रिकोणगे लाभनाथे शुभसमन्विते।
चत्वारिंशे तु सम्प्राप्ते सहस्त्रार्धसुनिष्कभाक्।।”
लाभेश शुभ ग्रहो से युक्त हो कर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक 40 वें वर्ष की आयु में प्रचुर धन प्राप्त करता है।
“लाभस्थाने गुरूयुते धने चन्द्रसमन्विते।
भाग्यस्थानगते शुक्रे षट्सहस्त्राधिपो भवेत्।।”
लाभ स्थान में गुरू स्थित हो चन्द्र धन भाव में हो शुक्र भाग्य भाव में हो तो जातक ऐश्वर्यशाली होता है।
“वित्तायोदयशयः पतियुता वित्ताधिको जायते।”
यदि धन भाव, लाभ भाव तथा लग्न आपने स्वामी से युत हो जातक समृद्धिवान होता है।
“लाभस्थौ धनलाभपौ निजसुहृत्तुग्ड़ादिकौ चेत्तथ।”
यदि धनेश, लाभेश लाभ भाव में स्वराशि, मित्रराशि, उच्चराशि में स्थित हो तो प्रचुर धन प्रदान करते है।
“तद्वल्लाभधनाधिपौ तनुगतावन्योन्यमिष्टग्रहो।”
यदि धनेश, लाभेश लग्न में स्थित हो तथा वे एक दूसरे के मित्र हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है।
“लग्नेशे धनराशिपयुते लग्ने बहुद्रव्यवान्।।”
यदि लग्नेश द्वितीयेश के साथ लग्न में स्थित हो तो जातक अधिक धनी होता है।
“धनस्थे यदि लग्नेशे निधिमान् बलसंयुते।”
लग्नेश यदि धनभाव में हो तो जातक धनवान होता है।
“वित्तधीशे लग्नगे लग्ननाथे वित्तस्थानेऽयत्नतो वित्तमेव।”
धनेश लग्न में, लग्नेश धनभाव में हो तो जातक स्वयं के प्रयत्नों से धन अर्जित करता है।
“धनेशे लाभसंयुक्ते लाभेशे धनलाभगे।
तावुभौ केन्द्रगौ वाऽपि धनवान् ख्यातिमान् भेवत्।।”
धनेश लाभभाव में लाभेश धनभाव में या केन्द्र में हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है।
“लग्नेशे धनराशिस्थे धनेशे लाभराशिगे।
लाभेशे व विलग्नस्थे निध्यादिधनमाप्नुयात्।।”
यदि लग्नेश धनभाव में हो, धनेश लाभभाव में हो या लाभेश लग्न में हो तो जातक विशाल कोश का स्वामी होता है।
“लग्नाय धनभाग्येशाः परमोच्चांशसंयुताः।
वैशेषिकांशगा वापि तदा कोटीश्वरों भवेत्।।”
यदि लग्नेश, एकादशेष, नवमेश परमोच्च अंशो में हो तो जातक करोड़पति होता है।
“लाभस्थानोपयातः सकलबलयुतः खेचरो वित्तदः स्यात्।”
लाभस्थान में पूर्णबली ग्रह समद्धि प्रदान करता है।
“लास्थानपतौ विलग्नभवनात् केन्द्रत्रिकोणस्थिते।
लाभे पापमन्विते तु धनवान् तुंगादिराश्यंशके।।”
”लाभे पापमन्विते तु धनवान् तुंगादिराश्यंशके“
अर्थात लाभस्थान में पूर्णबली कू्र ग्रह स्थित हो तो प्रचुर धन प्राप्त होता है, इस संदर्भ में मेरे अनुभव से सूर्य,, मंगल,राहु जातक को धनवान बनाते है। परन्तु शनि, केतु इसके विपरीत ही फल देते है। लाभभाव में राहु अनीति से, गलत तरीके से धन प्राप्ति कराता है। परन्तु किसी भी स्थिति में तात्कालिक भावस्वामित्व ही प्रभावी रहता है। सूर्य, मंगल अथवा कोई भी ग्रह यदि द्वादश भाव का स्वामी हो कर धनभाव में स्थित हो तो धनलाभ के स्थान पर धनहानि ही करायेगा।
namaste
ReplyDeleteSince big time i was stucked in couple of kundalis but the last shlok made me free exactly there it is. Shani n ketu .
thank u very much...
kripaya aur.