आज नवरात्रि 2017 के दूसरे दिन, मॉं ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी के पूजन से मनुष्य के समस्त दुख दूर होते हैं और उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं मॉं ब्रह्मचारिणी की उपासना का महत्व|
मॉं ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मॉं ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। देवी दुर्गा के इस स्वरूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत का शब्द है, ब्रह्म का एक अर्थ है तपस्या और चारिणी यानि आचरण करने वाली। मॉं ब्रह्मचारिणी की कृपा से सिद्धि और सफलता मिलती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा व उपासना करने से मनुष्य के अंदर तप, त्याग, संयम और सदाचार जैसे गुणों की वृद्धि होती है और बुराइयों का नाश होता है।
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मॉं ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय है। कठोर तप के कारण मुख पर अद्भूत तेज है। देवी ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बायें हाथ में कमण्डल है।
पूजा विधि
देवी शक्ति मॉं ब्रह्मचारिणी की पूजा इस प्रकार करें…
- मॉं ब्रह्मचारिणी की पूजा से पहले कलश देवता का विधिवत तरीके से पूजन करें।
- अब देवी ब्रह्मचारिणी का पूजन शुरू करें। सबसे पहले अपने हाथ में एक फूल लेकर मॉं ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।
- इसके बाद मॉं ब्रह्मचारिणी का पंचोपचार पूजन करें और लाल फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें।
- घी अथवा कपूर जलाकर मॉं ब्रह्मचारिणी की आरती करें और अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
चेटी चंड
चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन सिंधी नववर्ष की शुरुआत भी होती है। इस दिन सिंधी समुदाय द्वारा चेटी चंड पर्व मनाया जाता है। यह पर्व सिंधी समाज के आराध्य देवता भगवान झूले लाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है इसलिए इसे झूलेलाल जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार के साथ ही सिंधी नव वर्ष की शुरुआत होती है। इस मौके पर सिंधी समाज के लोग जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए वरुण देवता की पूजा करते हैं। क्योंकि भगवान झूले लाल को जल देवता का अवतार माना जाता है। चेटी चंड पर्व अब धार्मिक महत्व तक ही सीमित नहीं है बल्कि सिंधु सभ्यता के प्रतीक के तौर पर भी जाना जाने लगा है।
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को नवरात्रि और चेटी चंड पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
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