पितृपक्ष कल से होंगे प्रारंभ, जानें श्राद्ध की तिथि

पढ़ें पिंड दान का महत्व और पूजा विधि! 24 सितंबर से शुरू हो रहे हैं पितृपक्ष, जानें इन दिनों में पितरों की आत्म शांति के लिए किये जाने वाले उपाय। 


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हिन्दू धर्म में माता-पिता और पूर्वजों को देवता का दर्जा दिया गया है और उनकी सेवा से बढ़कर कोई और दूसरी सेवा नहीं है। श्राद्ध का तात्पर्य पितरों के प्रति प्रकट की जाने वाली श्रद्धा से है। पितरों की आत्म शांति के लिए शास्त्रों में श्राद्ध यानि पितृ पक्ष का बड़ा महत्व है। वैसे तो हर माह की अमावस्या पर पितरों को तर्पण किया जाता है लेकिन पितृ पक्ष का समय पूरी तरह से पितरों को समर्पित है। भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। इस अवधि में हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए दान, धर्म, हवन और पूजा-पाठ करते हैं। 

इस वर्ष पितृ पक्ष 24 सितंबर से प्रारंभ होकर 8 अक्टूबर को समाप्त होंगे

मान्यता है कि इन 16 दिनों में केवल पितरों की आराधना करनी चाहिए। इससे पितरों को शांति और सद्गति मिलती है और वे प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

पितृ पक्ष में पिंड दान का महत्व और विधि


ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार दिवंगत पितरों के परिवार में सबसे बड़ा पुत्र या सबसे छोटा पुत्र और अगर पुत्र न हो तो भांजा, भतीजा, नाती पिंडदान कर सकते हैं। 

  • श्राद्ध में तीन कार्य मुख्य रूप से किये जाते हैं, पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज। दक्षिणा दिशा की ओर मुख करके आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धा के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है। 
  • जल में काले तिल, जौ, कुशा यानि हरी घास एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इससे पितृ तृप्त होते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। 
  • पितरों का तर्पण गया, प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन जैसी धार्मिक नगरी में जाकर करें या फिर अपने घर पर ही करें। 
  • शास्त्रों में कहा गया है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करें।
  • पितृ पक्ष के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहें।

श्राद्ध में किये जाने वाले 10 प्रकार के दान का महत्व


श्राद्ध पक्ष में 10 तरह के दान-पुण्य करने से पितरों को परम शांति मिलती है। इनमें गाय, भूमि, वस्त्र, काले तिल, सोना, घी, गुड़, धान, चांदी और नमक आदि का दान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पितृ पक्ष में मूक जानवरों को भी भोजन कराना चाहिए।


पितरों का श्राद्ध कैसे करें?


पितृ पक्ष परंपरा के अनुसार दिवंगत परिजनों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर किया जाना चाहिए। यदि किसी परिजन की मृत्यु सप्तमी को हुई हो तो, उनका श्राद्ध सप्तमी के दिन किया जाता है। ठीक इसी प्रकार अन्य तिथियों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष मान्यताएं भी हैं जो इस प्रकार हैं:

  • पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।
  • परिवार में जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई है यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई है। उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
  • साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।
  • जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए। इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है। 
हम आशा करते हैं कि पितृ पक्ष पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा।

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