गुरु पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है। यह त्यौहार वेद व्यास जी के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। यह दिन हमारे गुरुओं के सम्मान के लिए होता है। वेद व्यास जी सभी गुरुओं के गुरु माने जाते हैं। इस गुरु पर्व पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े 5 दुर्लभ रहस्य।
वेद व्यास से जुड़े 5 रहस्य
- ऐसा माना जाता है कि वेद-व्यास जी भगवान् विष्णु के अवतार थे।
- उनका पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन था।
- वेदों को लिखित रूप में व्यवस्थित करने के कारण उनका नाम वेद-व्यास पड़ा। चार भागों में विभाजित होने के बाद वेदों के नाम इस प्रकार हैं: ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद
- वे महाभारत के रचयिता भी थे।
- वे महर्षि पराशर और सत्यवती (मछुआरे की कन्या) के पुत्र थे।
गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा एक राष्ट्रीय स्तर का पर्व है जो हमारे अध्यात्मिक और बुद्धिजीवी गुरुओं को समर्पित है। यह पर्व आषाढ़ (जून-जुलाई) मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सांस्कृतिक रूप से यह त्योहार हिन्दू और बौद्ध धर्म के अनुयायी मनाते हैं।
गुरु पूजा विधि
इस शुभ अवसर पर वेद व्यास जी अथवा अपने आराध्य गुरु की पूजा-आराधना की जाती है। इसमें आपके गुरु कोई व्यक्ति, किताब या अन्य कोई प्रतीक चिह्न जिसने आपको जीवन में सही मार्ग दिखाया है, हो सकते हैं। यदि आपके गुरु शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हैं और या फिर आप वेद-व्यास जी को अपना गुरु मानते हैं, तो नीचे दी गई पूजा विधि से गुरु पूर्णिमा मना सकते हैं:
- पूजा स्थल को साफ़ करें और घर के सभी सदस्य स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा की वेदी सजाएँ और उस पर गुरु की प्रतिमा रखें।
- वेदी पर प्रसाद के रूप में फल भी रखें।
- गुरु को आमंत्रित करें।
- पहली आरती अगरबत्ती के साथ गाएँ।
- दूसरी आरती पूजा थाल के साथ गाएँ जिसमें घी का दिया, हल्दी और चन्दन, चावल, कुमकुम और फूल रखें। फूल गुरु के सामने चढ़ाएँ। हल्दी और चन्दन ज्ञान का प्रतीक हैं। कुमकुम को शुभ व शक्ति का रूप माना गया है। चावल पवित्रता और पोषण का रूप हैं। फूल अंदर की अच्छाई का प्रतीक हैं।
- आरती के बाद प्रार्थना करें और गुरु को धन्यवाद कहें।
- पूजा के बाद गुरु के सामने कुछ देर बैठें और आशीर्वाद लें।
- इसके बाद आप ध्यान भी लगा सकते हैं।
वेद व्यास
व्यास के जन्म के बाद महर्षि पाराशर दुनिया में ज्ञान का प्रसार करने निकल पड़े। जब तक वे लौटकर आए, व्यास जी 6 वर्ष के हो चुके थे और वे अपने पिता की महानता के बारे में जानते थे।
व्यास अपने पिता से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपने पिता से उनके साथ चलने का आग्रह किया। यह सुनकर पाराशर ने कहा कि वे उनके साथ एक शिष्य की तरह पर चल सकते हैं, पुत्र की तरह नहीं। जिस पर व्यास सहमत हो गए।
व्यास अपने पिता की छत्रछाया में बड़े हुए। उनकी ज्ञान को समझने की अपार क्षमता विकसित हुई। 16 साल की उम्र में वे बड़े ही बुद्धिजीवी हो गए थे।
वेदों का ज्ञान कहीं लिखा नहीं था बल्कि लोगों को मुंह-जवानी याद था। एक बार गंगा के निकटवर्ती मैदानों में सूखा पड़ गया, जो 14 सालों तक चला। इतने साल तक बादलों से एक बूँद भी पानी नहीं बरसा। इन दिनों में लोग वेदों का उच्चारण करना भूल गए और भोजन की तलाश में लगे रहे। जब बारिश हुई तब वेद-व्यास जी को खोए हुए ज्ञान का एहसास हुआ और तभी उन्होंने वेदों की लिखित रूप में रचना की।
वेद-व्यास द्वारा रचित 4 वेद इतिहास के सबसे बड़े आलेख माने जाते हैं।
बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा का महत्व
बौद्ध धर्म के इतिहास के अनुसार इस दिन “संघ” का निर्माण हुआ था, जिसमें प्रबुद्ध लोग शामिल थे। इस समय बुद्ध भगवान् ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। कुछ समय बाद इस संघ में 60 प्रबुद्ध हो गए और बुद्ध ने उन सभी को दुनिया के कोने-कोने में अकेले जाकर धर्म का प्रचार करने को कहा। यह 60 साधु अरिहन्त कहलाए।
आशा करते हैं कि यह लेख आपके लिए ज्ञानवर्थक रहा होगा। अगर आपके मन में किसी भी तरह का सुझाव या सवाल है तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में लिखें।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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