मकर संक्रांति पर आप भी करें कुंभ का पहला स्नान, खुल जायेगी सोती किस्मत और खुद चलकर आपके घर आएंगी माँ लक्ष्मी !
हिंदू पंचांग में मकर संक्रांति को एक प्रमुख पर्व माना गया है। भारत के अलग-अलग राज्यों में इस पर्व को अपनी-अपनी स्थानीय एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। ये देखा गया है कि हर वर्ष आमतौर पर मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। और इसी स्थिति में ज्योतिष अनुसार ये दावा किया जाता हैं कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में भी प्रवेश करता है। यूँ तो चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा ही ज्यादातर सभी हिंदू त्योहारों की गणना की जाती है लेकिन मकर संक्रांति पर्व अकेला ऐसा पर्व है जो सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन आता है। इसी दिन से शरद ऋतु का अंत शुरू हो जाता है और बसंत का आगमन होने लगता है। जिसके परिणामस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।
मकर संक्रांति मुहूर्त New Delhi, India के लिए
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दिनांक
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15 जनवरी, 2019 (मंगलवार)
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पुण्य काल मुहूर्त :
अवधि :
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07:15:14 से 12:30:00 तक
5 घंटे 14 मिनट
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महापुण्य काल मुहूर्त :
अवधि :
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07:15:14 से 09:15:14 तक
2 घंटे 0 मिनट
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संक्रांति पल :
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19:44:29 14th, जनवरी को
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मकर संक्रांति से होगी कुंभ के पहले शाही स्नान की शुरुआत
हिन्दू धर्म अनुसार कुम्भ के शाही स्नान की शुरुआत भी मकर संक्रांति के दिन से होगी। ज्योतिष गणना की बात करें तो ये देखा गया है कि अमावस्या के दिन प्रयागराज में संगम तट पर हर साल शुभ स्नान का आयोजन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से खिचड़ी खाने की परंपरा भी है। इसलिए कई जगह इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है।
कुंभ के पहले शाही स्नान का महत्व
भारत में कई तीर्थ स्थान है, जहां मकर संक्रांति के मौके पर ही तीर्थ की शुरुआत शुभ मानी जाती है। इसी दिन से उत्तर प्रदेश में कुंभ मेले की शुरुआत तो होती ही हैं साथ ही केरल में सबरीमाला में भी दर्शनों के लिए लोगों का जन सैलाब उमड़ पड़ता हैं। ऐसे में इस शुभ अवसर पर नर्मदा ताप्ति नदियों में डुबकी लगाना हर व्यक्ति के लिए शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन यदि कोई पवित्र नदियों में स्नान करता हैं तो उसके सभी पाप धुल जाते हैं।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
मान्यता ये भी है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का तेल लगाकर ही स्नान करना चाहिए। इसके बाद आप संक्रांति में गुड़, तिल, तेल, कंबल, फल, छाता आदि का दान करके भी शुभ फल प्राप्त कर सकते है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इस दिन का अपना एक विशेष महत्व होता है। ये देखा गया है कि यही दिन ठंड के मौसम जाने का सूचक है और मकर संक्रांति पर दिन-रात बराबर अवधि के होते हैं। जिसके बाद से दिन बडे हो जाते हैं और मौसम में थीरे-थीरे गर्माहट आने लगती है।
इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। ऐसे में जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उससे निकलती किरणों का असर स्वास्थ्य की दृष्टि से हर व्यक्ति के लिए खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें अमृत रूपी सेहत को लाभ पहुंचाने वाली सिद्ध होती है।
मकर संक्रांति से जुड़े त्यौहार
भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी माह में इसी अवधि से फसल कटाई अथवा बसंत के मौसम का आगमन भी मान लिया जाता है। किसान वर्ग अपनी फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को बड़े धूमधाम व ख़ुशी से मनाते हैं। भारत के विभिन्न राज्य में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना व मनाया जाता है।
पोंगल : दक्षिण भारत में विशेषकर तमिलनाडु, केरल और आंध्रा प्रदेश में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। ये वहाँ का सबसे महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का त्योहार होता है। इसी मौके पर धान की फसल कटने के बाद लोग अपनी खुशी प्रकट कर ईश्वर को धन्यवाद पोंगल मानते हुए करते है।
उत्तरायण : ये त्योहार खासतौर पर गुजरात में ही मनाया जाता है। ये पर्व हर साल नई फसल और ऋतु के आगमन पर 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। गुजरात में इन दिनों पतंग उड़ाई जाती है साथ ही पतंग महोत्सव का आयोजन भी इसी दिन किया जाता है। ये आयोजन दुनियाभर में बहुत लोकप्रिय है। उत्तरायण पर्व पर व्रत रखने की भी परम्परा है।
लोहड़ी : ये पर्व विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाता है। लोहड़ी फसलों की कटाई के बाद 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन शाम के समय आग जलाई जाती है और तिल, गुड़ और मक्का अग्नि को भोग के रूप में चढ़ाए जाते है।
माघ/भोगली बिहू: विशेषरूप से असम में माघ महीने की संक्रांति के एक दिन पहले से माघ बिहू यानि भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है। इस दिन हर घर में खान-पान धूमधाम से होता है। इस समय असम में तिल, चावल, नारियल और गन्ने की फसल अच्छी होती है इसलिए इन्ही चीजों से इस पर्व पर तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं।
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