कल ऐसे मनाए लोहड़ी पर्व, घर में आएगी खुशियां !

इस वर्ष लोहड़ी पर करें ये ख़ास कार्य, सालभर घर में नहीं होगी धन की कमी ! पढ़ें लोहड़ी का महत्व, साथ ही जानें कैसे जुड़ा है लोहड़ी से दुल्ला भट्टी का नाम !


लोह़ड़ी का त्योहार आनंद और खुशियों का प्रतीक माना जाता है जो शरद ऋतु के अंत में मनाया जाता है। इस त्योहार के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं। विशेष रूप से यह पर्व सिखों द्वारा पंजाब, हरियाणा में मनाया जाता है, परंतु अच्छी लोकप्रियता के चलते आजकल यह भारत के तक़रीबन हर राज्यों के साथ ही विदेशों में भी मनाया जाने वाला उत्सव बन गया है। इस दिन लोग एक-दूसरे को इस पर्व की बधाई देते हैं।

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लोहड़ी 2019

दिनांक :
13 जनवरी (रविवार)

लोहड़ी का मुख्य उद्देश्य


हिन्दू कैलेंडर के अनुसार लोहड़ी पर्व को विक्रम संवत् एवं मकर संक्रांति से जोड़ा गया है। पंजाब क्षेत्र में इस त्योहार को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को शरद ऋतु के समापन तक मनाने का प्रचलन बहुत पुराना है। इसके अलावा यह त्योहार किसानों के लिए भी आर्थिक रूप से नव वर्ष माना जाता है।

लोहड़ी पर लोक गीतों का महत्व


लोहड़ी पर गीतों का अपना एक विशेष महत्व रहा है। इन गीतों से ही लोगों के ज़ेहन में एक नई ऊर्जा एवं चेहरों पर एक ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है। इसके अलावा लोक गीतों के साथ नृत्य करके लोग इस पर्व को ख़ुशी-ख़ुशी मनाते है। लोहड़ी के सभी सांस्कृतिक लोक गीतों में विशेषरूप से ख़ुशहाल फसलों आदि के बारे में वर्णन किया जाता है। इस दिन गीत के द्वारा पंजाबी योद्धा दुल्ला भाटी को भी याद किया जाता है। साथ ही लोहड़ी पर आग के आसपास लोग ढ़ोल की ताल पर गिद्दा एवं भांगड़ा करके इस त्यौहार का जश्न मनाते हैं।

लोहड़ी पर इसलिए लिया जाता है दुल्ला भट्टी का नाम 


लोहड़ी के इस पावन त्योहार को लेकर एक पौराणिक कथा भी बहुत प्रचलित है जो पंजाब से जुड़ी हुई है। इस कहानी को जहाँ कुछ लोग इतिहास बताते हैं तो वहीं कुछ लोग इसे सत्य घटना बताते है। माना जाता है कि मुगल काल में बादशाह अकबर के समय पंजाब में एक दुल्ला भट्टी नाम का युवक रहता था। मान्यता है कि एक बार कुछ अमीर व्यापारी समान के बदले उस इलाके की कुवारी लड़कियों का सौदा कर रहे थे। उसी दौरान दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर लड़कियों को न केवल व्यापारियों के चंगुल से मुक्त कराया बल्कि उसने इन सभी लड़कियों की शादी हिन्दू लड़कों से भी करवाई। इसी घटना के बाद से ही दुल्ला भट्टी को पूरे पंजाब में नायक की उपाधि मिली। तब से लेकर अब तक हर बार लोहड़ी पर उस नायक की याद में ही 'सुंदर मुंदरिए' लोकगीत गाया जाता है।

लोहड़ी के रीति-रिवाज


यूँ तो लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन इस पर्व को देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई मनाता है। मुख्य तौर पर किसान वर्ग इस पर्व पर ईश्वर का आभार प्रकट कर अपनी फसल का अधिक मात्रा में उत्पादन बढ़ाने की कामना करते है। 

  • इस त्योहार पर बच्चे घर-घर जाकर लोक गीत गाते हैं। लोग बच्चों को मिठाई और पैसे देकर उन्हें उत्साहित करते है।
  • मान्यता है कि इस दिन घर आए किसी भी बच्चे को खाली हाथ लौटाना सही नहीं होता, इसलिए उन्हें इस दिन चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली एवं मक्का आदि भी दिया जाता है जिसे आमतौर पर लोहड़ी भी कहा जाता है।
  • इस दिन रात के वक़्त लोग घरों के पास आग जलाकर लोहड़ी (चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली एवं मक्का आदि) को आपस में वितरित करते हैं और साथ में लोक संगीत आदि के साथ नृत्य करते है।
  • इस दिन हर घर में रात के खाने में सरसों का साग और मक्के की रोटी के साथ खीर जैसे सांस्कृतिक भोजन बनाए जाते है। जिसके साथ लोग लोहड़ी की रात का आनंद लेते नज़र।
  • भारत के कई राज्यों में इस दिन पतंगें उड़ाने का भी विशेष प्रविधान है।

लोहड़ी पर आग का महत्व


लोहड़ी के दिन आग जलाना मुख्य कार्य होता है। ऐसा करने के पीछे माना जाता है कि यह आग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। एक अन्य पौराणिक कथा की माने तो एक बार राजा दक्ष ने एक महा यज्ञ करवाया, जिसमें उसने अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता के पास शिव जी को यज्ञ में निमंत्रित नहीं करने के पीछे का जवाब लेने पहुंची। इस बात पर राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की सरेआम बहुत निंदा की। जिस बार से आहत होकर सती बहुत रोई, उनसे अपने पति का यूँ अपमान नहीं देखा गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर दिया। सती की मृत्यु का समाचार सुनकर भगवान शिव ने वीरभद्र को बुलाकर उस यज्ञ का ही विध्वंस करा दिया। 

वहीं, कुछ लोग ये भी मानते हैं कि यह आग पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की जमा देने वाली सर्दी को कम करने के लिए जलाई जाती है। 

भारत के अन्य भाग में लोहड़ी की धूम 


अगर दूसरे राज्यों की बात करें तो, आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लोहड़ी “भोगी” के रूप में मनाई जाती है। जिस दिन पुरानी चीज़ों को बदलने की पौराणिक परंपरा होती है। वहीं इस दिन आग जलाने के लिए लोग लकड़ी, पुराना फ़र्नीचर आदि का इस्तेमाल करते हैं। इसमें विशेष रूप से धातु की चीज़ों को दहन नहीं किया जाए इस बात का भी ध्यान रखा जाता है।

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