पं. हनुमान मिश्रा
विवाह का प्रसंग हो और कुंडलियों के मेल मिलाप की बात चले लेकिन मांगलिक दोष की चर्चा न हों ऐसा बहुत कम होता है। प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में भी मंगल ग्रह के द्वारा वैवाहिक जीवन में होने वाले दोषों की चर्चा की गई है। लेकिन कुछ लोग इस दोष को आवश्यकता और वास्तविकता से अधिक भयावह बताते हैं जो कि अनुचित ही नहीं अपितु निंदनीय है। आइए सबसे पहले संक्षेप में जान लिया जाय कि किन स्थितियों में मंगल दोष की उपस्थिति मानी गई है।
विवाह का प्रसंग हो और कुंडलियों के मेल मिलाप की बात चले लेकिन मांगलिक दोष की चर्चा न हों ऐसा बहुत कम होता है। प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में भी मंगल ग्रह के द्वारा वैवाहिक जीवन में होने वाले दोषों की चर्चा की गई है। लेकिन कुछ लोग इस दोष को आवश्यकता और वास्तविकता से अधिक भयावह बताते हैं जो कि अनुचित ही नहीं अपितु निंदनीय है। आइए सबसे पहले संक्षेप में जान लिया जाय कि किन स्थितियों में मंगल दोष की उपस्थिति मानी गई है।
जन्मकुंडली में जब मंगल ग्रह लग्न से पहले, चौथे, सातवें,आठवें और बारहवें भाव में मंगल हो तो मांगलिक या मंगल दोष होता है। कुछ विद्वान दूसरे भाव के मंगल को भी मांगलिक दोष में शामिल करते हैं जो कि बहुत हद तक उचित भी है। विद्वानों का मत है कि लग्न शरीर का प्रतिनिधित्त्व करता है, चंद्रमा मन का प्रतिनिधि है और शुक्र रति सुख का कारक होता है अत: लग्न, चंद्र व शुक्र तीनों से पहले, चौथे, सातवें,आठवें और बारहवें भाव में स्थित मंगल ग्रह मांगलिक दोष का निर्माण करता है। इसके अलावा मैंने अनुभव में पाया कि लग्न, चंद्र व शुक्र तीनों से पहले, चौथे, सातवें,आठवें और बारहवें भाव में मंगल की दृष्टि होने पर भी मांगलिक जैसे फल देखने को मिलते हैं।
यह मांगलिक दोष हानिकारक, कष्टप्रद या अशुभकर तो होता है ऐसा मैंने भी अनुभव में पाया है लेकिन जितना भयावह ज्योतिष के कुछ व्यापारी गण इसे बताते हैं उतना नहीं होता। ऐसा में अनुभव में भी आया है और शास्त्रों में भी उल्लेखित है। ज्योतिष के सर्वमान्य ग्रंथों के अनुसार कोई भी प्रह सदैव हानिकारक नहीं होता बल्कि उच्चावस्था, मूल त्रिकोण, स्वराशि में स्थित, मित्र राशि में स्थित, वर्गोत्तम, षडबली व शुभग्रहों के प्रभाव में होने पर ग्रह के शुभ फल भी मिलते हैं। ऐसी स्थिति होने पर मांगलिक दोष में कमी आती है अथवा दोष का समन होते हुए भी अनुभूत किया गया है। अत: हर स्थिति में सहीं नहीं उतरीं उदाहरण के लिए कुछ पुस्तकों में उल्लेख भी मिलता है और कुछ ज्योतिषी भी इस तर्क को देते हुए पाए जाते हैं कि मंगल नीच,वक्री या अस्त हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है। यह सूत्र बहुत कम परिस्थितियों में लागू हो सकता है।
दूसरा सूत्र है कि चतुर्थ या सप्तम में मंगल मेष या कर्क राशि का हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है। मेरे विचार से मेष में होना तो ठीक है लेकिन कर्क में होने पर इसके कई प्रतिकूल फल देखने को मिल सकते हैं। तीसरा सूत्र यह है कि मंगल के साथ कोई पाप ग्रह आ जाने पर मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है। यह भी मेरे अनुभव में खरा नहीं उतरा। इस उदाहरण के माध्यम से स्वयं समझें कि माना कि किसी कुंडली के लग्न या सप्तम में मंगल है और उसके साथ राहु भी हो तो जीवन में और भी ज्वलंत स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
अत: मेरे विचार से अगर एक सारांश सूत्र लेना हो तो यह लिया जा सकता है कि शुभ प्रभाव युक्त मंगल बुरे फल नहीं देता जिससे मांगलिक दोष के कारण मिलने वाले अशुभ फलों में कमी आती है। दूसरी स्थति पाप साम्य की हो सकती हैं यानी मंगल के दुश्प्रभाव को संतुलित करने के लिए सामने वाले की कुण्डली में उसी स्थान पर पाप ग्रह जैसे मंगल, शनि या राहु का प्रभाव होना चाहिए। इस प्रकार के सूत्र का शायद यही उद्देश्य रहा होगा को एक जैसी कमी या अच्छाई वाले दो लोगों को मिलाने से किसी तीसरे और चौथे व्यक्ति का नुकसान न हों।
सारांश यह है कि मांगलिक दोष के अस्तित्त्व को नकारना उचित नहीं हैं लेकिन इससे लोगों को भयभीत करना बहुत अनुचित है। प्रयास यह होना चाहिए कि समान भाव और समान राशि वाले मंगल के मिलान को वरीयता देनी चाहिए अथवा कम से कम मांगलिक का विवाह मांगलिक से कराना चाहिए। साथ ही दोष शांति का शाश्त्रोक्त उपाय करना चाहिए।
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