मई ११,२०१४ , को मदर्स डे मनाया जा रहा है। यह वह दिन है जब आप अपनी माता को विशेष महसूस करा सकते हैं। मदर्स डे २०१४, को बताइये अपनी माता को कैसे हैं वो ख़ास आपके लिए। आइये जाने पं हनुमान मिश्रा जी से ज्योतिष में माता को क्या महत्व दिया गया है।
"अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"
लंका पर विजय प्राप्ति के पश्चात मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा कि “हे लक्ष्मण यह सोने की लंका मुझे किसी तरह से अच्छी नहीं लग रही है क्योंकि माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर होती हैं। और यही कारण है कि ज्योतिष में माँ और जन्मभूमि दोनों का ही विचार कुण्डली के चतुर्थ भाव से किया जाता है। आइए, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इन शब्दों को “मातृ दिवस” के अवसर पर ज्योतिष के माध्यम से समझने का प्रयास किया जाय। यानी यह समझने का प्रयास किया जाय कि “मां को स्वर्ग से बड़ा” मानने में ज्योतिष कितना समर्थन करता है।
कुण्डली में नौवां भाव धर्म का होता है और बारहवां भाव मोक्ष या स्वर्ग का होता है। शायद यही कारण है कि धर्म भाव से चौथा भाव होने के कारण हम बारहवें भाव को धर्म के स्थाई घर अर्थात मोक्ष या स्वर्ग के भाव के रूप में जानते हैं।
सामान्यत: चौथे भाव से हम निवास स्थान, मां, मातृभूमि आदि का विचार करते हैं। वहीं कुण्डली के पंचम भाव से प्रेम, अपनापन और वात्सल्य (संतान) आदि का विचार किया जाता है। जब कुण्डली का बारहवां भाव स्वर्ग है तो स्वर्ग का प्रेम हम किस भाव से देखें? स्वाभाविक है स्वर्ग (बारहवें) भाव से पांचवां भाव तो कुण्डली का चतुर्थ भाव ही होगा। अत: स्वर्ग का प्रेम अगर कहीं बसता है तो वह है चतुर्थ भाव। यानी मां का भाव। यही कारण है कि विद्वानों ने कहा है कि मां के आंचल तले स्वर्ग होता है। यही कारण है कि भगवान राम नें मां और मातृभूमि दोनों को स्वर्ग से बड़ा कहा है। क्योंकि अगर प्रेम न हो तो स्वर्ग भी नरक हो जाएगा।
ज्योतिष भी इस बात का समर्थन करता है कि मां स्वर्ग से भी बड़ी होती है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर बस यही एक पावन रिश्ता है जो निष्कपट होता है। इस एक रिश्ते में कोई प्रदूषण नहीं होता। कुण्डली के चतुर्थ भाव से शांति विशेषकर मानसिक शांति का विचार किया जाता है। यह मां का ही भाव होता है और मां तो वह शीतल और सुगंधित बयार का कोमल अहसास है जिसके सानिध्य में जाते ही सारी अशांति दूर भाग जाती है।
कुण्डली का बारहवां भाव मोक्ष का भाव होने के साथ साथ व्यय का भाव होता है, विदेश का भाव होता है, घर छोड़ने का भाव होता है यानि वह भाव दु:ख देने वाला भी हो सकता है लेकिन चौथा भाव शांति प्रदान करने वाला कहा गया है क्योंकि वह मां का भाव होता है और मां, कितना मीठा, कितना अपना, कितना गहरा और कितना खूबसूरत और पवित्र रिश्ता होता है। इस एक रिश्ते में निहित है छलछलाता ममता का सागर। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अव्यक्त अनुभूति छुपी है जैसे हरी, ठंडी व कोमल दूब की बगिया में सोए हों। भला ऐसे रिश्ते के सानिध्य में होने पर दुनिया का कोई दु:ख ठहर सकेगा? शायद नहीं, इसीलिए “मां” को स्वर्ग से बढ़कर कहा गया है।
आपको पता है, मां त्याग की बहुत बड़ी मूर्ति मानी गई है क्योंकि नारी को मातृत्त्व को पाने के लिए बहुत बड़े त्याग करने पड़ते हैं। मां, शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दांव पर लगाने को तैयार हो जाती है।
नारी अपने कोरे कुंवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसका नारीत्व संपूर्णता पाता है मां बन कर। मातृत्त्व की प्राप्ति उसे यूं ही नहीं हो जाती बल्कि जीवन के सबसे अनमोल भाग “यौवन” को न्यौछाबर करने की शर्त पर ईश्वर नारी को मातृत्त्व प्रदान करता है और इस प्रकार नारी को सम्पूर्णता प्राप्त होती है। हालांकि संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक दिव्य अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकता है जब एक नर्म गुदगुदाता जीव उसके कलेजे से आ लगता है। उसका अपना 'प्राकृतिक सृजन' जब उसे देखकर चहकता है तो उसकी आंखों में खुशियों के हजारों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
पल-पल उसके दिल के सागर में ममता की मार्मिक लहरें हिलोंरें लेती हैं। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है।
लाज और लावण्य से दीपदिपाते-पुलकित इस भाव को किसी भाषा, किसी शब्द और किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती। 'मां' शब्द की पवित्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू धर्म में देवियों को मां कहकर पुकारते है। बेटी या बहन के संबोधनों से नहीं। मदर मैरी और बीबी फातिमा का ईसाई और मुस्लिम धर्म में विशिष्ट स्थान है। अत: इस बात में कोई संसय नहीं कि मां स्वर्ग के सामान नहीं अपितु स्वर्ग से बड़ी है तभी तो उसके चरणों स्वर्ग है। इसीलिए हर बच्चा कहता है मेरी मां सबसे अच्छी है। जबकि इसकी- उसकी नहीं “मां” हर किसी की अच्छी ही होती है, क्योंकि वह मां होती है।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। लेकिन फिर भी यदि हम एक दिन विशेष को “मातृ-दिवस” के रूप में मनाते हैं तो इस दिन विशेष पर हर मां को उसके अनूठे अनमोल मातृ-बोध की बधाई।
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