इस मुहूर्त में पूजन से मिलेगी विजय और सफलता! पढ़ें आज 19 अक्टूबर को मनाये जा रहे विजयादशमी पर्व का महत्व और उससे जुड़ी पौराणिक कथाएँ।
आज देशभर में विजयादशमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। शारदीय नवरात्रि के समापन के बाद शुक्ल पक्ष की दशमी पर दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था, इसलिए इस पर्व को विजयादशमी कहा गया है। दशहरे के अवसर पर शस्त्र पूजा का भी विधान है। इसी वजह से इस दिन अस्त्र-शस्त्र यानि हथियारों की पूजा की जाती है। दशहरा साल के शुभ दिनों में से एक है, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन यदि शुभ मुहूर्त में कोई कार्य किया जाये तो इसका विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है। विजयादशमी से पूर्व ही नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र का समापन दुर्गा विसर्जन के साथ होता है। दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर शुरू होता है। इसलिए प्रात:काल या अपराह्न काल में जब विजयादशमी तिथि व्याप्त हो, तब मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना चाहिए। देखें: दुर्गा विसर्जन मुहूर्त
विजयादशमी मुहूर्त 2018 | |
विजय मुहूर्त | 14:00:02 बजे से 14:45:38 बजे तक |
अपराह्न पूजा का समय | 13:14:26 बजे से 15:31:14 बजे तक |
सूचना: तालिका में दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में विजयादशमी पूजा का मुहूर्त व पूजा विधि
दशहरा पर विजय मुहूर्त
विजयादशमी का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है। साल का सबसे शुभ मुहूर्त - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त) है। यह अवधि किसी भी काम की शुरूआत करने के लिए उत्तम है। हालाँकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय में पूजा या कार्य करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध इसी मुहुर्त में प्रारंभ किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था।
दशहरा पूजा एवं महोत्सव
दशहरे पर अपराजिता पूजन करने का विधान है, जिसे अपराह्न काल में किया जाता है। इस पूजा की विधि इस प्रकार है-
1. घर से पूर्वोत्तर की दिशा में कोई पवित्र और शुभ स्थान को चिन्हित करें। यह स्थान किसी मंदिर, गार्डन आदि के आस-पास भी हो सकता है। अच्छा होगा यदि घर के सभी सदस्य पूजा में शामिल हों, हालाँकि यह पूजा व्यक्तिगत भी हो सकती है।
2. उस स्थान को स्वच्छ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (आठ कमल की पंखुडियाँ) बनाएँ।
3. अब यह संकल्प लें कि देवी अपराजिता की यह पूजा आप अपने या फिर परिवार के ख़ुशहाल जीवन के लिए कर रहे हैं।
4. उसके बाद अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ माँ देवी अपराजिता का आह्वान करें।
5. अब माँ जया को दायीं ओर क्रियाशक्त्यै नमः मंत्र के साथ आह्वान करें।
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दशहरे से जुड़ी पौराणिक कथाएँ
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस के साथ नौ दिनों तक युद्ध किया था और दसवें दिन अर्थात आज ही के दिन माँ ने उस राक्षस का संहार कर समस्त सृष्टि की रक्षा की थी। इसके अलावा त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने लंकापति पापी रावण का वध किया था इसलिए इस पर्व का नाम दशहरा पड़ा और तभी से दस सिरों वाले रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन प्रतीक के रूप में जलाया जाता है ताकि हम अपने अंदर के क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ एवं अहंकार आदि को नष्ट कर सकें।
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!
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