जानिये देवउठनी एकादशी के दिन क्यों किया जाता है तुलसी विवाह का आयोजन

पढ़ें देवउठनी एकादशी पर आखिर क्या है तुलसी विवाह का महत्व, जानिए देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि और सही मुहूर्त !
कल यानि 19 नवंबर 2018 को देवउठनी एकादशी ग्यारस है। जिसे हम प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास काल समाप्त हो जाता है और मंगलकार्य शुरू किए जाते हैं, क्योंकि ये माना जाता है कि चातुर्मास में कोई भी मंगलकार्य करना वर्जित होता है। तो आइए जानते हैं विस्तार से इस दिन और इसके मुहूर्त के बारे में।

देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए

देवउठनी एकादशी मुहूर्त
06:47:17 से 08:55:00 तक 20th, नवंबर को
अवधि
2 घंटे 7 मिनट


देवउठनी ग्यारस दीपावली के बाद आती है। मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।

हिन्दू शास्त्रों अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 महीने शयन करने के बाद जगते हैं। इसीलिए ही भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है और देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य दुबारा शुरू होते है। मांगलिक कार्य की शुरुआत होने के साथ ही इसी दिन सबसे पहले तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।


देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

देवउठनी ग्यारस यानी प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनको जगाने की प्रार्थना की जाती है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
  • इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
  • घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
  • एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए। 
  • इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।
  • रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास

तुलसी विवाह का आयोजन

देवउठनी एकादशी के दिन देशभर में तुलसी विवाह का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। जिसकी प्रक्रिया के लिए तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की शादी अन्य सामान्य विवाह की तरह पुरे विधि-विधान के साथ की जाती है। तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए माना जाता है कि देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का धरती पर आह्वान कराना। कई ज्योतिषी ये सलाह देते है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

आप सभी को एस्ट्रोसेज की ओर से देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह की ढेरों शुभकामनाएँ।

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