गोवर्धन पूजा को करें मुहूर्त अनुसार, घर में होगी खुशियों की बरसात

जानें गोवर्धन पर्व 2018 की पूजा का शुभ समय और साथ ही पढ़ें गोवर्धन पूजा के नियम व विधि। इसके अलावा इस दिन की जाने वाली गोवर्धन परिक्रमा का धार्मिक महत्व।
दीपावली महापर्व का चौथा पर्व गोवर्धन पूजा है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाने वाला यह पर्व कृषि कार्य और पशुपालन को समर्पित है। यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर अधिक उत्साह और उल्लास देखने को मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा की शुरुआत करके कृषि और पशुपालन को महत्व देने का संदेश दिया था। इस दिन गाय, बैल समेत अन्य कृषि योग्य पशुओं की पूजा की जाती है। गोवर्धन पर्व यह संदेश भी देता है कि गाय का हमारी संस्कृति में विशेष महत्त्व है। गोवर्धन पूजा का पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश में विशेषकर मथुरा, वृंदावन, गोकुल आदि जगहों पर इस पर्व को बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। 

गोवर्धन पूजा, 8 नवंबर 2018

गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त
06:37:54 से 08:48:38 तक
गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त
15:20:50 से 17:31:34 तक
सूचना: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर गोवर्धन पूजा का मुहूर्त


गोवर्धन पूजा

वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का भी विधान है। हमारा जीवन प्रकृति द्वारा प्रदान संसाधनों जैसे - फसल, वर्षा और पशुधन आदि पर निर्भर है और इसके लिए हमें प्रकृति और ईश्वर का सम्मान व धन्यवाद करना चाहिए। गोवर्धन पूजा के जरिए हम समस्त प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।
  • इस दिन गोबर से घर के आंगन में गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है। बृज क्षेत्र (मथुरा, वृंदावन, बरसाना आदि) में गोवर्धन के साथ-साथ गाय-बछड़े, गोप-गोपियाँ और ग्वाले आदि के प्रतीक भी बनाये जाते हैं। 
  • गोबर से बनी गोवर्धन की आकृति को गुलाल, रंग, मोर पंख, पुष्प और पत्तियों आदि से सजाया जाता है। 
  • सूर्यास्त के बाद रोली, पुष्प, धूप-दीप आदि से गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें दूध, दही व पकवान का भोग लगाना चाहिए।
  • पूजन व नैवेद्य अर्पित करने के बाद गोवर्धन की परिक्रमा करनी चाहिए। 


गोवर्धन परिक्रमा

इस पर्व के अवसर पर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है। यही वजह है कि हर वर्ष इस दिन देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु गोवर्धन परिक्रमा के लिए तीर्थ स्थल गोवर्धन पहुंचते हैं, जो कि उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है। गोवर्धन परिक्रमा 21 किलोमीटर की होती है और हर व्यक्ति अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार इस परिक्रमा को करते हैं। कोई पैदल या कोई वाहन से भी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है। परिक्रमा संपन्न होने के बाद गोवर्धन पर्वत पर बने गिरिराज मंदिर में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं।

अन्नकूट उत्सव

गोवर्धन पूजा के दिन पूर्वाह्न यानि दोपहर 12 बजे से पहले अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। अन्नकूट का अर्थ है ‘अन्न का ढेर’। अन्नकूट के माध्यम से खरीफ की फसल से उत्पन्न अन्न आदि से बने पकवान का भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया जाता है और इसके बाद ही खरीफ की फसलों को उपयोग में लाया जाता है। 

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया था और उनके इस अहंकार के नाश के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची थी। विष्णु पुराण में वर्णित कथा के अनुसार गोकुल वासी अच्छी वर्षा और फसल के लिए हर्षोल्लास के साथ इंद्र देव की पूजा करते थे। लेकिन एक समय बाल कृष्ण ने लोगों से कहा कि, अच्छी वर्षा और गायों के चारे के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। कृष्ण की इस बात से सहमत होकर गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। इस बात से देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। बारिश से गोकुल वासियों की रक्षा करने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। इंद्र को जब पता चला कि भगवान श्री कृष्ण स्वयं गोकुल वासियों की रक्षा कर रहे हैं, तो उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना कर उनकी वंदना की। इस पौराणिक कथा के बाद से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।


एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को गोवर्धन पूजा की शुभकामनाएँ!

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