पढ़ें कार्तिक पूर्णिमा पर आखिर क्या है पवित्र नदी में स्नान करने और दान करने का महत्व। जानें कार्तिक पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि और सही मुहूर्त !
कल यानि शुक्रवार, 23 नवंबर 2018 को कार्तिक पूर्णिमा है। जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आती है इसलिए भी इस पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। यदि इस दिन कृतिका नक्षत्र होती है तो इसे ‘महाकार्तिकी’ कहा जाता है। वहीं ये भी माना जाता है कि भरणी नक्षत्र होने पर इस पूर्णिमा का विशेष फल प्राप्त होता है। इसके साथ ही रोहिणी नक्षत्र की वजह से इसका महत्व और बढ़ जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए | |
नवंबर 22, 2018 को
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12:55:50 से पूर्णिमा आरम्भ
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नवंबर 23, 2018 को
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11:11:15 पर पूर्णिमा समाप्त
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हिन्दू मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर संध्या के समय भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। ऐसे में इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान करने पर उसका फल दस यज्ञों के समान प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा की महत्वता को देखते हुए ही इसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने महापुनीत पर्व बताया है। कई जगह इसे देव दीपावली भी कहा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा देशभर की सभी पवित्र पूर्णमासियों में से एक होती है। इस विशेष दिन किये जाने वाले सभी दान-पुण्य कार्य बेहद फलदायी साबित होते हैं। कहा जाता है कि यदि इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चंद्रमा और विशाखा नक्षत्र पर सूर्य हो तो ऐसे में पद्मक योग का निर्माण होता है, जो कि बेहद दुर्लभ योग होता है। इसके साथ ही इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो, यह महापूर्णिमा कहलाती है। इस दिन संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट समाप्त हो हो जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत और धार्मिक कर्म
मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और ईश्वर की उपासना करने का विशेष महत्व है। इस दिन किये जाने वाले सभी धार्मिक कर्मकांड कुछ इस प्रकार हैं-
● पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें।
● इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुईया और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन अवश्य करना चाहिए।
● कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके बैल का दान करने से शिव पद प्राप्त होता है।
● गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है।
● इस भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है।
● कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।
● कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वाले व्रती को किसी जरुरतमंद को भोजन और हवन अवश्य कराना चाहिए।
● इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान का समापन करके राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार पुरातन काल में एक समय त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। उसकी उसी तपस्या के प्रभाव ने सभी जड़-चेतन, जीव और देवताओं को भयभीत कर दिया था। ऐसे में सभी देवताओं ने उसका तप भंग करने के लिए योजना बनाते हुए अप्सराएँ भेजने का फैसला किया लेकिन उनकी इस योजना को सफलता नहीं मिल सकी। जिसके बाद त्रिपुर राक्षस के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रकट हुए और उन्होंने राक्षस से वरदान मांगने को कहा।
त्रिपुर ने वरदान मांगा कि, ‘मैं न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्यों के हाथों से’। ब्रह्मा जी से वरदान मिलने पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। इसके बाद भगवान शंकर और त्रिपुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में शिव जी ने ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु की मदद से त्रिपुर का संहार इसी दिन किया।
हमारी ओर से आप सभी को कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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