पढ़ें छठ पूजा के दिन संध्या अर्घ और उषा अर्घ का क्यों होता है ख़ास महत्व और साथ ही जानें पूजा की सम्पूर्ण विधि और सही मुहूर्त।
छठ पर्व कार्तिक माह की शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला उत्तर भारत के कुछ राज्यों जैसे की बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का मुख्य लोकपर्व है। इन राज्यों के प्रमुख पर्वों में से छठ पूजा को महापर्व के रूप में जाना जाता है जिसे बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों में आस्था के इस महापर्व को उत्तर भारत के राज्यों के अलावा देश के अन्य भागों में भी मनाया जाने लगा है। इस दिन विशेष रूप से छठ माता और सूर्य देव की पूजा अर्चना की जाती है। छठ पूजा वैसे तो चार दिनों का त्यौहार है लेकिन इस पर्व में सबसे ज्यादा महत्ता तीसरे और चौथे दिन की होती है जिसे क्रमशः संध्या अर्घ और उषा अर्घ के नाम से जाना जाता है।
छठ पूजा मुहूर्त 2018 | |
13 नवंबर (संध्या अर्घ ) सूर्यास्त का समय : 17:28:46
14 नवंबर (उषा अर्घ ) सूर्योदय का समय : 06:42 :31
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सूचना: उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है।
इस प्रकार से करें छठी मैया और सूर्य देव की पूजा अर्चना
छठ पूजा के दिन विशेष रूप से छठी मैया की पूजा अर्चना की जाती है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ पूजा विशेष रूप से महिलाएं अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए करती है। ऐसा माना जाता है की छठी मैया जिन्हें षष्ठी माता भी कहते हैं खासतौर से बच्चों को लम्बी उम्र प्रदान करने वाली देवी के रूप में जानी जाती है। इन्हें माता कात्यायनी का रूप माना गया है जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को होती है। मुख्य रूप से बिहार और झारखण्ड में षष्टी माता को ही स्थानीय भाषा में छठी मैया कहा गया है।
चार दिनों का महापर्व
- नहाय खाये ( पहला दिन )
छठ पूजा की शुरुवात विशेष रूप से इसी दिन से की जाती है। इस दिन छठ पूजा के व्रत की शुरुवात करने वाली महिलाएं खासतौर से स्नान करके घर की साफ़ सफाई करती हैं और इस दिन केवल शाकाहारी भोजन ग्रहण किया जाता है।
- खरना (दूसरा दिन)
खरना को छठ पूजा के दूसरे दिन के रूप में जाना जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के वक़्त विशेष रूप से गुड़ की खीर, फल और घी लगी हुई रोटियां प्रसाद के रूप में चढ़ाने के बाद खुद भी उसका सेवन करती हैं। यही गुड़ की खीर, फल और घी लगी हुई रोटियां परिवार के अन्य सदस्यों को प्रसाद स्वरुप बांटी।
- संध्या अर्घ ( तीसरा दिन )
संध्या अर्घ को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। कार्तिक शुल्क की षष्टी को संध्या अर्घ के दौरान सूर्य देव को दूध और जल का अर्घ अर्पित किया जाता है। इस दिन सभी व्रती महिलाएं प्रसाद स्वरुप बांस की बनी सूप और टोकरियों में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फल लेकर अपने परिवार के साथ नदी घाट पर पहुँचती है। संध्या अर्घ के दिन डूबते सूर्य को अर्घ दिया जाता है और छठी माता का लोक गीत एवं पौरणिक कथाएं भी सुनी जाती है।
- उषा अर्घ ( चौथा दिन )
उषा अर्घ या भोर का अर्घ विशेष रूप से छठ पर्व की समाप्ति का दिन होता है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले ही व्रती अपने-अपने परिवार के साथ किसी नदी या घाट पर पहुँचकर उगते सूर्य को अर्घ देते है। व्रती महिलाएं विशेष रूप से अर्घ के बाद छठी माता से अपनी संतानों के लिए लंबी आयु और परिवार की सुख शांति की कामना करती हैं। पूजा के बाद सभी व्रती महिलाएं कच्चे दूध का शरबत और प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलती हैं।
इस विधि से संपन्न करें छठ पूजा
- पूजा से पहले ये सामग्रियां विशेष रूप से एकत्रित कर लें !
- थाली, दूध, ग्लास, तीन बांस की टोकरी, तीन बांस से बने सूप या पीतल के सूप।
- नारियल, गन्ना, शकरकंद, चकोतरा या बड़ा निम्बू, सुथनी, लाल सिन्दूर, चावल, कच्ची हल्दी, सिंघारा आदि।
- कर्पूर, चन्दन, दिया, शहद, पान , सुपारी, कैराव, नाशपाती।
- प्रसाद के लिए मालपुआ, खीर पूरी, ठेकुआ, सूजी का हलवा और चावल के लड्डू रखें।
- सबसे पहले बांस और पीतल की टोकरियों में उपरोक्त सामनों को रखें।
- इसके बाद हर सूप में एक दिया और अगरबत्ती जरूर जलाएं।
- फिर सूर्य को अर्घ देने के लिए नदी या तालाब में उतरें।
छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा को धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था के महापर्व के रूप में जाना जाता है। इस पर्व में विशेष रूप से सूर्य देव को अर्घ अर्पण करने का ख़ास महत्व है। हिन्दू धर्मशास्त्र में सूर्य देव को विशेष महत्व दिया जाता है क्योंकि सूर्य ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें सामने से लोग देख सकते हैं। सूर्य की पवित्र किरणों में बहुत से रोगों को हरने की शक्ति होती है, इसके अलावा सूर्य के प्रकाश से मनुष्य अरोग्य और आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनता है। छठ के पावन पर्व पर लोग छठी मैया और सूर्य देव की पूजा अर्चना विशेष रूप से संतान सुख प्राप्ति और अपने बच्चों की लम्बी आयु के लिए करते हैं। ऐसा माना जाता है की छठ पर्व पर सच्चे मन से मांगी गयी सभी मनोकामनाएं निश्चित रूप से पूरी होती है।
ज्योतिषशास्त्र और खगोलीय दृष्टिकोण से छठ पर्व का महत्व
देखा जाएँ तो ज्योतिषशास्त्र और खगोलीय दृष्टिकोण से भी छठ पर्व की विशेष महत्ता होती है क्योंकि शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है और इसे एक विशेष खगोलीय अवसर के रूप में माना जाता है। इस अवधि में सूर्य की किरणें पृथ्वी पर ज्यादा मात्रा में जमा हो जाती है जिससे मनुष्यों पर इन किरणों का असर ज्यादा हानिकारक पड़ता है। इससे बचाव के लिए छठ पर्व के अवसर पर सूर्य देव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें अर्घ दिया जाता है।
हम उम्मीद करते हैं की छठ पूजा के पवन अवसर पर आधारित हमारा ये लेख आपको पसंद आये। सभी पाठकों को छठ महापर्व की शुभकामनाएं !
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