पंडित हनुमान मिश्रा
वृश्चिक लग्न और वृश्चिक राशि में जन्में राजनाथ सिंह का जन्मकालीन नक्षत्र ज्येष्ठा है। यद्यपि यह एक मूल संज्ञक नक्षत्र है लेकिन इस नक्षत्र का स्वामी बुध है जो एक अच्छा वक्ता और शिक्षक बनाता है यही कारण है कि राजनाथ सिंह अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने से पहले कॉलेज के प्रोफेसर रह चुके हैं। जी हां राजनाथ सिंह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिकी विषय में प्रोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की उसके बाद 1971 में केबी डिग्री कॉलेज में वह प्रोफेसर नियुक्त किए गए। प्रोफेसर नियुक्त किए जाते समय इन पर शुक्र में राहु की दशा का प्रभाव था। शुक्र इनकी कुण्डली में सप्तमेश और द्वादशेश होकर तीसरे भाव में बुध और बृहस्पति के साथ स्थित है। सप्तम भाव दैनिक रोजगार का है अत: अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण सप्तमेश की दशा में दैनिक रोजगार की प्राप्ति होना स्वाभाविक है। ऊपर से सप्तमेश शुक्र पर दशमेश सूर्य का प्रभाव है ऐसे में रोजगार की प्राप्ति तो होनी ही थी। क्योंकि शुक्र की दशा तो बीस साल की होती है, ऐसे में सवाल उठता है कि इसी समय इनको रोजगार क्यों मिला और शिक्षण कार्य ही क्यों मिला। इसका जवाब है कि उस समय शुक्र में राहु की दशा है। राहु पंचम भाव में बृहस्पति की राशि और बुध के नक्षत्र में स्थित है। पंचम भाव से भी शिक्षा और शिक्षण कार्य का विचार किया जाता है। बुध और बृहस्पति शिक्षा और शिक्षण कार्य के कारक माने जाते हैं अत: इस दशा में शिक्षा जगत और शिक्षण कार्य से जुडना स्वाभाविक था। बुध इनकी कुण्डली का लाभेश है, बिना लाभ भाव से सम्बंध बने व्यक्ति को पहली कमाई का मौका नहीं मिलता। अत: शुक्र की महादशा में राहु की अंतरदशा ने इन्हें रोजगार और वो भी शिक्षण कार्य दिलाया।
बीजेपी के मातृ संगठन के रूप में मशहूर आरएसएस से राजनाथ की करीबी जगजाहिर है। आरएसएस के साथ उनके बेहतर रिश्ते का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण के बाद संघ ने राजनाथ सिंह को ही पार्टी के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी सौंपी थी। राजनाथ सिंह 1964 में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड गए थे। उस समय इन पर शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतरदशा का ही प्रभाव था। शुक्र एक सौम्य ग्रह है। वह धर्म स्थान को देख रहा है और बुध-गुरु जैसे सौम्य ग्रहों के साथ बैठा है। हां ये बात और है कि वह सूर्य के साथ है अत: राजसी गुण या अनुशासन वाले संगठन के साथ जुडना स्वाभाविक है। यहां एक बात और साबित हो जाती है कि जिस आरएसएस पर आतंकी होने या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगते हैं वे निराधार हैं क्योंकि अगर ऐसा होता तो राजनाथ सिंह किसी सौम्य ग्रह नहीं बल्कि पापग्रह की महादशा में आरएसएस से जुडते।
इमरजेंसी के दौरान कई महीनों तक जेल में बंद रहने वाले राजनाथ सिंह को 1975 में जन संघ ने मिर्जापुर जिले का अध्यक्ष बनाया। इस समय दशाएं थीं शुक्र में शनि की। शनि इनके दशम भाव में है जो पद प्रतिष्ठा, पब्लिक सपोर्ट और समाज सेवा का संकेत है। यही कारण है कि इसी दशा में इन्हें 1977 में इन्हें विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया।
यूपी में शिक्षा मंत्री के तौर पर किए गए कामों को लेकर आज भी राजनाथ सिंह का फैसला काबिल-ए-तारीफ है। 1991 में उन्होंने बतौर शिक्षा मंत्री एंटी-कॉपिंग एक्ट लागू करवाया था। साथ ही वैदिक गणित को तब सिलेबस में भी शामिल करवाया था। उस समय इन पर चंद्रमा में बृहस्पति की दशा का प्रभाव था। बहस्पति वास्तविक ज्ञान और शिक्षा का कारक ग्रह है। अत: इस दशा में इन्होंने प्रसंशनीय कार्य किया।
अपने सभी भाषण हिंदी में देने वाले राजनाथ सिंह 20 अक्टूबर 2000 में राज्य के मुख्यमंत्री बने। उस समय दशाएं थीं मंगल में शनि की। मंगल इनका लग्नेश है और लाभ भाव में बैठा है। जबकि शनि दशम भाव में है जहां से हम कर्म और राज सत्ता आदि का विचार करते हैं। अत: दशा में इन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन शनि और मंगल की आपसी युति या दशा में युति बहुत अच्छी नहीं कही गई है। ऊपर से शनि और मंगल एक दूसरे से द्विद्वादश हैं। यही कारण रहा कि इनका मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल महज 2 साल से भी कम समय के लिए रहा।
दिसम्बर 2005 में जब इन्हें पहली बार भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया उस समय इन पर राहू की महादशा और राहू की अंतरदशा का प्रभाव था। अक्टूबर 2007 से इन पर राहू की महादशा में बृहस्पति की अंतरदशा का प्रभाव शुरू हुआ। जैसा कि ज्योतिष के जानकार जानते हैं कि राहू और बृहस्पति की युति या दशा युति बहुत अच्छे परिणाम नहीं दे पाती। यही कारण है कि इस दशा में इनकी ऊर्जा और उत्साह में कमी देखने को मिली और इनकी अध्यक्षता में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। इसी बीच इनको अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष छोडना पडा। फरवरी 2010 से इन पर राहू की महादशा में शनि की अंतरदशा का प्रभाव शुरू हुआ। दोनो ही पाप ग्रह है और एक दूसरे से षडाष्टक बैठे हैं। अत: इस दशा में ये कुछ अच्छा करना चाह कर भी अच्छा नहीं कर पाए। साल २०१३ के पहले ही दिन से इन पर राहू की महादशा में बुध की अंतरदशा का प्रभाव शुरू हुआ है। जो इनके लिए सकारात्मक परिणामों का पिटारा भर कर लाया है। अत: इस दशा ने आते ही इनकों एक अच्छी सौगात दी और खोया हुआ पद पुन: दिला दिया।
अपने कामों को बखूबी और अंजाम तक पहुंचाने वाले राजनाथ से बीजेपी उम्मीद यह उम्मीद कर रही है कि वह 2014 में पार्टी के चुनाव चिन्ह कमल को होर्डिंग बोर्ड से निकालकर आम जनता के दिलों में भी खिला पाएं। बुध की अंतरदशा इस काम में उनकी मदद जरूर करेगी और उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी जरूर मजबूत होगी। यह दशा इन्हें प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में भी ला सकती है।
वृश्चिक लग्न और वृश्चिक राशि में जन्में राजनाथ सिंह का जन्मकालीन नक्षत्र ज्येष्ठा है। यद्यपि यह एक मूल संज्ञक नक्षत्र है लेकिन इस नक्षत्र का स्वामी बुध है जो एक अच्छा वक्ता और शिक्षक बनाता है यही कारण है कि राजनाथ सिंह अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने से पहले कॉलेज के प्रोफेसर रह चुके हैं। जी हां राजनाथ सिंह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिकी विषय में प्रोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की उसके बाद 1971 में केबी डिग्री कॉलेज में वह प्रोफेसर नियुक्त किए गए। प्रोफेसर नियुक्त किए जाते समय इन पर शुक्र में राहु की दशा का प्रभाव था। शुक्र इनकी कुण्डली में सप्तमेश और द्वादशेश होकर तीसरे भाव में बुध और बृहस्पति के साथ स्थित है। सप्तम भाव दैनिक रोजगार का है अत: अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण सप्तमेश की दशा में दैनिक रोजगार की प्राप्ति होना स्वाभाविक है। ऊपर से सप्तमेश शुक्र पर दशमेश सूर्य का प्रभाव है ऐसे में रोजगार की प्राप्ति तो होनी ही थी। क्योंकि शुक्र की दशा तो बीस साल की होती है, ऐसे में सवाल उठता है कि इसी समय इनको रोजगार क्यों मिला और शिक्षण कार्य ही क्यों मिला। इसका जवाब है कि उस समय शुक्र में राहु की दशा है। राहु पंचम भाव में बृहस्पति की राशि और बुध के नक्षत्र में स्थित है। पंचम भाव से भी शिक्षा और शिक्षण कार्य का विचार किया जाता है। बुध और बृहस्पति शिक्षा और शिक्षण कार्य के कारक माने जाते हैं अत: इस दशा में शिक्षा जगत और शिक्षण कार्य से जुडना स्वाभाविक था। बुध इनकी कुण्डली का लाभेश है, बिना लाभ भाव से सम्बंध बने व्यक्ति को पहली कमाई का मौका नहीं मिलता। अत: शुक्र की महादशा में राहु की अंतरदशा ने इन्हें रोजगार और वो भी शिक्षण कार्य दिलाया।
बीजेपी के मातृ संगठन के रूप में मशहूर आरएसएस से राजनाथ की करीबी जगजाहिर है। आरएसएस के साथ उनके बेहतर रिश्ते का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण के बाद संघ ने राजनाथ सिंह को ही पार्टी के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी सौंपी थी। राजनाथ सिंह 1964 में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड गए थे। उस समय इन पर शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतरदशा का ही प्रभाव था। शुक्र एक सौम्य ग्रह है। वह धर्म स्थान को देख रहा है और बुध-गुरु जैसे सौम्य ग्रहों के साथ बैठा है। हां ये बात और है कि वह सूर्य के साथ है अत: राजसी गुण या अनुशासन वाले संगठन के साथ जुडना स्वाभाविक है। यहां एक बात और साबित हो जाती है कि जिस आरएसएस पर आतंकी होने या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगते हैं वे निराधार हैं क्योंकि अगर ऐसा होता तो राजनाथ सिंह किसी सौम्य ग्रह नहीं बल्कि पापग्रह की महादशा में आरएसएस से जुडते।
इमरजेंसी के दौरान कई महीनों तक जेल में बंद रहने वाले राजनाथ सिंह को 1975 में जन संघ ने मिर्जापुर जिले का अध्यक्ष बनाया। इस समय दशाएं थीं शुक्र में शनि की। शनि इनके दशम भाव में है जो पद प्रतिष्ठा, पब्लिक सपोर्ट और समाज सेवा का संकेत है। यही कारण है कि इसी दशा में इन्हें 1977 में इन्हें विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया।
यूपी में शिक्षा मंत्री के तौर पर किए गए कामों को लेकर आज भी राजनाथ सिंह का फैसला काबिल-ए-तारीफ है। 1991 में उन्होंने बतौर शिक्षा मंत्री एंटी-कॉपिंग एक्ट लागू करवाया था। साथ ही वैदिक गणित को तब सिलेबस में भी शामिल करवाया था। उस समय इन पर चंद्रमा में बृहस्पति की दशा का प्रभाव था। बहस्पति वास्तविक ज्ञान और शिक्षा का कारक ग्रह है। अत: इस दशा में इन्होंने प्रसंशनीय कार्य किया।
अपने सभी भाषण हिंदी में देने वाले राजनाथ सिंह 20 अक्टूबर 2000 में राज्य के मुख्यमंत्री बने। उस समय दशाएं थीं मंगल में शनि की। मंगल इनका लग्नेश है और लाभ भाव में बैठा है। जबकि शनि दशम भाव में है जहां से हम कर्म और राज सत्ता आदि का विचार करते हैं। अत: दशा में इन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन शनि और मंगल की आपसी युति या दशा में युति बहुत अच्छी नहीं कही गई है। ऊपर से शनि और मंगल एक दूसरे से द्विद्वादश हैं। यही कारण रहा कि इनका मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल महज 2 साल से भी कम समय के लिए रहा।
दिसम्बर 2005 में जब इन्हें पहली बार भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया उस समय इन पर राहू की महादशा और राहू की अंतरदशा का प्रभाव था। अक्टूबर 2007 से इन पर राहू की महादशा में बृहस्पति की अंतरदशा का प्रभाव शुरू हुआ। जैसा कि ज्योतिष के जानकार जानते हैं कि राहू और बृहस्पति की युति या दशा युति बहुत अच्छे परिणाम नहीं दे पाती। यही कारण है कि इस दशा में इनकी ऊर्जा और उत्साह में कमी देखने को मिली और इनकी अध्यक्षता में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। इसी बीच इनको अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष छोडना पडा। फरवरी 2010 से इन पर राहू की महादशा में शनि की अंतरदशा का प्रभाव शुरू हुआ। दोनो ही पाप ग्रह है और एक दूसरे से षडाष्टक बैठे हैं। अत: इस दशा में ये कुछ अच्छा करना चाह कर भी अच्छा नहीं कर पाए। साल २०१३ के पहले ही दिन से इन पर राहू की महादशा में बुध की अंतरदशा का प्रभाव शुरू हुआ है। जो इनके लिए सकारात्मक परिणामों का पिटारा भर कर लाया है। अत: इस दशा ने आते ही इनकों एक अच्छी सौगात दी और खोया हुआ पद पुन: दिला दिया।
अपने कामों को बखूबी और अंजाम तक पहुंचाने वाले राजनाथ से बीजेपी उम्मीद यह उम्मीद कर रही है कि वह 2014 में पार्टी के चुनाव चिन्ह कमल को होर्डिंग बोर्ड से निकालकर आम जनता के दिलों में भी खिला पाएं। बुध की अंतरदशा इस काम में उनकी मदद जरूर करेगी और उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी जरूर मजबूत होगी। यह दशा इन्हें प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में भी ला सकती है।
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