किशोर घिल्दियाल
हमारी त्वचा की दो परते होती हैं बाहरी परत व भीतरी परत |भीतरी परत के नीचे के भाग मे मेलानोफोर नामक कोशिका मे एक तत्व “मेलानिन” होता हैं जिसका मुख्य कार्य हमारी त्वचा को प्राकतिक वर्ण अथवा रंग प्रदान करना होता हैं | जब यह तत्व किसी भी प्रकार से विकृत हो जाता हैं तब “स्वित्र” यानि “ल्यूकोडर्मा” नामक रोग हो जाता हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा मे “सफ़ेद दाग” अथवा “फुलेरी” भी कहाँ जाता हैं|
मेलानिन नाम के तत्व त्वचा के भीतर नीचे की सतह मे उत्पन्न होकर ऊपर की ओर आकर त्वचा को प्राकतिक रंग प्रदान करते हैं | त्वचा के जिन भागो मे इस तत्वकी कमी या अभाव किसी भी वजह से होता हैं तो वह भाग बाहरी त्वचा मे सफ़ेद दाग के रूप मे दिखाई देने लगता हैं | आयुर्वेद मे इस रोग को अनुचित खान पान के कारण होने वाले रोगो की श्रेणी मे रखा गया हैं जिसके अनुसार कफ की अधिकता के कारण त्वचा की छोटी छोटी शिराओ मे अवरोध होने से मेलानिन तत्व उत्पन्न नहीं हो पाता हैं और यह रोग जन्म ले लता हैं |
ज्योतिषीय दृस्टी से देखने पर हमें इस रोग को देखने हेतु निम्न भाव व ग्रहो का अध्ययन करना चाहिए |
भाव-लग्न,षष्ठ व अष्टम भाव
ग्रह-सूर्य,बुध,मंगल,शुक्र व लग्नेश
लग्न भाव हमारे शरीर को दर्शाता हैं हमारे शरीर मे होने वाले किसी भी प्रकार के विकार व बदलाव को हम लग्न पर पड़ने वाले प्रभाव से ही देखते हैं | इसी लग्न से हम सामान्य भौतिक स्वास्थ्य को देखते हैं |
षष्ठ भाव मुख्यत;किसी भी प्रकार के रोगो हेतु इस भाव को अवश्य देखा जाता हैं इसी भाव से बीमारी की अवधि का भी पता चलता हैं, बीमारी छोटी होगी या बड़ी यह भी इसी भाव द्वारा जाना जाता हैं |
अष्टम भाव यह बीमारी के दीर्घकालीन प्रभाव को बताता हैं इसी भाव से बड़ी बीमारी का भी पता चलता हैं |
सूर्य ग्रह- सूर्य को लग्न का व आरोग्य का कारक माना जाता हैं इसी सूर्य से हम व्यक्ति विशेष का तेज व आत्मविश्वास भी देखते हैं इस बीमारी के होने से व्यक्ति आत्महीनता महसूस करने के कारण आत्मविश्वास खोने लगता हैं | सूर्य का किसी भी रूप मे पाप प्रभाव मे होना या अशुभ होना इस बीमारी का एक कारण हो सकता हैं |
बुध ग्रह- यह ग्रह हमारी बाहरी अथवा ऊपरी त्वचा का कारक माना जाता हैं इसी ऊपरी त्वचा पर इस बीमारी के लक्षण अथवा सफ़ेद धब्बा आने पर बीमारी का पता चलता हैं | किसी भी प्रकार के बाहरी प्रभाव का पता भी इसी त्वचा कारक से चलता हैं इसलिए इस बीमारी मे इसका अशुभ होना अवश्यंभावी हैं |
लग्नेश - शरीर का प्रतिनिधित्व करता हैं इस ग्रह का किसी भी रूप से पीड़ित होना कोई भी बीमारी होने के लिए आवशयक हैं जब तक लग्नेश पीड़ित नहीं होगा शरीर मे बीमारी नहीं हो सकती |
मंगल – शरीर मे उन तत्वो का निर्माण करने मे सहायक होता हैं जो त्वचा को रंग प्रदान करते हैं | यही मंगल त्वचा मे किसी भी प्रकार के दाग-धब्बो का कारक भी होता हैं | खुजली खारिश किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी व संक्रमण को इसी मंगल गृह से देखा जाता हैं अत; इसका भी किसी ना किसी पाप या अशुभ प्रभाव मे होना ज़रूरी हैं |
शुक्र ग्रह- यह ग्रह त्वचा की सुंदरता,चमक व निखार का कारक हैं जिस जातक का शुक्र जितना अच्छा होता हैं उसकी त्वचा मे उतनी ही चमक होती हैं इस बीमारी के कारण त्वचा की चमक नहीं रहती जिससे यह ज्ञात होता हैं की शुक्र ग्रह को भी अशुभ या पाप प्रभावित होना चाहिए |
आइए अब इस बीमारी (ल्यूकोडर्मा) को कुछ जन्म पत्रिकाओ मे देखने का प्रयास करते हैं |
1)14-6-1983 11:40 अमरावती,सिंह लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर मंगल व लग्नेश सूर्य,त्वचाकारक बुध तथा मंगल पर गुरु वक्री(अष्टमेश)का प्रभाव हैं |शुक्र द्वादशेश चन्द्र संग द्वादश भाव मे शनि द्वारा द्र्स्ट हैं | इस प्रकार सभी अवयव प्रभावित होने से यह जातिका ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं और इसका इलाज़ करा रही हैं |
2)19-4-1975 19:30 दिल्ली, तुला लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर राहू(नक्षत्र) का प्रभाव हैं लग्नेश शुक्र स्वयं अष्टम भाव मे राहू केतू अक्ष व मंगल(शत्रु राशि) द्वारा द्र्स्ट हैं वही त्वचाकारक बुध अस्तावस्था मे केतू के नक्षत्र मे हैं | सूर्य भी ऊंच का होकर केतू के नक्षत्र मे ही हैं इस प्रकार सभी अवयव प्रभावित होने से जातिका इस रोग से पीड़ित हैं |
3) 2-12-1987 2:30 (हरियाणा) कन्या लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर राहू केतू प्रभाव हैं लग्नेश बुध अस्तावस्था मे सूर्य संग शनि से पीड़ित हैं मंगल अस्टमेश(राहू के स्वाति नक्षत्र मे हैं) तथा शुक्र (केतू के मूल नक्षत्र मे) होने से पाप प्रभाव मे हैं | इस प्रकार इस पत्रिका मे भी सभी अवयव प्रभावित होने से यह जातिका भी इस रोग से पीड़ित हैं |
4) 6-9-1936 13:40 गाज़ियाबाद वृश्चिक लग्न की यह कुंडली एक प्रसिद्ध वकील की हैं | पत्रिका मे लग्न पर शनि की दृस्टी हैं लग्नेश मंगल नीच राशि के हैं सूर्य पर शनि का प्रभाव हैं शुक्र नीच राशि मे हैं तथा त्वचाकारक बुध चन्द्र के नक्षत्र मे हैं जो स्वयं षष्ठ भाव मे शनि द्वारा द्र्स्ट हैं | इस प्रकार सभी अवयव के प्रभावित होने से जातक 1985 से इस रोग से पीड़ित रहे हैं |
5) 4-6-1968 19:57 दिल्ली धनु लग्न की इस कुंडली मे लग्न व लग्नेश दोनों केतू के नक्षत्र मे हैं सूर्य,शुक्र व मंगल षष्ठ भाव मे शनि द्वारा द्र्स्ट हैं व त्वचाकारक बुध राहू के नक्षत्र मे हैं | इस जातिका के समस्त चेहरे व शरीर मे यह बीमारी हैं |
6) 28-3-1954 6:04 (तमिलनाडू) मीन लग्न की इस कुंडली मे लग्न व लग्नेश दोनों पर मंगल का प्रभाव हैं (लग्नेश गुरु मंगल के नक्षत्र मे हैं)मंगल स्वयं राहू केतू व शनि के प्रभाव मे हैं सूर्य शुक्र पर भी इसी पापी मंगल का प्रभाव हैं वही त्वचा कारक बुध द्वादश भाव मे राहू के नक्षत्र मे स्थित हैं सभी अवयव प्रभावित होने से जातक को यह ल्यूकोडर्मा रोग हुआ |
7) 2-9-1943 4:20 दिल्ली कर्क लग्न की इस कुंडली मे लग्न राहू केतू प्रभाव मे तथा लग्नेश द्वादशेश बुध संग पीड़ित हैं बुध स्वयं चन्द्र नक्षत्र मे हैं सूर्य शुक्र पर शनि व मंगल की दृस्टी हैं मंगल पर शनि की दृस्टी हैं शनि अस्टमेश भी हैं | इन सभी कारणो से जातक काफी समय से ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं |
8) 21-1-1993 9:01 गाज़ियाबाद कुम्भ लग्न की इस कुंडली मे लग्न राहू के नक्षत्र मे तथा लग्नेश शनि सूर्य संग द्वादश भाव मे मंगल के नक्षत्र मे हैं शुक्र मृतावस्था मे हैं बुध अस्त व मृतावस्था मे,तथा मंगल स्वयं नीचभिलाषी होकर वक्री अवस्था मे हैं यह जातक सात साल की उम्र से इस बीमारी से पीड़ित हैं |
9) 15-2-1977 00:00 सैंट लुइस (अमरीका) तुला लग्न की इस पत्रिका मे लग्न राहू केतू अक्ष मे लग्नेश शुक्र षष्ठ भाव मे हैं | मंगल और बुध पर शनि का प्रभाव हैं,सूर्य शनि राशि मे हैं | सभी अवयवो के प्रभावित होने से जातिका कई साल से इस रोग से पीड़ित हैं तथा इलाज़ करवा रही हैं |
10) 15-10-1987 2:30 वांकानेर (गुजरात) सिंह लग्न के इस जातक की कुंडली मे लग्न केतू नक्षत्र मे शनि द्वारा द्र्स्ट तथा लग्नेश सूर्य राहू केतू अक्ष मे मंगल संग दूसरे भाव मे हैं | शुक्र व बुध स्वाति नामक राहू नक्षत्र मे हैं तथा अष्टमेश गुरु वक्री द्वारा द्र्स्ट हैं | इन्ही सब कारणो से जातक काफी समय से ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं |
11) 2-5-1988 23:25 राजामुन्द्री, धनु लग्न के इस जातक की कुंडली मे लग्न मे शनि वक्र अवस्था मे हैं लग्नेश गुरु अस्त हैं, सूर्य पर मंगल द्वादशेश का प्रभाव हैं, त्वचाकारक बुध षष्ठ भाव मे अस्त अवस्था मे हैं तथा शुक्र पर शनि की पूर्ण दृस्टी हैं |इन सभी कारणो से जातक के शरीर के अधिकतर हिस्से मे सफ़ेद दाग अर्थात ल्यूकोडर्मा हैं |
12) 23-11-1983 14:20 कानपुर,मीन लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर शुक्र (नीच व अस्ट्मेश) तथा मंगल का प्रभाव हैं वही लग्नेश गुरु सूर्य तथा बुध संग राहू-केतू अक्ष मे पीड़ितवस्था मे हैं | मंगल नीच के शुक्र संग हैं |
इन सभी अवयवो के अलावा हमने कही-कही चन्द्र ग्रह को भी प्रभावित पाया संभवत; जिन जातको के चेहरे पर इस बीमारी के दाग थे उनका चन्द्र ग्रह प्रभावित रहा हो (चन्द्र ग्रह हमारे चेहरे को दर्शाता हैं) एक अन्य तथ्य भी जो हमने प्राप्त किया की शुक्र व बुध की दोनों राशियो मे से कोई ना कोई राशि अवश्य ही पाप प्रभाव मे थी |
हमने इन कुंडलियो के अतिरिक्त और भी लगभग ३00 कुंडलियों पर यह सभी अवयव प्रभावित पाये तथा यह पुष्टि की इन्ही कारणो से यह बीमारी होती हैं
हमारी त्वचा की दो परते होती हैं बाहरी परत व भीतरी परत |भीतरी परत के नीचे के भाग मे मेलानोफोर नामक कोशिका मे एक तत्व “मेलानिन” होता हैं जिसका मुख्य कार्य हमारी त्वचा को प्राकतिक वर्ण अथवा रंग प्रदान करना होता हैं | जब यह तत्व किसी भी प्रकार से विकृत हो जाता हैं तब “स्वित्र” यानि “ल्यूकोडर्मा” नामक रोग हो जाता हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा मे “सफ़ेद दाग” अथवा “फुलेरी” भी कहाँ जाता हैं|
मेलानिन नाम के तत्व त्वचा के भीतर नीचे की सतह मे उत्पन्न होकर ऊपर की ओर आकर त्वचा को प्राकतिक रंग प्रदान करते हैं | त्वचा के जिन भागो मे इस तत्वकी कमी या अभाव किसी भी वजह से होता हैं तो वह भाग बाहरी त्वचा मे सफ़ेद दाग के रूप मे दिखाई देने लगता हैं | आयुर्वेद मे इस रोग को अनुचित खान पान के कारण होने वाले रोगो की श्रेणी मे रखा गया हैं जिसके अनुसार कफ की अधिकता के कारण त्वचा की छोटी छोटी शिराओ मे अवरोध होने से मेलानिन तत्व उत्पन्न नहीं हो पाता हैं और यह रोग जन्म ले लता हैं |
ज्योतिषीय दृस्टी से देखने पर हमें इस रोग को देखने हेतु निम्न भाव व ग्रहो का अध्ययन करना चाहिए |
भाव-लग्न,षष्ठ व अष्टम भाव
ग्रह-सूर्य,बुध,मंगल,शुक्र व लग्नेश
लग्न भाव हमारे शरीर को दर्शाता हैं हमारे शरीर मे होने वाले किसी भी प्रकार के विकार व बदलाव को हम लग्न पर पड़ने वाले प्रभाव से ही देखते हैं | इसी लग्न से हम सामान्य भौतिक स्वास्थ्य को देखते हैं |
षष्ठ भाव मुख्यत;किसी भी प्रकार के रोगो हेतु इस भाव को अवश्य देखा जाता हैं इसी भाव से बीमारी की अवधि का भी पता चलता हैं, बीमारी छोटी होगी या बड़ी यह भी इसी भाव द्वारा जाना जाता हैं |
अष्टम भाव यह बीमारी के दीर्घकालीन प्रभाव को बताता हैं इसी भाव से बड़ी बीमारी का भी पता चलता हैं |
सूर्य ग्रह- सूर्य को लग्न का व आरोग्य का कारक माना जाता हैं इसी सूर्य से हम व्यक्ति विशेष का तेज व आत्मविश्वास भी देखते हैं इस बीमारी के होने से व्यक्ति आत्महीनता महसूस करने के कारण आत्मविश्वास खोने लगता हैं | सूर्य का किसी भी रूप मे पाप प्रभाव मे होना या अशुभ होना इस बीमारी का एक कारण हो सकता हैं |
बुध ग्रह- यह ग्रह हमारी बाहरी अथवा ऊपरी त्वचा का कारक माना जाता हैं इसी ऊपरी त्वचा पर इस बीमारी के लक्षण अथवा सफ़ेद धब्बा आने पर बीमारी का पता चलता हैं | किसी भी प्रकार के बाहरी प्रभाव का पता भी इसी त्वचा कारक से चलता हैं इसलिए इस बीमारी मे इसका अशुभ होना अवश्यंभावी हैं |
लग्नेश - शरीर का प्रतिनिधित्व करता हैं इस ग्रह का किसी भी रूप से पीड़ित होना कोई भी बीमारी होने के लिए आवशयक हैं जब तक लग्नेश पीड़ित नहीं होगा शरीर मे बीमारी नहीं हो सकती |
मंगल – शरीर मे उन तत्वो का निर्माण करने मे सहायक होता हैं जो त्वचा को रंग प्रदान करते हैं | यही मंगल त्वचा मे किसी भी प्रकार के दाग-धब्बो का कारक भी होता हैं | खुजली खारिश किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी व संक्रमण को इसी मंगल गृह से देखा जाता हैं अत; इसका भी किसी ना किसी पाप या अशुभ प्रभाव मे होना ज़रूरी हैं |
शुक्र ग्रह- यह ग्रह त्वचा की सुंदरता,चमक व निखार का कारक हैं जिस जातक का शुक्र जितना अच्छा होता हैं उसकी त्वचा मे उतनी ही चमक होती हैं इस बीमारी के कारण त्वचा की चमक नहीं रहती जिससे यह ज्ञात होता हैं की शुक्र ग्रह को भी अशुभ या पाप प्रभावित होना चाहिए |
आइए अब इस बीमारी (ल्यूकोडर्मा) को कुछ जन्म पत्रिकाओ मे देखने का प्रयास करते हैं |
1)14-6-1983 11:40 अमरावती,सिंह लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर मंगल व लग्नेश सूर्य,त्वचाकारक बुध तथा मंगल पर गुरु वक्री(अष्टमेश)का प्रभाव हैं |शुक्र द्वादशेश चन्द्र संग द्वादश भाव मे शनि द्वारा द्र्स्ट हैं | इस प्रकार सभी अवयव प्रभावित होने से यह जातिका ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं और इसका इलाज़ करा रही हैं |
2)19-4-1975 19:30 दिल्ली, तुला लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर राहू(नक्षत्र) का प्रभाव हैं लग्नेश शुक्र स्वयं अष्टम भाव मे राहू केतू अक्ष व मंगल(शत्रु राशि) द्वारा द्र्स्ट हैं वही त्वचाकारक बुध अस्तावस्था मे केतू के नक्षत्र मे हैं | सूर्य भी ऊंच का होकर केतू के नक्षत्र मे ही हैं इस प्रकार सभी अवयव प्रभावित होने से जातिका इस रोग से पीड़ित हैं |
3) 2-12-1987 2:30 (हरियाणा) कन्या लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर राहू केतू प्रभाव हैं लग्नेश बुध अस्तावस्था मे सूर्य संग शनि से पीड़ित हैं मंगल अस्टमेश(राहू के स्वाति नक्षत्र मे हैं) तथा शुक्र (केतू के मूल नक्षत्र मे) होने से पाप प्रभाव मे हैं | इस प्रकार इस पत्रिका मे भी सभी अवयव प्रभावित होने से यह जातिका भी इस रोग से पीड़ित हैं |
4) 6-9-1936 13:40 गाज़ियाबाद वृश्चिक लग्न की यह कुंडली एक प्रसिद्ध वकील की हैं | पत्रिका मे लग्न पर शनि की दृस्टी हैं लग्नेश मंगल नीच राशि के हैं सूर्य पर शनि का प्रभाव हैं शुक्र नीच राशि मे हैं तथा त्वचाकारक बुध चन्द्र के नक्षत्र मे हैं जो स्वयं षष्ठ भाव मे शनि द्वारा द्र्स्ट हैं | इस प्रकार सभी अवयव के प्रभावित होने से जातक 1985 से इस रोग से पीड़ित रहे हैं |
5) 4-6-1968 19:57 दिल्ली धनु लग्न की इस कुंडली मे लग्न व लग्नेश दोनों केतू के नक्षत्र मे हैं सूर्य,शुक्र व मंगल षष्ठ भाव मे शनि द्वारा द्र्स्ट हैं व त्वचाकारक बुध राहू के नक्षत्र मे हैं | इस जातिका के समस्त चेहरे व शरीर मे यह बीमारी हैं |
6) 28-3-1954 6:04 (तमिलनाडू) मीन लग्न की इस कुंडली मे लग्न व लग्नेश दोनों पर मंगल का प्रभाव हैं (लग्नेश गुरु मंगल के नक्षत्र मे हैं)मंगल स्वयं राहू केतू व शनि के प्रभाव मे हैं सूर्य शुक्र पर भी इसी पापी मंगल का प्रभाव हैं वही त्वचा कारक बुध द्वादश भाव मे राहू के नक्षत्र मे स्थित हैं सभी अवयव प्रभावित होने से जातक को यह ल्यूकोडर्मा रोग हुआ |
7) 2-9-1943 4:20 दिल्ली कर्क लग्न की इस कुंडली मे लग्न राहू केतू प्रभाव मे तथा लग्नेश द्वादशेश बुध संग पीड़ित हैं बुध स्वयं चन्द्र नक्षत्र मे हैं सूर्य शुक्र पर शनि व मंगल की दृस्टी हैं मंगल पर शनि की दृस्टी हैं शनि अस्टमेश भी हैं | इन सभी कारणो से जातक काफी समय से ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं |
8) 21-1-1993 9:01 गाज़ियाबाद कुम्भ लग्न की इस कुंडली मे लग्न राहू के नक्षत्र मे तथा लग्नेश शनि सूर्य संग द्वादश भाव मे मंगल के नक्षत्र मे हैं शुक्र मृतावस्था मे हैं बुध अस्त व मृतावस्था मे,तथा मंगल स्वयं नीचभिलाषी होकर वक्री अवस्था मे हैं यह जातक सात साल की उम्र से इस बीमारी से पीड़ित हैं |
9) 15-2-1977 00:00 सैंट लुइस (अमरीका) तुला लग्न की इस पत्रिका मे लग्न राहू केतू अक्ष मे लग्नेश शुक्र षष्ठ भाव मे हैं | मंगल और बुध पर शनि का प्रभाव हैं,सूर्य शनि राशि मे हैं | सभी अवयवो के प्रभावित होने से जातिका कई साल से इस रोग से पीड़ित हैं तथा इलाज़ करवा रही हैं |
10) 15-10-1987 2:30 वांकानेर (गुजरात) सिंह लग्न के इस जातक की कुंडली मे लग्न केतू नक्षत्र मे शनि द्वारा द्र्स्ट तथा लग्नेश सूर्य राहू केतू अक्ष मे मंगल संग दूसरे भाव मे हैं | शुक्र व बुध स्वाति नामक राहू नक्षत्र मे हैं तथा अष्टमेश गुरु वक्री द्वारा द्र्स्ट हैं | इन्ही सब कारणो से जातक काफी समय से ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं |
11) 2-5-1988 23:25 राजामुन्द्री, धनु लग्न के इस जातक की कुंडली मे लग्न मे शनि वक्र अवस्था मे हैं लग्नेश गुरु अस्त हैं, सूर्य पर मंगल द्वादशेश का प्रभाव हैं, त्वचाकारक बुध षष्ठ भाव मे अस्त अवस्था मे हैं तथा शुक्र पर शनि की पूर्ण दृस्टी हैं |इन सभी कारणो से जातक के शरीर के अधिकतर हिस्से मे सफ़ेद दाग अर्थात ल्यूकोडर्मा हैं |
12) 23-11-1983 14:20 कानपुर,मीन लग्न की इस कुंडली मे लग्न पर शुक्र (नीच व अस्ट्मेश) तथा मंगल का प्रभाव हैं वही लग्नेश गुरु सूर्य तथा बुध संग राहू-केतू अक्ष मे पीड़ितवस्था मे हैं | मंगल नीच के शुक्र संग हैं |
इन सभी अवयवो के अलावा हमने कही-कही चन्द्र ग्रह को भी प्रभावित पाया संभवत; जिन जातको के चेहरे पर इस बीमारी के दाग थे उनका चन्द्र ग्रह प्रभावित रहा हो (चन्द्र ग्रह हमारे चेहरे को दर्शाता हैं) एक अन्य तथ्य भी जो हमने प्राप्त किया की शुक्र व बुध की दोनों राशियो मे से कोई ना कोई राशि अवश्य ही पाप प्रभाव मे थी |
हमने इन कुंडलियो के अतिरिक्त और भी लगभग ३00 कुंडलियों पर यह सभी अवयव प्रभावित पाये तथा यह पुष्टि की इन्ही कारणो से यह बीमारी होती हैं
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