ज्योतिषी उषा सक्सेना
ज्योतिष के अनुसार १,२,४,७,८,१२ भाव में मंगल की उपस्थिति मंगल दोष कही जाती है , जो कि विवाह हेतु कुंडली मिलान में एक महत्वपूर्ण विषय माना जाता है ।
मंगल ग्रह को क्रोध , अग्नि , झगड़ा, विवाद , शौर्य , घमंड आदि का कारक ग्रह माना जाता है ( पत्रिका मिलान में सदा मंगल के नकारात्मक गुण ही ध्यान में रखे जाते हैं अतः यहाँ नकारात्मक गुणौ का ही उल्लेख किया है ) !
सर्वविदित है कि उपरोक्त अवगुण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में अवरोध उत्पन्न करने बाले है , मंगल की उपस्थिति को बिना सम्पूर्ण पत्रिका की विवेचना किये अभाग्य -वैधव्य आदि से जोड़ देना कदापि उचित नहीं है ( और यदि ऐसी नियति हो तो क्या हम भाग्य को बदलने में सक्षम हैं ?)
ज्योतिष में देश काल के अनुसार अध्ययन - फलादेश प्रथम पाठ है , आज बदली हुई परिस्तिथियाँ व् समय के अनुसार हम मंगल की १,२,४,७,८,१२ भाव में उपस्थिति की कुछ इस प्रकार विवेचना कर सकते हैं ।
प्रथम भाव में मंगल की उपस्थिति जातक को अहंकारी , क्रोधी स्वभाव दे सकती है !
द्वितीय भाव परिवार भाव है , मंगल प्रदत्त अवगुण परिवार के सुख में बाधा दे सकते हैं !
चतुर्थ भाव , घर है व् जातक की अंतरात्मा का सूचक है , यहाँ मंगल की उपस्थिति यदि मंगल के अवगुण प्रदान करे तो घर में अशांति होगी !
सप्तम भाव विवाह का सूचक जाया भाव है , सप्तम भाव में मंगल की उपस्थिति जातक की लग्न व् सप्तम भाव दोनों को प्रभावित करती है , जातक में जीवन साथी पर प्रभुत्व रखने - शासन करने की
प्रवृति हो सकती है !
अष्टम व् द्वादश भाव में मंगल की उपस्थिति जातक के लिए क्रोध व् चरित्र हीनता का कारण बन सकती है !
सर्वविदित है कि उपरोक्त अवगुण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में अवरोध उत्पन्न करने बाले है , तो आज के समय में क्यों न, डराने , भ्रम फैलाने के स्थान पर ज्योतिषी सकारात्मक सलाह दे कर जातक को सावधान करे , स्वभाव आदि में सुधार की सलाह दे ! जिससे कि जातक नकारात्मक जीवन शैली से निकल कर सकारात्मक व् व्यावहारिक विचारपूर्ण हो व् जीवन को सरल -सुखद बनाये ।
ज्योतिष के अनुसार १,२,४,७,८,१२ भाव में मंगल की उपस्थिति मंगल दोष कही जाती है , जो कि विवाह हेतु कुंडली मिलान में एक महत्वपूर्ण विषय माना जाता है ।
मंगल ग्रह को क्रोध , अग्नि , झगड़ा, विवाद , शौर्य , घमंड आदि का कारक ग्रह माना जाता है ( पत्रिका मिलान में सदा मंगल के नकारात्मक गुण ही ध्यान में रखे जाते हैं अतः यहाँ नकारात्मक गुणौ का ही उल्लेख किया है ) !
सर्वविदित है कि उपरोक्त अवगुण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में अवरोध उत्पन्न करने बाले है , मंगल की उपस्थिति को बिना सम्पूर्ण पत्रिका की विवेचना किये अभाग्य -वैधव्य आदि से जोड़ देना कदापि उचित नहीं है ( और यदि ऐसी नियति हो तो क्या हम भाग्य को बदलने में सक्षम हैं ?)
ज्योतिष में देश काल के अनुसार अध्ययन - फलादेश प्रथम पाठ है , आज बदली हुई परिस्तिथियाँ व् समय के अनुसार हम मंगल की १,२,४,७,८,१२ भाव में उपस्थिति की कुछ इस प्रकार विवेचना कर सकते हैं ।
प्रथम भाव में मंगल की उपस्थिति जातक को अहंकारी , क्रोधी स्वभाव दे सकती है !
द्वितीय भाव परिवार भाव है , मंगल प्रदत्त अवगुण परिवार के सुख में बाधा दे सकते हैं !
चतुर्थ भाव , घर है व् जातक की अंतरात्मा का सूचक है , यहाँ मंगल की उपस्थिति यदि मंगल के अवगुण प्रदान करे तो घर में अशांति होगी !
सप्तम भाव विवाह का सूचक जाया भाव है , सप्तम भाव में मंगल की उपस्थिति जातक की लग्न व् सप्तम भाव दोनों को प्रभावित करती है , जातक में जीवन साथी पर प्रभुत्व रखने - शासन करने की
प्रवृति हो सकती है !
अष्टम व् द्वादश भाव में मंगल की उपस्थिति जातक के लिए क्रोध व् चरित्र हीनता का कारण बन सकती है !
सर्वविदित है कि उपरोक्त अवगुण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में अवरोध उत्पन्न करने बाले है , तो आज के समय में क्यों न, डराने , भ्रम फैलाने के स्थान पर ज्योतिषी सकारात्मक सलाह दे कर जातक को सावधान करे , स्वभाव आदि में सुधार की सलाह दे ! जिससे कि जातक नकारात्मक जीवन शैली से निकल कर सकारात्मक व् व्यावहारिक विचारपूर्ण हो व् जीवन को सरल -सुखद बनाये ।
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