होली २०१४ में आपके जीवन में रंग भर देगा। आईए देखें कि 2014 में होली के दिन क्य किया जाए। हर रंग का अपना मह्त्त्व होता है। जानिए रंगों का मह्त्त्व इस लेख के ज़रिए।
जिस प्रकार ऋतुओं का राजा कहे जाने वाली बसंत ऋतु आनंददायी होती है, ठीक उसी तरह इस ऋतु में मनाया जाने वाला त्यौहार होली भी जीवन में विशेष आनंद घोल जाता है। और त्यौहार आता भी तो ऋतुराज बसंत में ही है। आपको पता ही होगा कि बसंत को ऋतुओं का राजा कहा ही इसीलिए गया है क्योंकि इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्त्व यानी धरती, जल, अग्नि, आकाश और वायु सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। इस समय आसमान स्वच्छ होता है, वायु सुहावनी होती है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर रहता है तो जल अमृत के समान लगता है और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड के ठिठुरन से निजात मिलने का समय है, बसंत ऋतु इस समय ठंड से ठिठुरे पक्षीगण उड़ने का बहाना ढूंढते हैं वहीं किसान अपनी मेहनत द्वारा पैदा की गई लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर फूले नहें समाते। यह समय धनी और निर्धन दोनों को सुख देने वाला कहा गया है क्योंकि इस समय धनी वर्ग जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं वहीं निर्धन ठंड की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं।
ठीक इसीप्रकार बसंत ऋतु के समय आने वाले होलिकोत्सव का कहना ही क्या है, यह भारतीय त्यौहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है। रंग और उमंग का पर्व है होली। होली का पर्व फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पूर्णिमा को होली का पूजन व होलिका दहन किया जाता है। इस तिथि को भद्रा के मुख का त्याग कर निशा मुख में होली का पूजन करना चाहिए।
फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल आदि लगाते हैं। इस अवसर पर रंग या गुलाल का इस्तेमाल कलर थेरेपी का काम करता है जिससे शरीर की विभिन्न कष्टों से रक्षा होती है। इस दिन लोग धूलि क्रीड़ा करते हैं। शहर में कम, किंतु गांवों में यह क्रीड़ा विशेष रूप से होती है। इस समय धूल का यह खेल ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले कष्ट से शरीर की रक्षा के उद्देश्य से खेला जाता है। जीवन में उमंग, आशा, उत्साह आदि के संचार के लिए और नए मौसम के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए इन दिनों लोग पानी, रंग, अच्छे खान-पान, गीत-संगीत आदि का आनंद उठाते हैं। होलिका में स्वांग रचने की परंपरा है। गर्ग संहिता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण राधाजी के विशेष आग्रह पर होली खेलने के लिए गए। भगवन को इस समय मजाक करने तथा वातावरण को हास्यप्रद बनाने की सूझी, इसलिए वह स्त्री वेश धारण कर राधाजी से मिलने गए। राधाजी को जब पता चला, तो उन्होंने भगवान को कोड़े लगाए। कहा जाता है कि इसी कारण लट्ठ मार होली की परंपरा शुरू हुई। तो ये तो रही परम्पराओं से जुड़ी बातें। आइए अब चर्चा कर ली जाय कि होली के अवसर पर हमें क्या करना चाहिए।
सबसे पहली बात यह है कि जिस समय होली जलाई जाय तो उसमे जरुर सम्मिलित हों, यदि किसी कारण आप रात में होलीं जलाने के वक्त शामिल न हो पायें तो अगले दिन सुबह सूरज निकलने से पहले जलती हुई होली के निकट जाकर तीन परिक्रमा करें। होली में अनाज की बालियाँ आदि जरुर डालें। परिवार के सभी सदस्यों के पैर के अंगूठे से लेकर हाथ को सिर से ऊपर पूरा ऊँचा करके कच्चा सूत नाप कर होली में डालना भी जीवन में शुभता लाता है। होली की विभूति यानि भस्म घर लायें पुरुष को इस भस्म को मस्तक पर और महिला अपने गले में लगाना चाहिए, इससे एश्वर्य बढ़ता है।
दूसरे दिन होली खेलने की शुरुआत सुबह सुबह सबसे पहले भगवान को रंग चढ़ा कर ही करनी चाहिए। रंग जरुर खेले इस दिन रंग खेलने से मनहूसियत दूर भाग जाती है और जीवन में खुशियों के रंग आते है। यदि आप घर से बाहर जा कर होली नहीं खेलना चाहते हैं तो कोई बात नहीं घर के भीतर ही होली खेल सकते हैं, लेकिन खेलिए जरूर, इससे जीवन की नीरसता दूर होती है। होली के दिन मन में किसी के प्रति शत्रुता का भाव न रखें, इससे साल भर आप शत्रुओं पर विजयी होते रहेंगे। घर आने वाले मेहमानों को सौंफ और मिश्री जरुर खिलायें, इससे प्रेम भाव बढ़ता है।
तो आशा है आप भी इस प्रकार के परम्परागत तरीकों को अपना कर अपनी होली को शुभ बनाएंगे। एस्ट्रोसेज परिवार की ओर से आप सबको “शुभ होली”॥
पं हनुमान मिश्रा
जिस प्रकार ऋतुओं का राजा कहे जाने वाली बसंत ऋतु आनंददायी होती है, ठीक उसी तरह इस ऋतु में मनाया जाने वाला त्यौहार होली भी जीवन में विशेष आनंद घोल जाता है। और त्यौहार आता भी तो ऋतुराज बसंत में ही है। आपको पता ही होगा कि बसंत को ऋतुओं का राजा कहा ही इसीलिए गया है क्योंकि इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्त्व यानी धरती, जल, अग्नि, आकाश और वायु सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। इस समय आसमान स्वच्छ होता है, वायु सुहावनी होती है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर रहता है तो जल अमृत के समान लगता है और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड के ठिठुरन से निजात मिलने का समय है, बसंत ऋतु इस समय ठंड से ठिठुरे पक्षीगण उड़ने का बहाना ढूंढते हैं वहीं किसान अपनी मेहनत द्वारा पैदा की गई लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर फूले नहें समाते। यह समय धनी और निर्धन दोनों को सुख देने वाला कहा गया है क्योंकि इस समय धनी वर्ग जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं वहीं निर्धन ठंड की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं।
ठीक इसीप्रकार बसंत ऋतु के समय आने वाले होलिकोत्सव का कहना ही क्या है, यह भारतीय त्यौहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है। रंग और उमंग का पर्व है होली। होली का पर्व फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पूर्णिमा को होली का पूजन व होलिका दहन किया जाता है। इस तिथि को भद्रा के मुख का त्याग कर निशा मुख में होली का पूजन करना चाहिए।
धूलि क्रीड़ा और रंग खेलने की परम्परा क्यों है?
फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल आदि लगाते हैं। इस अवसर पर रंग या गुलाल का इस्तेमाल कलर थेरेपी का काम करता है जिससे शरीर की विभिन्न कष्टों से रक्षा होती है। इस दिन लोग धूलि क्रीड़ा करते हैं। शहर में कम, किंतु गांवों में यह क्रीड़ा विशेष रूप से होती है। इस समय धूल का यह खेल ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले कष्ट से शरीर की रक्षा के उद्देश्य से खेला जाता है। जीवन में उमंग, आशा, उत्साह आदि के संचार के लिए और नए मौसम के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए इन दिनों लोग पानी, रंग, अच्छे खान-पान, गीत-संगीत आदि का आनंद उठाते हैं। होलिका में स्वांग रचने की परंपरा है। गर्ग संहिता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण राधाजी के विशेष आग्रह पर होली खेलने के लिए गए। भगवन को इस समय मजाक करने तथा वातावरण को हास्यप्रद बनाने की सूझी, इसलिए वह स्त्री वेश धारण कर राधाजी से मिलने गए। राधाजी को जब पता चला, तो उन्होंने भगवान को कोड़े लगाए। कहा जाता है कि इसी कारण लट्ठ मार होली की परंपरा शुरू हुई। तो ये तो रही परम्पराओं से जुड़ी बातें। आइए अब चर्चा कर ली जाय कि होली के अवसर पर हमें क्या करना चाहिए।
होली के अवसर पर क्या करें?
सबसे पहली बात यह है कि जिस समय होली जलाई जाय तो उसमे जरुर सम्मिलित हों, यदि किसी कारण आप रात में होलीं जलाने के वक्त शामिल न हो पायें तो अगले दिन सुबह सूरज निकलने से पहले जलती हुई होली के निकट जाकर तीन परिक्रमा करें। होली में अनाज की बालियाँ आदि जरुर डालें। परिवार के सभी सदस्यों के पैर के अंगूठे से लेकर हाथ को सिर से ऊपर पूरा ऊँचा करके कच्चा सूत नाप कर होली में डालना भी जीवन में शुभता लाता है। होली की विभूति यानि भस्म घर लायें पुरुष को इस भस्म को मस्तक पर और महिला अपने गले में लगाना चाहिए, इससे एश्वर्य बढ़ता है।
दूसरे दिन होली खेलने की शुरुआत सुबह सुबह सबसे पहले भगवान को रंग चढ़ा कर ही करनी चाहिए। रंग जरुर खेले इस दिन रंग खेलने से मनहूसियत दूर भाग जाती है और जीवन में खुशियों के रंग आते है। यदि आप घर से बाहर जा कर होली नहीं खेलना चाहते हैं तो कोई बात नहीं घर के भीतर ही होली खेल सकते हैं, लेकिन खेलिए जरूर, इससे जीवन की नीरसता दूर होती है। होली के दिन मन में किसी के प्रति शत्रुता का भाव न रखें, इससे साल भर आप शत्रुओं पर विजयी होते रहेंगे। घर आने वाले मेहमानों को सौंफ और मिश्री जरुर खिलायें, इससे प्रेम भाव बढ़ता है।
तो आशा है आप भी इस प्रकार के परम्परागत तरीकों को अपना कर अपनी होली को शुभ बनाएंगे। एस्ट्रोसेज परिवार की ओर से आप सबको “शुभ होली”॥
पं हनुमान मिश्रा
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