पितृ पक्ष में अवश्य करें ये 10 कर्म! पढ़ें पितृ पक्ष पर किये जाने वाले श्राद्ध कर्म का महत्व और विधि। साथ ही जानें अनंत चतुर्दशी पर्व का धार्मिक और पौराणिक महत्व।
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हिन्दू धर्म में माता-पिता को देवता का दर्जा दिया गया है और उनकी सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है, इसलिए शास्त्रों में पितरों की शांति के लिए श्राद्ध का महत्व है। भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। इस अवधि में हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए दान, धर्म, हवन और पूजा-पाठ करते हैं। इस बार पितृ पक्ष 5 सितंबर से 19 सितंबर 2017 तक चलेंगे।
पितृ पक्ष में पिंड दान कैसे करें?
- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार दिवंगत पितरों के परिवार में सबसे बड़ा पुत्र या सबसे छोटा पुत्र और अगर पुत्र न हो तो भांजा, भतीजा, नाती पिंडदान कर सकते हैं।
- श्राद्ध में मुख्य रूप से तीन कार्य होते हैं, पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज। दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है।
- जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इससे पितृ तृप्त होते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है।
- पितरों का तर्पण गया और प्रयाग जाकर करें या फिर अपने घर पर ही करें।
- शास्त्रों में कहा गया है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करें।
- पितृ पक्ष के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें और मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहें।
कब और कैसे करना चाहिए श्राद्ध?
पितृ पक्ष परंपरा के अनुसार दिवंगत परिजनों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर किया जाना चाहिए। यदि किसी परिजन की मृत्यु सप्तमी को हुई हो तो, उनका श्राद्ध सप्तमी के दिन किया जाता है। ठीक इसी प्रकार अन्य तिथियों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष मान्यताएं भी हैं जो इस प्रकार हैं:
- पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।
- परिवार में जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई है यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई है। उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
- साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।
- जिन पितृो की मृत्यु तिथि याद नहीं हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए। इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है।
पढ़ें: पितृ दोष निवारण के उपाय
पितृ पक्ष में 10 प्रकार के दान का महत्व
श्राद्ध पक्ष में 10 तरह के दान-पुण्य करने से पितृो को परम शांति मिलती है। इनमें गाय, भूमि, वस्त्र, काले तिल, सोना, घी, गुड़, धान, चांदी और नमक आदि का दान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पितृ पक्ष में मूक जानवरों को भी भोजन कराना चाहिए।
पितृ पक्ष पर श्राद्ध कर्म के बारे में जानने के बाद अब पढ़ें...आज मनाई जा रही अनंत चतुर्दशी का धार्मिक और पौराणिक महत्व व पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी हर साल भारत वर्ष में धूमधाम से मनाई जाती है। इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी 5 सितंबर को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इस पूजन के बाद अनंत सूत्र बांधने का बड़ा महत्व है। ये अनंत सूत्र कपास या रेशम के धागे से बने होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना के बाद इन्हें हाथ पर बांधा जाता है। मान्यता है कि अनंत सूत्र बांधने से भगवान अनंत हमारी रक्षा करते हैं और सांसारिक वैभव प्रदान करते हैं। अनंत चतुर्दशी पर सुख-समृद्धि और संतान की कामना से व्रत भी रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश उत्सव का समापन होता है। इस वजह से अनंत चतुर्दशी का महत्व और भी बढ़ जाता है।
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त
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06:00:48 से 12:42:53 तक
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अवधि
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6 घंटे 42 मिनट
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उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए है। अपने शहर के अनुसार जानें: अनंत चतुर्दशी का पूजा मुहूर्त
अनंत चतुर्दशी का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार अनंत चतुर्दशी पर्व और व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। जब पांडव पुत्र राज्य हारकर वनवास काट रहे थे उस समय भगवान श्री कृष्ण ने वन में उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन सुनाया था। कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ में 14 लोकों की रक्षा और पालन के लिए भगवान विष्णु चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, इससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है।
अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। यह पूजन दोपहर में संपन्न होता है। इस दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है और कलश स्थापना की जाती है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा के महत्व का वर्णन मिलता है।
विस्तार से पढ़ें: अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि
हम आशा करते हैं कि पितृ पक्ष और अनंत चतुर्दशी पर आधारित यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध हो। एस्ट्रोसेज की ओर से शुभकामनाएं!
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