ऐसे करें मॉं कालरात्रि को प्रसन्न… पढ़ें नवरात्रि में सातवें दिन की पूजा का महत्व और मॉं कालरात्रि की महिमा। इसके अलावा जानें दुर्गा पूजा उत्सव के प्रथम दिन का महत्व।
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देशभर में शरद नवरात्रि का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मंदिरों और शक्ति पीठों पर माता के भक्तों का तांता लगा हुआ है। कल 27 सितंबर 2017 को शरद नवरात्रि का सातवां दिन है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में महासप्तमी दुर्गा पूजा का पहला दिन होता है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं सप्तमी और दुर्गा पूजा उत्सव का महत्व, मुहूर्त और पूजन विधि।
नवरात्रि की सप्तमी तिथि माँ कालरात्रि को समर्पित
नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की उपासना और वंदना की जाती है। सप्तमी तिथि यानि नवरात्रि के सातवें दिन मॉं कालरात्रि की पूजा करने का विधान है। इन्हें शुभंकरी देवी भी कहा जाता है। देवी दुर्गा का यह रूप बहुत आक्रामक और भयभीत करने वाला है। मॉं कालरात्रि पापियों का नाश करने वाली हैं। गर्दभ (गदहा) उनकी सवारी है और उनका वर्ण घने अंधकार की तरह काला है और सिर पर बिखरे बाल हैं। इनकी तीन लाल आँखें बेहद ही डरावनी है। इनकी स्वाँस से अग्नि उत्पन्न होती है। देवी कालरात्रि की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक दोनों बाएँ हाथ में क्रमशः तलवार और खड़ग हैं जिनसे वे असुरों का संहार कर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। मान्यता है कि यदि कोई भक्त उनका नाम जपता है तो उससे सारी बुरी शक्तियाँ दूर हो जाती हैं।
पूजा विधि
देवी शक्ति मॉं कालरात्रि की आराधना से बुरी शक्तियों का नाश होता है। नवरात्रि के सातवें दिन पूजा का विधान भी क्रमश: पांचवें और छठे दिन की तरह इस प्रकार है...
- सर्वप्रथम मॉं कालरात्रि की पूजा से पहले कलश और उसमें विराजमान देवी-देवता, तीर्थों, नवग्रहों, ग्राम और नगर देवता आदि का पूजन करें।
- अब मॉं कालरात्रि का पूजन शुरू करें। सबसे पहले अपने हाथ में एक फूल लेकर मॉं कालरात्रि का ध्यान करें।
- इसके बाद मॉं कालरात्रि का पंचोपचार पूजन करें और लाल फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें।
- घी अथवा कपूर जलाकर मॉं कालरात्रि की आरती करें और अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
नवरात्र में सातवें दिन का महत्व
नवरात्र का सातवाँ दिन माँ कालरात्रि को प्रसन्न करने का शुभ अवसर होता है। योगी और साधकों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन भक्त अपने पापों का प्रायश्चित कर सहस्रार चक्र को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। कहते हैं इस दिन की जाने वाली हर पूजा सिद्ध होती है। माँ का इतना भयावह रूप होने के बावजूद भी वह अपने भक्तों के प्रति बहुत दयालु है। वह अपने भक्तों को हर बुराई से बचाती है। यदि भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ माँ की आराधना करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
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दुर्गा पूजा उत्सव का प्रथम दिन महासप्तमी
नवरात्रि में पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार समेत कुछ क्षेत्रों में दुर्गा पूजा उत्सव मनाया जाता है। इस पर्व की विधिवत शुरुआत षष्ठी यानि नवरात्र के छठे दिन से होती है और महासप्तमी दुर्गा पूजा उत्सव का पहला दिन होता है। इस दिन नवपत्रिका पूजन करने का विधान है, इसे कलाबाऊ पूजा भी कहते हैं। इसमें नौ तरह की पत्तियों को मिलाकर दुर्गा पूजा की जाती है। ये सभी नौ पत्ते देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूप माने जाते हैं।
नवपत्रिका पूजा मुहूर्त
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को नवरात्रि और दुर्गा पूजा उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं!
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